खिचड़ी के चार यार...
हाल बेहाल बा / एन डी देहाती
मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बेहाल बा। पहली तारीख से लुकाईल सूर्य भगवान लुकाईले-लुकाईले दक्षिणायन से उतरारायन हो गईलें। मकर संक्रांति आ गईल। आजु की ही दिन बड़ी तपस्या कईला की बाद भगीरथी महराज गंगा जी के धरती पर ले आईल रहलें। अब ओही गंगा मईया में बनारस से बंगाल तक क्रूज विलास ...। जवना देश में गरीबी की नाम पर मुफ्त राशन बॉटल जाता ओही देश में 51 दिन गंगा मईया की गोद में फाईफ स्टार के मजा 50 लाख में लेई सभे। घर में भूजल भांग ना, कोठा पर गज झुम्मर। विविधता भरल देश में खिचड़ी के बहार बा। रोज नया-नया खिचड़ी पकता। साधारण सी खिचड़ी पकत-पकत चैनल की कुकरझाऊ में भी मशहूर बा। एगो जमाना रहे, जब कवनो काम में बिलम्ब भईला पर लोग कहे- का बीरबल के खिचड़ी पकावत हवा। राजतंत्र से लोकतंत्र की यात्रा के बीच ई खिचड़ी, आपन खिचड़ी अलग पके लागल। वामपंथी दिमाग में अलग, दक्षिणपंथी में अलग। दिन भर केतनो खिचड़ी पका ल, अगर रात के सकूं के नींद नईखे त सब खिचड़ी बेकार बा। पहिले कहल जात रहे- खिचड़ी के चार यार, घी-पापड़, दही-अंचार। ई त खाये वाला खिचड़ी के यार रहलें। दिमाग में पकत खिचड़ी के भी चार यार बाड़न। नफरत, झूठ, प्रलोभन आ भ्रष्टाचार। साँच कहीं त सत्ता से लेके विपक्ष तक खिचड़ी के एहि चार यारन की सहारे लोकतंत्र की गंगा में डुबकी लगा तर जात हवें। चैनलन पर तरह-तरह के खिचड़ी पकत बा। सुप्रीम कोर्ट ले इहे बात कहत बा। राजनीति में भी खिचड़ी बहुत प्रिय बा। देश में खिचड़ी सरकार तक बन जाता। विपक्ष भी खिचड़ी बनत बा। आम जनता बेरोजगारी, महंगाई, दाल-चावल, आटा-सब्जी, नून-तेल, डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस के सोचत बा, आ नेता लोग स्वार्थ की खिचड़ी में लागल बा। हंडा-बटुला, तसला से शुरू कुकरयुग तक पकत खिचड़ी अब दिमाग में भी पकत बा। अदा पर फिदा हो जाईं जब चांदी की चम्मच वाला लक्खू फार्च्यूनर से उतर के सहभोज में भिक्खू की बगल में बईठ के खिचड़ी खात हवें। समरसता के रस से सराबोर समर्थक जयकार लगावत हवन। खिचड़ी महज एगो व्यंजन ना, हम्मन के पर्व भी ह। आईं सभे एके मिलके मनावल जा। लाई-दही के नाश्ता आ खिचड़ी के भोज, अईसन त्योहार भला कहाँ आई रोज।
पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।
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