नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती
मनबोध मास्टर अखबार पढ़ला में मगन रहलें। तबले फुफकारत नागिन जेईसे मस्टराईन आ गईली। बोलली-आज नाग पंचमी ह। साल के पहिला त्योहार ह। जाईं ! गाय के गोबर,उजरका बालू, पियरका सरसो खोज के केहू जानकर मनई से परोरवा के ले आईं। मास्टर हाथ मे कटोरा लेके निकल पडलें। सड़क पर निहुर के गोबर उठावत रहलें, तबले पीछे से एगो जर्सी साढ़ उठा के फेंक दिहलसि। मास्टर बड़बड़ईलें-एतना गो आश्रय बनल त सड़किये पर कब्जा रही। उजरका बालू ना मिलल त सोनभद्र वाला पियरके उठा लिहलन। पियरका सरसो ना मिलल त करिके लेके परोरे वाला के खोजे लगलन। मुहल्ला-मुहल्ला तलासत आखिरकार एगो गुनी मनई मिललन। मस्टराईन दरवाजा की दुनों ओर गोबर से नाग नागिन उकेर के दूध लावा चढ़ा के पूजा कईली। ओकरा बाद गोबर से घर के देवार घुरिआवे लगली। घर की रंग- रोगन, डेंट -पेंट पर गोबर के चौगोठा। मास्टर सोचे लगलन-नाग पूजा हम्मन के सनातन संस्कृति ह। सालों साल साँप देखते लाठी से मारे वाला लोग भी आज साँप पूजत बा। सपेरा तरह तरह के साँप लेके घुमत हवें। दूध की नाम पर पईसा बिटोर के सांझी बेरा दारू ढकेलत हवें। का जमाना आ गइल। साँप का जहर उगली? जेतना नेता उगलत हवें। नफरत के जहर एतना भरल जात बा कि आदमी ही आदमी के डंस लेई। साँप से ज्यादा खतरनाक आस्तीन वाला साँप हो गइल हवें। इनकर डंसल मनई त पानी ना मांग सकेला। भविष्य पुराण में बतावल गइल बा कि नागिन दो सौ चालीस अंडा देली। लेकिन अंडा के आहार बना लेली। एक दुगो अंडा जवन बच जालें उहे नाग चाहें नागिन होलें। जनसंख्या नियंत्रण के अईसन फार्मूला। खैर! मनई त अईसन विषधर हो गइल बा कि समाज मे चारों ओर जहर ही जहर भरत बा।
आइल मौसम देखीं सभे अब, भांति-भांति के साँप।
कुछ तो केचुल छोड़कर, दिख रहे बहुत ही पाक।।
देहाती फुफकार रहल बा, हम सापों के बाप।
यूपी में अब हो रहल बा, सांपन के ही जाप।।
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