रविवार, 8 जनवरी 2023

एन डी देहाती : भोजपुरी व्यंग्य 8 जनवरी 23 को जनादेश में

का ए भोला! पकड़ के लोला...

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती


मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बड़ा बेहाल बा। एगो चुम्मा पर बड़हन बवाल बा। मोहब्बतवादी और नफरतवादिन की द्वंद में चारों ओर मनई भुलाइल बा, आ चुम्मा छवले बा। सार्वजनिक स्थान पर चुम्मा पर कानून बने के चाहीं। बात बहुत पुरान ह। लोदी गार्डन में एगो नौजवान जोड़ा बईठल रहे। उ समझत रहलें झाड़ी की आड़ से केहू का कुछ ना लउकी। पुलिस के एगो खासियत ह, खुलेआम होत कारनामा ओकरा भले ही न दिखाई दे, आड़ वाला हर काम ओकरा साफ लउकेला। नौजवान जोड़ा आपस में चोंच मिलवलें, पुलिसवाला हाजिर हो गईलें। चल, पार्क में चुम्मा लिहले ह, पांच सौ दे दे नाहीं त थाने ले चल के कूटब, तोहरा माई के बोलाईब, सब बात बताईब। मतलब सार्वजनिक स्थान पर चुम्मा के भी रेट निर्धारित बा। ठीक एही तरे देश में टीवी पर कुकुरझाऊँ होता। भोला के रउरा सभ जानते हईं, केतना भोला हवें। कुछ न कुछ अपनी भोलापन में एइसन क देलें कि बहस बढ़ जाला। लोदी गार्डेन के सिपाही आ चैनल के चाकर कुछ एके नीति रीति पर चलेंलें। सिपाही के दाम फिक्स बा। चाकर के काम फिक्स बा। भोला अपनी सगे बहिन के लोला पकड़ के चुम्मा का ले लिहलसि, ऊपर से चाकरन के काम फिक्स हो गइल। बड़ बहस शुरू। बर्बाद होत समाज। बहुत बुरा असर पड़ल नवहन पर। माथे क चुम्बन शुभ होला। गाल के चुम्मा बवाल के कारण होला.. । आदि तमाम विषय पर ज्ञान क उल्टी-दस्त करत लोग आपन विचार बतावत रहलें। सूप त सूप, छिहत्तर छेद वाली चलनियो हंसत रहे। उ बेचारा मोहब्बतवादी बन के धावत रहे। एहर नफरतवादिन के मौका मिलल, कवनो ओकरा घास-फूस जईसन उगल दाढ़ी पर, कवनो ठंड में खाली टीशर्ट पर नख से शिख ले आलोचना ही आलोचना। केहू छिछोरी आदत बतावे, केहू संस्कार विहीन। राई जईसन छोटवर बात, जवना में एगो भाई अपनी बहिन के पछिमी सभ्यता की हिसाब से प्रेम प्रदर्शित क दिहलसि, पहाड़ बना दिहल गईल। जेकर मन चंगा बा, ओकरा खातिर त कठवती में गंगा बा। जेकरा मन में विषय के बिकार बा ओकरा त प्रेम के भी रूप बदलल लउकी। जेकरा आदत नईखे ओकरा चंदन भी चराला। दरबारीकरण बन्द क के लोकतंत्र की खुबसूरती खातिर विपक्ष के भी निक काम के प्रशंसा होखे के चाहीं। चाकर बन के चारण वाला काम शोभा नईखे देत। सत्ता के ढिढोरची बन के ओकर अच्छा काम बतवला की साथे कमी भी बतावे के परी। केहू की इशारा पर नंगई, हुड़दंगई  के कीर्तिमान मत रचीं। चुम्मा-चाटी के बात छोड़ीं। गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी की मुद्दा पर आईं। देश में केहू के कोट पेरिस में धोआत रहे, केहू आज दिन भर में तीन कोट बदलत बा।
पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

 
 


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