नगर-डगर की बात/एन डी देहाती
बाबा लोग की पयलग्गी में, बेआदर सन्देश
मनबोध मास्टर भड़कल हवें। भिनहि से गधबेरी ले पयलग्गी के दौर। काहें लोग एतना पाँव लागत बा। आशीर्वाद दिहला में औज़ाईल रहलें, तबले फिर एक जने बोल पडलें-बाबा पाय लागीं। बेरूखे मुँह से निकर गइल- जीय$ बाबू! भरसक। अब येही "भरसक" पर बहस शुरू हो गइल। बाबा बोल पड़ले-हवा में जनि उड़$ जा। चतुराई देखा के जवन वोट की घनचक्कर में घर-घर छिछिआत हव जा, जगह -जगह चिचिआत हव जा। एह से कल्यान ना होई। जवन जे बोवले बा उहे काटी। गाँव-गाँव पंडी जी लोग के अईसन श्रद्धा से खोजत हव जा, जेईसे 22 में चुनाव ना श्राद्ध पड़ल होखे। एतना श्रद्धा त श्राधे में लउकेला। बाबा लोग के हमेशा पिसान वाला "परथन" बनवले रहल$ लोग। आटा की लोईया में परथन लपेट के आपन रोटी सेंकला के आदत एह बेरी छूट जाई। बाप रे बाप!हद के थेथरई बा। सालों साल मनुवादी कहि के गरिवलें, आज पयलग्गी करत हवें। जेकर नेता अयोध्या में शौचालय बनवावे के कहत रहलें। ओकर चेला अब सरयू मईया में दूध चढ़ावत हवन।तिलक- तराजू- तलवार के अब ना जूता मरब$? ना घाव भरल बा, न भुलाइल बा। आ हुनके देख$- जेकरा राज में उनकी चेला-चपाटी लोग की लाठी में अंगारी बरसत रहे, उहो पांच जने पण्डिते के लेके बाबा लोग के अझुरावत हवें। का समय आ गइल बा। जातिवाद की जहर में झौसाईल राजनीति देख के इंसानियत सरमात बा। सियासी तरजुई पर बाबाजी लोग के "बटखरा" बनवला में सब लोग लागल बा। चारों ओर चाभी-चाभा बा। बुद्धू बक्शावालन की मुद्दा में भी बाबा बा। जेतना काशी आ काबा वालन के चर्चा ना, ओतना बाबा लोग के चर्चा। मनुवादी कहि कहि जे देत रहे गारी, उहो अब आरती उतारी। जवन लोग सदा से पीठ पूजला के आदती रहे, उहो अब पाँव पूजत बा। ई कलमुँही राजनीति कवन-कवन दिन देखाई? खैर! 22 में बाबा लोग बबे की साथे रहीहन कि कुछ नया खेला होई? ई त भविष्य की गरभ में बा, लेकिन बाबा लोग के एकठिआवल बिकट काम ह। सब विद्वान ह। सब बुद्धिजीवी ह।
आईं, एह चार लाइन की कविता में सब सारांश सुनीं-
"गाँव-गाँव में फइल रहल बा, राजनीति के क्लेश।
बाबा लोग की पयलग्गी में, बेआदर सन्देश।।
कहें देहाती बन्द कर$ जा, स्वांग भरल उपदेश।
राष्ट्रधर्म सर्वोपरि राखीं,जातिधर्म ना लेश।।"
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