रविवार, 25 दिसंबर 2022

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 25 दिसम्बर 22

माँसु के कारोबारी
सोना-चांदी से भारी

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

     मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बड़ा बेहाल बा। पहिले लोग कहत रहे- विप्र टहलुआ, चीक धन और बेटी के बाढ़। एहू से धन ना घटे त कर बड़न से रार। समय बदलल। कहावत के अर्थ बदल गईल। एह कहावत की एक बात पर अबकी लेख देखल जा। चीक धन। लोग कहत रहे चीक के दिन भर के खरीद बिक्री, काट-पिट के बेचला की बाद बखरा में मुड़ी-गोड़ी ही बचेला। शाकाहारी इंसान भईला की नाते चीकधन पर बहुत ना अध्ययन बा न ज्ञान। बस एतना जानिला कि हमरा समाज में जे खाये वाला बा, उ रेतल आ झटका दूनो से अपनी पेट के कब्र भरेलें। भाई चारा बढवला की चक्कर में ईद-बकरीद पर कवना-कवना जीव के मांस घोटेलें ऊ जाने। लेकिन दूसरा पक्ष के लोग उ कट्टरवादी हवें, जे भूखे रहि जईहे लेकिन झटका के माल ना गटक सकेले। रउरा से बड़ा बनत होई त काली माई के खस्सी चढ़ा के खिया के देखा दीं। बकरी त बस आप बात कहे के बहाना बा। मूल बात मीट कारोबारिन पर बा।  शनिचर के आंख तब खुलल जब यूपी की मीट कारोबारिन पर लखनऊ, उन्नाव आ बरेली में इनकम टैक्स के छापा पड़ल। मुड़ा-गोड़ी के बात छोड़ीं ,1200 करोड़ के त काला धन मिलल। एक हजार करोड़ जईसन छोटवर रकम के हिसाब किताब भला के राखी? बीस मांसकट्ट पर खट्ट से कार्रवाई हो गईल। अब शुरू त शुरू। हर जगह होई। चाहे केतनो लोग रोई। कबीर बाबा पहिलही कहि गईल रहलें- ....ताको कवन हवाल। स्लाटर हाउसन में का-का कटेला। ई जनि पूछीं। जे मीट खात होई उ चिंहत होई। बाड़ जब खेत खाई, नाव जब नदी लीली त कवनो सरकार त जागी। खइहें हिंदुस्तान के गइहें पाकिस्तान के, ऊपर से टैक्स चोरी त अब ई सीनाजोरी ना चली। देश आज तक इहे गुत्थी सुलझावत रहल कि पर्यावरण की सुरक्षा खातिर हर साल नेता लोग जवन पेड़ लगावल उ अगिला साल काहें ना दिखल। लोग कहत रहलें, नेता जी पेड़ लगवले, बकरी चर गईल। सुबह बकरी ही नेताजी की पेट मे समा जात रहल। यह देश में ज्यादातर नेतन के पेट बड़हन, हाजमा दुरुस्त। देश के तमाम नेता तमाम दल में रहेलन लेकिन उनकर सलाटर हाऊस के कारोबार हमेशा साम्प्रदायिक सौहार्द के मिसाल खड़ा करेला। देश में अगर जांच-पड़ताल, छापा-छापी ना पड़ी त पाप से पर्दा ना उठी। मीट कारोबार के घटिया काम जे समझत होखे उ समझे। मांस बेच के सोना उगावत हवें। खाल बेच के माल बिटोरत हवें। हजार-लाख त उनकी पान की पिक की बरोबर बा। कहीं पिच्च से मार दीहें।  हिंसा के कारोबार ऊपर से कुर्त्ता झकासदार अब दुनों एक साथ ना चली। टैक्सचोरन पर भी बुलडोजर चले के चाहीं। केहू खात-खात मरी, केहू खइला बिन मरी? अब ई ना होई। सरकार खइला बिना ना मरे दी। लेई एक साल ले फिर चापी सभे मुफ्त के माल। ओने होखें दी हलाल करे वालन के हलाल।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

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