रविवार, 16 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य:16 अक्टूबर 22

रोज लताड़ेली, एक दिन निहारेली

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। सब माया के जाल बा। त्योहारन के बहार बा। मलिकाइन खुश, मालिक लाचार बा। सब की बावजूद सलीमा आ टीवी वालन की महिमा से घर-घर मनई जवन सालों-साल लताड़ल जात रहे, ओहू के एक दिन पूजाये के मौका मिल जाता। धन्य हो करवा चौथ। सालो-साल गाल फुलवले, मुंह ओरमवले वाली पंडिताइन आज बिहाने-बिहाने से ही चहकत रहली। उनकर रूपजाल देख के बाबा सम्मोहित रहलें, रोमांचित रहलें, आनंदित रहलें। झुराइल जिनगी की रेगिस्तान में कुछ-कुछ हरियर लउके लागल। उषाकाल से अपरान्ह काल तक पंडिताइन के एक ही रट-  ए जी! सुनत हई। संवकेरे घरे आ जाइब, आज करवा चौथ ह। चलनी में चांद निहारे के बा। राउर आरती उतारेके बा। बाबा सोचे लगलें- अगर इ व्रत ना रहित, त पंडिताइन सीधे मुंह बात भी ना करती। जेकरा पर पूरा जवानी कुर्बान क दिहल गइल, उ कब्बो हरियर मन से बात ना कईली । भला हो हमरी संस्कृति के, हमरी परंपरा के, पर्व-त्योहार के। इ प्रेम के उमंग बढ़ावत बा। जीवन में खुशबू महकावत बा। घरकच की करकच में रोज-रोज घटल नून-तेल-मरिचाई के चिंता से मुक्ति दिया के पूजा-पाठ-वंदन के उछाह बढ़ावत बा। इहे कुछ सोचते रहलें की पंडिताइन के फोन फेर आइल- ए जी! पौने आठ हो गइल। जल्दी आई , चनरमा उगहि वाला हवें। बाबा अत्रकारित-पत्रकारिता छोड़ के घर की ओर चल दिहलें। सुबह-शाम में एतना अंतर। जीवन में पहिला बेर कातिक में बाढ़ देखलीं। घाघरा घघा के अईसन बढ़त रहे की अट्ठानबे के इतिहास दोहरावे में लागल रहे। जवना सड़क आ बन्धा से सुखरखे गईल रहनी। गंगा बहत रहे। जूता-मोजा-पतलून भीग गइल। डुमरी की बन्धा पर सालों-साल साही के मानि ना भराईल रहे। अब बाढ़ विभाग बोरी में माटी से बिल मुनला में लागल रहे। देवरहा बाबा के आश्रम में पानी देखे आईल रहे अधिकारी लोग नरिआव से ही गोड़ लाग के लवटि गईलें। कसिली पुल से हरहरात सरयू मईया अडिला, ड्योढ़ी के नहवावत आगे बढ़त रहली। बैंक, स्कूल, अस्पताल सब पानी से घेराईल रहे। गोर्रा गुर्रात रहे। घाघरा घघात रहे। पानी बढियात रहे। सालों साल बाढ़ के इंतजाम करे वाला लोग ऊंघात रहे। साहब-शुब्बा-नेता आवत रहें। फोटो खिचावत रहें। चारों ओर दबाव के माहौल। बन्धा पर नदी के दबाव। घेराईल मनई के जान बचावला के दबाव। खबरीलाल लोग का खबर के दबाव। बाबा का अपनी चांद निहारला के चिंता रहे। हाफ़त- डाफत-पांकत कवनो ना घरे पहुंचले। पंडिताइन चलनी से चांद निहारला की बाद बाबा के चेहरा देख चवन्नी मुश्की मारत मुहें में मिठाई हूर दिहली। बाबा पगुरी करत करवा के पानी पंडिताइन के पीया के पुछलें-जुड़ईलू। मुहल्ला में जोर से शोर हो गइल। भगिहे रे! सरयू मईया के धार एनिये आवत बा।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपन विचार लिखी..

हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद