पूस के रात हवे
करेजा कँपात हवे
हाल- बेहाल बा / एन डी देहाती
मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बेहाल बा। पूस के रात बा। करेजा कँपात बा। कागद के पेट लिख- पढ़ के भरात बा। पैसा भजावल जाता। आदमी सतावल जाता। सर्दी के सितम बा। कोहरा के कहर बा। हिलत-कांपत, खोंखत-खांखत कइसो रजाई से बाहर निकरलीं। घर से बहरियाते कोहरा की मार से करेजा कांप गइल। खबर जरूरी रहे। सड़क पर निकर गइलीं। नगर निगम बहुत उदारता देखवलसि। एतना लमहर-चाकर महानगर में छह जगह अलाव जलवा दिहले। रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, जिला अस्पताल पर पचास-पचार किलो के लकड़ी के गट्ठर गिर गइल। अलाव जरावल बहुत पुण्य के काम ह। ठंड से मारल मनई आग सेंक के जीवन रक्षा करेलन लेकिन बहुत लोग अलाव की आंच से हाथ सेंकला से ना चुकेलन। अइसन लोग के ‘ हथसेंकवा’ कहल जाला। पिछला साल कुछ ‘ हथसेंकवा’ रात के पिकप लेके निकरल रहलें। पिकप पर एक ड्रम पानी आ एगो मग्गा। जहां भी अलाव लउके, गाड़ी रोक दें। पानी से तरप्याम। झट से लकड़ी बुझाम। लकड़ी गाड़ी पर लदाम फिर भाग जाम। राजघाट पर लकड़ी बिकाम, पैसा से जेब धराम। अलाव जलावे आ जलवावे के भी एगो मैनेजमेंट होला। झोपड़पट्टिन की आरी-पासे अलाव अइसे भी ना जरावल जाला, कहीं आग पकड़ ना ले और झोपड़ी स्वाहा न हो जा। अखबारन की दफ्तरन पर अलाव जरावल येह लिए भी जरूरी रहेला कि पत्रकारन के नजर बने आ खबर बने। कुछ जबरा लोग सार्वजनिक स्थल से लकड़ी लूटला के अभियान चलावेलन। काहें कि ठंड की सीजन में बेर-बेर पॉकिट में हाथ डलला आ निकरला के दृश्य अक्सर पुलिस बूथ पर लउक जाला। ईधन की महंगाई से परेशान कुछ मेस चालक भी रात में ‘ हथसेंकवा’ हो जालन आ चौराहा के लकड़ी चट्ट से किचेन के यात्रा कर लेली। वइसे त ठंड प्रकृति आ मौसम के चक्र के परिणाम ह लेकिन ठंड से बहुत फायदा भी होला बहुत लोग ‘ हथसेंकवा’ बन जालें। अलाव जलावे के लकड़ी की खरीद- फरोख्त में भी हाथ सेंके के मौका मिलेला। ओदा लकड़ी सूखा के भाव। सूखा लकड़ी त रात भर टूल्लू पाइप से लकड़ी भेंवला के इंतजाम। मुंह तोपना सीजन। चोरन के लहान। समाजसेवा के भी भरपूर अवसर। गरीबी के उपहास उड़ावे फिर उज्जर कुर्ता वाला आ गईलें। सत्तर साल से गरीबी मिटावत हवें। आजुओ लोग कम्बल खातिर दरिद्र ही रहि गईल। कम्बल बंटवा पाँचे साल की कुर्सी पर बईठल त साइकिल से फार्च्यूनर पर आ गईल। कंबल बांट के चाहें,अलाव जलवा के फोटो अखबारन में छपवावे के लहान आ आईल बा। ई हे न समाज सेवा ह। एहि समाजसेवा कईला की बलबूते मेवा खाये के मौका मिलेला। विरोधिन के भी बकइती के पूरा मौका बा। सत्ताधारी कहत हवें- ठंड में टीशर्ट पहन के पैदल चलता। उ भारत जोड़ता। विरोधी कहत हवें-माई की मुअला के सूतक नईखे मिटत, तबो राजपाठ में नया काम खरमास में भी होता।
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