रविवार, 11 दिसंबर 2022

एन डी देहाती : भोजपुरी व्यंग्य 11 दिसम्बर 22

चार टांग के कुर्सी
 छह दावेदार


हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त उ बा कि चुहवो खुश, बिलरियो खुश। बनरो खुश, बनरबझओ खुश। एह हफ्ता चारो ओर खुशी ही खुशी रहल। विश्व के सबसे बड़वर राजनीतिक दल गुजरात में इतिहास रच दिहलसि। सत्ता के सताइश बरिस के बत्तीस ले बढ़ावल आसान ना बा। देश के सबसे पुरान पार्टी हिमांचल में रिवाज कायम रखलसि। एक बार तू, त एक बेर हम। देश में दस साल पहिले जनमल नवका दल अब बड़का दल बन गईल। राष्ट्रीय स्तर पर छा गईल। राजधानी की नगर निकाय पर आपन झंडा गाड़ दिहलसि। सब कुछ ठीक बा, लेकिन पहाड़ के पहाड़ा समझ में नईखे आवत। एगो कुर्सी, चार को टांग, ऊपर बइठे खातिर लागल हवें छह दावेदार। केकर-केकर मनवा राखिहैं, अकेले जियरा। यूपी में चाचा खुश, भतीजा खुश। चाचा के पार्टी भतीजा की पार्टी एक में मिल गईल। डाढ़ी कटहर, ओठे तेल। बाईस की उपचुनाव में जीतते चौबीस खातिर छटपटाहट शुरू हो गइल बा। अरे भईया! कस्बाई, नगराई में पहिले फ़रिआई, फिर चौबीस के बात बतिआवल जाई। जईसे हिमांचल में घरकच के करकच लागल बा, दुनो बड़का दल डेरात बाड़न। उ बुझत हवें कहीं हमार न तोड़ लें। इहो इहे बुझत हवें। हालत खराब त बुढ़िया पार्टी के बा। देश में सिकुरत-सिकुरत कवनो ना एगो राज्य जितलसि त ओहू पर राहू-केतू के नजर लागल बा। अगर समय रहते हाईकमान कंट्रोल ना कइलसि त आईल रोहू जाल से निकल जाई। हिमांचल में जईसे कुर्सी के टंगखिंचउअल होता अपना यूपी में नगर निकाय में भी उहे हाल बा। एगो अनार पर सौ गो बेमार। एगो कुर्सी पर छह दावेदार। टिकट खातिर बिकट मारामारी बा। कर्मठ, सुयोग्य आ ईमानदार लोग के संख्या बढ़ गईल बा। कई जगह जे पांच साल में चाट- पोछ के चिक्कन क देले बा, उहो प्रबल दावेदार बा। बनही के चाहीं। बगैर कुर्सी के केइसन सेवा। कुर्सी मिली त सेवा होई आ मेवा मिली। सजो निष्ठा, ईमानदारी, त्याग, कर्तव्यनिष्ठा टिकट ले बा। ना मिली त बगावत। अपने ही लोग से अदावत। एही बीचे कई गो ठेकेदार पैदा हो गइल हवें। मोल-भाव लागत बा। ठगे-ठगे बदलईया होता। संतरा के रंग सबकर पहिला पसंद बनल बा। बहुरूपिया पाला बदल-बदल के टिकट खातिर लाइन लगावत हवें। बस एक बेर टिकट मिल जा। जीवन सफल हो जाई। टिकट बांटे वाला भी बड़ा बेईमान निकरेलें। मंच पर भाषण देलें की कार्यकर्ता के ही सम्मान मिली। आ पैसा पावते राग बदल के कहलें, कईसहुँ सीट चाहीं। विरोधी पार्टी के लोग भी खाँचा में फिट बईठी त सीट खातिर ओही के नाम पास होई। अपनी पार्टी लोग खाली झंडा ढोवे आ डंडा खा। सत्ता खातिर जिलेबी जईसन सीधा राजनीति आम कार्यकर्ता का ना बुझाई। 

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

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