रविवार, 22 जनवरी 2023

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 22 जनवरी 23

बांस की पुलईं चढ़ल लंगोट

हाल बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बेहाल बा। बड़ा बवाल बा। जेतना विश्वास बा, ओहसे दूना उपहास आ तिगुना अंध विश्वास बा। तरह-तरह के नहान बा। शनिचर के मौनी स्नान रहल। जाड़ा में पखे-पखे स्नान की ध्यान में लगल रहली, जाड़ा में नित्य नहानम-देहि  खियानम के प्रबल समर्थक हईं। दु दिन पहिलहीं दंगली लोग घमासान मचा दिहल। जे कबो अखाड़ा के मुंह ना देखले होई, अखाड़ा के माटी गर्दन पर ना रगरले होई उहो ज्ञान बाँटत बा। टीवी चैनलन पर चोकरधों मचल बा। डिबेट में अईसन- अईसन ज्ञानी लोग ज्ञान बांटत बा जे कुश्ती कला के एबीसीडी नईखे जानत, उहो मल्ल युद्ध के ललकार करत बा। हम गाँव के गवाँर मनई बहुत कुछ त ना जानीलें, लेकिन पोखरा की किनारे अखाड़ा पर पहलवानन की मुंह तरह-तरह के दांव सुनले हईं। लंगड़ी से लेके धोबियापाट तक। बहरा, चपरास, निकास, बाजा, ढांक, एकहरा पट्ट, दोहरा पट्ट, ईरानी, सखी, मुल्तानी, मुरेठी, गदहलत्त, चरखा, बाहुपुरी सहित तमाम प्रकार के दांव जवन अखड़ईत ना जानत होइहें उ पॉलिटिशन जानत हवें। कुश्ती कला की साख पर, इज्जत-पानी ताख पर रख के कीचड़ उछलत बा। हमाम में सब नंगा होके नंगई करे पर लागल बा। साँच कहीं त यह राजनीतिक दंगल से पहलवानन के लंगोट जवन मजबूत करेक्टर के पहिचान रहल ओके अपनी बिजनेश-व्यापार खातिर कुछ लोग बांस की पुलईं चढ़ा दिहल। साँच के आंच केइसन। समय लागी सब साफ हो जाई, दूध के दूध आ पानी के पानी। बस एगो सवाल मौनी आमवस्या के मौन तोड़ता। जब शोषण होत रहे तबे काहें ना मुंह खोलल गईल? आपन नेता जी भी कहत रहलें-मुंह खोलब त सुनामी आ जाई। सांझ ले उहो मुंह ना खोललें। अपन चोंगा-चोंगी लेके गईल मीडिया वाला लोग मुंह लटकवलें आ गईलें। मसाला ना मिलल त बकइति कईसे करीहें। छोड़ीं इ सब बात। इ सब राजनीतिक कुश्ती ह। दलवे के लोग दलवे की लोग के ढहावला में लागल बा। शीतऋतु समापन को ओर बा। बसन्त के आगाज होखे जाता। मौन रहीं, मौनी अमावस्या के 'सी-सी' करत नहान के भी मनाही ह। जाड़ा में देहि पर एक लोटा पानी पड़ते मुंह से हनुमान चालीसा स्वतः निकर जाला, पर ओहू के मनाही ह। रोज़ नहइला से सुनल जाला की स्फूर्ति आवेला, काम में मन लागेला, दिमाग तेज होला। मौनी अमावस्या पर मौन स्नान से पुण्य मिलेला। पुण्य कमाईं। पाप के बात बतिआवल छोड़ीं।

पढ़ल करीं रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

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