केतना ठंडई देई, टॉनिक इ बिहारी सतुआ ना चना के ह, हवे इ खेसारी
केतना ठंडई देई, टॉनिक इ बिहारी सतुआ ना चना के ह, हवे इ खेसारी
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गरमी के दिन, पसीना से लतफत मनई। राहत के भी
बहुतै इंतजाम। खानपान में जे परहेज ना करी. उ पछताई। मनबोध मास्टर के ज्ञान
के गंठरी तब खुलल जब अपने कपारे पड़ल। घाम में हकासलप्िायासल रहलें,
पुरनिया लोग के बाति याद आइल कि घाम से आके तुरंते पानी ना पिये के चाहीं।
सो तनि देर पेड़ की नीचे छंहइलें। फिर सोचले कुछ ठंडई लिया जा। कोल्ड
ड्रिंक की नाम पर मास्टर के मुंह तबे से टेढ़ हो जाला जबसे बाबा रामदेव के
प्रवचन सुनलें। कोल्ड ड्रिंक माने लैट्रिन साफ करे वाला लिक्विड। मास्टर के
नजर सड़क की किनारे लागल एगो ठेला पर परल। ठेला पर माटी के बड़वर घड़ा,
उपर से मोटवर अक्षर में लिखल रहे-‘ बिहारी टॉनिक’। ठंडई। कुछ पुदीना के
हरिअर पतई देखि के बिचार बनल कि सतुई पी लीहल जा। सतुआ अइसन चीज में महंगी
की मार से दस रुपया गिलास हो गइल बा। खींच के दु गिलास पी के मास्टर जब्बर
डकार मरलें। कुछुए समय बाद पेड़ गुड़गुड़ाए लागल, जीव घवराये लागल, माथा
चकराये लागल। सब गैस के कमाल। उम्माùù उम्माùù करत कवनो ना घरे पहुंचले।
दुनो पवन चालू हो गइल, मतलब उपर से उल्टी, नीचे से दस्त। अब जीव कइसे रही
मस्त। डाक्टर बुलावल गइलें। अल्ला भिड़वले। पूछलें-का खा लिहलीं ह मास्टर
साहब। मास्टर साहब बतवलीं- चना के सतुआ, बिहारी टॉनिक। डाक्टर बतवलें-फूड
प्वायजनिंग हो गइल बा। बोतल-ओतल चढ़ल। देहि में सुई खोंसाइल। मामिला
फरियाइल। डाक्टर साहब बतवलें- दरअसल, चना की जगह पर बाजार में खेसारी, मटर आ
मकई के सतुआ मिलावट क के बेचल जाता। फायदा की जगह नुकसान करत बा। खेसारी उ
बेमारी पैदा करे ले जवना से लोग के जांगर-पांजर गायब हो जाला। तंदरुस्त
मनई के लगड़ी बेमारी हो जाला, आदमी अपाहिज हो जाला। मास्टर साहब की हालात
पर कुछ कवित्तई देखीं-
केतना ठंडई देई, टॉनिक इ बिहारी।
सतुआ ना चना के ह,
हवे इ खेसारी।।
गरमी से मिली नाही, पियले इ राहत।
लंगड़ी बीमारी मिली, मोल
मिली आफत।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 10 मई 12 के अंक में प्रकाशित है .
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