मंगर के मंगरुआ के माई जिउतिया के व्रत रहे। बुध की दिने अबै बुधिया खरना करत रहे, तबे खबर आइल कि आजुओ छह गो लईका फेर नवकी बेमारी से मरि गइलें। अबहिन कलिहे तù बुधिया सांझ की बेरा जिउतिया के कथा (चिल्हो-सियारिन वाली)सुनलसि। कथा में पंडिताइन बतवली कि बहुत समय पहिले के बाति ह, एगो जंगल में चिल्हो सियारो रहत रहली। दुनो कुछ मेहरारू के जिउतिया के व्रत करत देखली।चिल्हो-सियारो भी व्रत रहली। जब रात कुछ बीतल त सियारो का भूख से पेट कुलबुलाए लागल। उ चुपके-चोरी गइली, जंगल से शिकार ले अइली। जब खाये लगली त चिल्हो कहली, का चूरुर-चुरुर करत बा? सियारो कहली, भूख से अंतड़ी बथतिया उहे चुरचुरात बा। व्रत में नेम-धरम बिगड़ला की वजह से सियारो के जेतने लईके भइलें, सब मरि गइलें। चिल्हो के जेतने भइलें, खूब गदरइलें। चिल्हो-सियारो के कथा सुनला की बाद व्रती महतारी लोग बरियार(एगो जंगली पौधा)के अंकवार दिहली। कहली-‘ए अरियार, का बरियार। जाके राजा रामचन्नर से कहिहù समुझाय। फलाने के माई जिउतिया भूखल हई’। ए जिउतिया के ही प्रताप ह कि कवनो बड़वर घटना-दुर्घटना में जब केहु सुरक्षित बचि जाला त लोग कहेले- जा लाल! तोहार माई खर-जिउतिया कइले रहली ह। अब सवाल येह बात के बा कि का जेकर लक्ष्के नवकी बेमारी से मरत हवें उ जिउतिया के व्रत ना कइली का? पंडी जी की पतरा में जवन ना रहे उ पंडिताइन की अंचरा में रहे। पंडिताइन के जिउतिया वाली कथा सुनलो की बाद बुधिया के बचवा ना बचल। पूर्वाचल में इ नवकी बेमारी एतना लइकन के खा-चबा गइल जेतना ताड़का, पूतना ना खइले-चबइले होइहें। मेडिकल कालेज मउअत के कालेज बनि गइल बा। जिउतिया की दिने जिउतबंधन महराज काहे ‘मौतबंधन’ बनि गइलें। बाबा नवकी बेमारी की विरोध में धरना देत हवे। बुधिया अइसन केतने महतारिन के कोख उजरत बा। अइसन हालात पर कुछ कहे के मन त ना करत बा, लेकिन कहला बिनु भी ना चलत बा- ए अरियार, का बरियार, काहें आन्हर भइल सरकार। केतना माई भूखें जिउतिया, तब्बो लईके स्वर्ग सिधार।। फइलल बहुत बेमारी नवकी, सब केहू बा बहुत लचार। इन्सेफेलक्ष्टिस धावा डरलसि, मेडिकल कालेज भइल बेकार।। माई के व्रत-खरना अकारथ, कथा चिल्हो के चतुर सियार। बाबा बइठ के देलें धरना, राजनीति के बहल बेयार।। |
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा गोरखपुर के २२ सितम्बर २०११ के अंक में छपा है .
जियुतिया की खबर भी पढ़िए अश्रि्वन कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मंगलवार को जीवत्पुत्रिका व्रत परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया गया। माताएं पुत्रों के सुख, समृद्धि व दीर्घायु के लिए निर्जल व्रत रहीं। जीवत्पुत्रिका व राजा जिमूतवाहन की षोडसोपचार पूजा-अर्चना करने के बाद बरियार वृक्ष की विधिवत पूजा कर अपने पुत्रों के मंगल के लिए सीता माता को संदेश भेजीं। माताएं दिन भर निराहार व निर्जल रहकर दोपहर बाद या सायंकाल सोने, चांदी या सूत की बनी जीवत्पुत्रिका एवं राजा जिमूतवाहन की पूजा कीं। कुछ जगहों पर राजा जिमूतवाहन की कुश से बनी हुई प्रतिमा की पूजा की गयी लेकिन ज्यादातर जगहों पर बरियार वृक्ष को उनका प्रतीक मानकर माताओं ने पूजन-अर्चन किया और सीता माता को संदेश भेजा- ए अरियार, का बरियार, सीता से कहिह भेंट अकवार, हमार पूत मारि आवें, मरा न आवें, ओरहन लेके कब्बो न आवें।
महर्षि गौतम से स्ति्रयों ने प्रश्न किया कि उनके पुत्र किस व्रत से दीर्घायु होंगे। महर्षि ने कथा के माध्यम से जीवत्पुत्रिका व्रत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सूर्यवंश में पैदा हुए राजा जिमूतवाहन एक स्त्री के पुत्र की रक्षा के लिए गरुण को अपने शरीर के मांस खण्ड का दान कर दिये। गरुण प्रसन्न होकर स्वर्ग लोक से अमृत लाकर उन बच्चों के अस्थि समूहों पर उसे बरसाये जिन बच्चों का उन्होंने भक्षण किया था। वे सभी जीवित होकर दीर्घायु हो गये। उस दिन अश्रि्वन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। गरुण ने वरदान दिया कि जो स्त्री इस दिन जीवत्पुत्रिका की कुश की आकृति बनाकर पूजा करेगी, उसका सौभाग्य बढ़ेगा और वंश की वृद्धि होगी- तासां सौभाग्य वृद्धिश्च वंशवृद्धिश्च शाश्र्वतम्। भविष्यति महाभाग नाऽत कार्या विवरणा।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपन विचार लिखी..