रविवार, 4 दिसंबर 2022

एन डी देहाती, भोजपुरी व्यंग्य: 4 दिसम्बर 22

ले टोपी,दे टोपी

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- बेदर्दी सर्दी में गर्मी के एहसास बा। अपना यूपी में नगर निकायन के चुनाव बा। नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम के महापौर के मौर केकरे माथे बंधाई, राम जी जाने। लेकिन किसिम-किसिम के टोपी बेचे वाला टप्पेबाज उतर गईल हवें। केहू इनके टिकट दियावत बा, केहू उनके। तरह-तरह के टोपी। इनकी कपार के कुलही उनकी कपार। लहि गईल त तीर ना त तुक्का। ऊपर से फजीहत-थुक्का। देश जब गुलाम रहे तबसे आज ले समाज में तरह-तरह के टोपी देखे के मिलल। आजादी की लड़ाई में गांधी बाबा की कपारे भले टोपी कम लउकल, लेकिन गांधीवादिन की कपार पर ज्यादा लउकल गांधीवादी टोपी। नेताजी के टोपी आजाद हिंद फौज के टोपी रहल। देश आजाद हो गइल लेकिन नेताजी की मौत से रहस्य के पर्दा आज ले ना उठा पवलें टोपीधारी लोग। भगत सिंह वाली टोपी पहिनले से केहू क्रांतिकारी ना हो सकेला। भगत सिंह त देश खातिर फांसी चढ़ गइलें।  रमजान की महीना में रंगिबरंगी टोपी लउकेली। रोजा न रहे लेकिन कपार पर जालीदार टोपी पहिन के कुछ हिंदूवादी लोग भी अफ्तार कइला से ना चुकेलन। टोपी मान ह, सम्मान ह, निशान ह, पहिचान ह। टोपी की प्रकार पर बात कइल जा त बहुत विस्तार हो जाई। मौसम की मिजाज से भी लोग टोपी के चयन करेलन। बरसात में बरसाती टोपी, गरमी में धूपी टोपी आ इ जवन जाड़ा चलत बा येहमा मंकी टोपी ही लउकत बा, जेके कुलही कहल जाला। कई लोग के मुंडी पर शौकिया हिमांचली टोपी, राजा मंडा वाली टोपी, क्रिकेटवाली टोपी आदि बहुत प्रकार के टोपी शोभा देली। आज कल एगो खास टोपी आम आदमी की कपार उग आइल बा। देश में टोपी उछलउअल के खेल होता। टोपी राजनीति में समइला के भी जरिया बा। आखिर हरज का बा?टोपी पहिन सत्ता में समाई फिर टोपी के उल्टा कर के पीटो -पीटो। धन पीटो। दौलत पीटो। मोटर-गाड़ी, बंगला-लॉकर पीटो। टोपी-टोपी, पीटो-पीटो करत एगो साम्राज्य खड़ा कर दीं। फिर वंशवाद के वेल बढ़ाई। लोकतंत्र की नाम पर राजतंत्र चलायीं। मेहरी की सीट पर मरद बईठाई। प्रतिनिधि बनके गटक-गटक करीं। फिर महिला आरक्षण खातिर लड़ाई लड़ीं।आंख उठाके देखीं, येही प्रतिनिधिवाद की चलते सत्ता कुछ परिवारन की हाथ के खिलौना बन के रहि गइल बा। सब बदलाव चाहत बा, लेकिन एगो नियम बनावला के बात केहू ना उठावत बा कि जे लोकतंत्र के राजा चुना जाई ओकर भाई-भतीजा-भांजा, चचिआउत, पितिआउत, मौसिआउत, फुफुआउत, ममिआउत चाहें कवनो आउत होखे राजनीति में समइला पर प्रतिबंध रही। अगर अइसन नियम बन जा त राजनीति पवित्र हो जाई। इ परिवर्तन रउरी एगो वोट से हो सकेला। वोट माने मत। मत माने बुद्धि। त आई संकल्प कइल जा अपनी बुद्धि के हरण ना होखे दिहल जाई। केहू के टोपी मत उछालीं, लेकिन जब चुने के बा, त बढ़िया चुनीं। दस रुपया के सब्जी भी सड़ल-गलल ना ख़रीदेलीं त अपनी नगर, कस्बा, महानगर के पांच साल खातिर राजा चुनत हईं त बढ़िया चुनीं, जवन विकास करें, बकवास ना।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

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