मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

अनाज सड़sता, लोग खइला बिना मरsता

आपन भारत देश केतना सुन्नर केतना सुघ्घर। लेकिन व्यवस्था केतना चौपट केतना खराब। देश में अनाज सड़sत। उ अनाज जवना के पैदा कइला में किसान भगवान आपन खुन पसीना एक क s दीहलें। फार्म हाउस वाला, सिलिंग वाला, सीमान्त वाला आ लघु कृषक कहाये वाला कई गो श्रेणी बा। खइला बिना मरे वाला में भूमिजोतक, खेतिहर, मजदुर टाइप के लोग बा। अइसन लोग जवन अपनी जांगर से धरती माई के करेजा चीर के अन्न उपजावत बा। एतना अन्न, जवना के धरे खातिर देश में सुरक्षित भंड़ार ना बा। अनाज सड़ला के चिन्ता जब अधिकारी से लेके मनिस्टर तक का ना भईल, तब सुप्रीम कोर्ट के रुख करेड़ भईल। कोर्ट पूछलसि-अनाज सड़ावे वाला जिम्मेदार अधिकारिन पर कवन कार्रवाई भइल? कोर्ट कहता अनाज गरीबन में बांट  दिहल जा। वित्त मंत्रालय कहता अनाज दूसरा देश में बेंच दिहल जा।
गांवन से खेती-बारी छोड़ के नौकरी रोजगार की तलाश में दर-दर भटकेवाला नवहन का एक बेर सोच के चाही। जेकरा लगे कवनो काम ना बा उ खेती में जुटल बा, जेकरा खेती बा उ ओमे लागल बा। खेती के उत्पाद क्षमता एतना बढ़ल बा कि भंड़ारड के समस्या आ खड़िआइल बा। भारत में जेतना गोदाम बा ओहसे तीन गुना अनाज उत्पादन बा। देश के कवनो फैक्ट्री एतना उत्पादन ना दे सकेलिन कि उनकर तीन गुना माल गोदाम की बहरा सड़ि जाव। ग्राम, किलोग्राम, पसेरी, मन, कुन्तल ना टन में अनाज सड़ला। सरकारी लेखा जोखा सात हजार टन अनाज सड़ला के बात कहत लेकिन मात्रा अधिक भी हो सकेला। देश के व्यवस्था जेकरा हाथ में बा ओकरा एक बेर फिर सोचे के चाहीं कि येह अनाज के उपयोगिता बढ़ा दिहल जा, सड़ला से बचा लिहल जा। अनाज वितरण के जवन वर्तमान व्यवस्था बा उ ठीक ना बा। स्कुलन में जवन खाद्यान्न दिहल जाता, का ओकर सही उपयोग होता? प्रधान, कोटेदार आ प्रधानाध्यापक के तिगड़ी खाद्यान्न के व्यापारी की हाथ में पंहुचा देत हवें। सस्ते रेट से  जब व्यापारी अनाज पा जाई तs कवनो गोदम से काहें उठाई। देश में वास्तविक लोग बीपीएल कार्ड की  अभाव से जुझता लेकिन प्रधान  अपनी चहेतन के ललका, उजरका कार्ड थमा देले हवे जवना पर मुफ्त चाहें सस्ता अनाज मिली। उ जरुरतमन्द ना हवें एहलिए कोटेदार उनकर खाद्यान्न बाजार में अनाज पंहुचा देत हवें। सस्ते दर पर जब बाजार में अनाज पंहुचा तs मंहगा दर पर गोदाम से काहें उठान होई। एह तरे कई गो कारण बा जवना से अनाज सड़त बा। जरुरत येह बात के बा कि असों की कार्तिक से किसान भाई खाये भर के ही गेँहु बोएंस। शेष खेत में दलहन , तिलहन आ सब्जी के खेती कइला के जरुरत बा। अनाज सड़लवा से बचाई सभे।, खेती के और उपयोगी बनाइ सभे। खेती ज्यादा बा तs कुछ बाग-बगीचा भी लगाई सभे। अनाज के रक्षा खाली किसान भगवान कs सकेलन। देश के सफेदपोश राजनेता आ कमीशनखोर अफसर अनाज के हाल का जनिहे। अनाज के हाल खाली किसान जानि सकेला। अनाज सड़ला के दर्द खाली किसान जानि सकेला। कहावत सही बा..... ‘जेकरा पांव नs फटी बेवाई, उ का जाने पीर पराई।‘
एन.डी.देहाती

लौन्डा पहिले बदनाम भईल

मुन्नी आज बदनाम होत हई, लौन्डा पहिले बदनाम भईल..
घनेसर काका की मुंह से, बलेसर भइया की मुंह आ पिन्टुआ की मुंह से एकै गाना- ‘ मुन्नी बदनाम हुई... ।’ दरअसल आवे वाली फिल्म ‘दबंग’ के दबंगई के असर बा कि जन-जन की जुबान पर मुन्नी के चर्चा बा। मुन्नी की चर्चा पर घरघूमन लाल का एतराज बा। कहत हवें मुन्नी आज बदनाम होत हई, लौन्डा बहुत पहिले बदनाम हो गईल। अपनी जवानी के दिन के पन्ना पलटत बतवलें कि लौन्डा कइसे बदनाम भईल रहे नसीबन खातिर। चार दशक पहिले इ गाना नाच-नौटंकी में हल्फा मचवले रहे ‘ लौन्डा बदनाम हुआ, नसीबन तेरे लिए। सेर भर आटा होगा, जंगल की लकड़ी होगी, पकापक पकता होगा नसीबन तेरे लिए...।’ मुन्नी की आइटम सांग की पहिले बहुत गरमा-गरम मसाला के टेस्ट लोग ले लेले बा। याद ना होखे त बतावत हईं। 1975 में आइल ‘शोले’ में हेलन हिला के रखि दीहली, जब गवली- महबूबा-महबूबा...। 1993 में एगो फिल्म आइल रहे ‘खलनायक’। माधुरी दीक्षित डांस करत रहली। गाना बजत रहे ‘चोली के पीछे क्या है...। ’ 1999 में आइल ‘शूल’ में शिल्पा शेट्टी जब ‘आई हूं यूपी बिहार लूटने...।’ पर ठुमका लगावल शुरू कइली त बन्दा से बर्दास्त ना भइल आ सिनेमा हाल में अपनो ठुमका लगावे लागल। शिल्पा यूपी बिहार वालन के लूटत रही आ बन्दा के जेब कवनो जेबकतरी साफ क दिहलसि। 2005 में ‘बंटी-बबली’ एश्वर्या राय पर फिल्मावल गाना- ‘कजरारे-कजरारे तेरे कारे-कारे नैना...।’ घर मे गावत घुसलीं त पतोहिया हमरे मलिकाइन से कहलसि, बाबुजी के रहन ठीक ना बा। 2006 में ‘ओमकारा’  फिल्म के जयकारा हर जगह लागल। अबो लागत बा। बिपाशा बसु की जिगर में एतना आग रहल कि केतने बन्दा ‘बीड़ी जलइले, जिगर से पिया, जिगर मा बड़ी आग है...।’ से जरि गइलें। कहला के मतलब इ बा कि मुन्नी की बदनामी आ लौन्डा की बदनामी के बीच में बहुत लोग बदनाम हो चुकल बा। ‘दबंग’ के इ गाना कहिया ले हीट रही भगवान जाने। लेकिन शोले के ‘महबूबा-महबूबा’ जब भी कहीं बजेला त बुढ़ौती में हमार टंगरी ठुमका लगावला की पोजिशन में आ जाले। देहि में करंट आ जाला। घर में फजीहत भइला की बाद अब कभी कजरारे गावे के मन करेला त दहिने-बाएं देखि के तब गुनगुनालीं। खैर! आपन बतकही बन्द करत इहे कहब- लौन्डा बहुत पहिलहि बदनाम रहल नसीबन खातिर!
 
एन.डी.देहाती

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

बोलता बोकवा, ना बोलत बाड़ी पाठी

कातिक चढ़ल बा। बावग खातिर धरतीपुत्र लोग परेशान बा। धरती माई कs कोरव भरी, तबे देश में लउकी हरीयरी। हरीयरी खातिर उत्तम प्रजाति के बीया आ असली उर्वरक जरुरी बा। दुर्भाग्य इ बा कि दूनो के अकाल हो गइल बा। किसान भाई लोग रात-रात भर जाग के बारी आवत बा तs लाठी गिरत बा। समूचा पूर्वाचल में इहे हाल बा। प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री, जेकरा खेती से कवनो वास्ता नेइखे एसी कमरा में बइठ के रोज बयान देत हवें कि खाद-बीज के कवनो कमी हा बा। अरे मंत्री जी! इ तs उ हाल बा ‘घर में भुजी भांग ना, कोठा पपर त घम्मगूज्जर।‘ एगो सवाल बा- अनाज पैदा करे वाला किसान भगवान के लाठी से पूजा करावे के अधिकार के देले बा? पुलिस कहति बा- किसान कानून व्यवस्था बिगाड़त हवें तs लठिआवल जरुरी बा। अरे भाई! जब अभाव रही तs लोग के स्वभाव बदल जाई। पर्याप्त मात्रा में खाद-बीज रहित तs काहें लोग हगांमा करित। किसान तs वइसे ही गांव-गिरावं के सीधा-सपाट मनई होलन। किसानन के लोग बउक कहेला। कुछ लोग बोकवा कहेलन जवना परिवार खेती-बारी में अझुराइल बा उ बेकवे बा। सूखा, बाढ़, बेमारी, आग-पानी से फसल के बचावत में एड़ी के पसीना कपारे चढ़ावे के परेला। जोताई, बोआई, निराई, पटवन, कटिया, दवंरी की बाद किसान भगवान अन्न के दाना पैदा करेलन। जेकर कातिक के समहुले लाठी खइला से होई उ आगे का करी। सदा चुप्प रहे वाला बोकवा बोलता, संघर्ष करत बा, मांग करत बा, हमके खाद-बीया चाहीं। लेकिन सरकार ‘पाठी’ अइसन चुप्प मारी के पगुरी करति बा। चारो ओर हाहाकार बा। ‘कमाई धोती वालास, खाई टोपी वाला, के संस्कृति बदले के परी। हेलीकाप्टर से धरती के हरियाली निहारे वाला खद्दरधारी लोग के भगवान सदबुद्धि दें। किसान पर लाठी चलवा के जुबान बन्द करावल जा सकेला लेकिन आह निकरी तs परी।
एन डी देहाती

सोमवार, 8 नवंबर 2010

हाय रे आगनबाड़ी.........

भोजपुरी संगीत के समारोह में देवरिया जिला की नदौली गांव के सोनू शांडिल्य नाम के एगो लइका गवले रहे- “बारह सौ के नौकरी, पहिने पन्द्रह सौ के साड़ी, हाय रे आगनबाड़ी....”। गाने के लाइन व्यग्य भरल रहल। एगो सवाल भी उठावल गइल रहे कि बारह सौ रुपया पगार पाये वाली मेहरारु अगर डेढ़ हजार के साड़ी पहिरी तs घर-परिवार के और खर्चा कइसे चली। कुशीनगर की विशुनपुरा थाना की दुदही ब्लाक में घराइल 128 बोरी पोषाहार येह बात के साबित कs दिहलसि कि आगंनबाड़ी की साड़ी की पीछे इहे राज बा। दरअसल, सरकार गांव-गांव आगंनबाड़ी केन्द्र खोल के नौनिहालन के पोषाहार खियाके पट्ठा बनावला में पावनी अइसन पइसा बहावति बा। लेकिन येह विभाग में भष्टाचार के आलम इ बा कि गरीब लइका-लइकी, आ गर्भवती मेहरारु का हिस्सा वाला पोषाहार खुला बाजार में बेचल जाता। सोमवार य़ानि पहली नवंबर 2010 के एगो पिकप गाड़ी पर लदल 128 बोरा पोषाहार पडरौना- तमकुही मार्ग से बिहार की ओर जात रहे। कुछ जागरुक लोगन के नजर पड़ल। सोचले यूपी की माल से बिहार के लोग मोटाई। अइसन ना होखे दिहल जाई। जागरुक लोगन के पारा गरमाइल, पिकप रोकाइल। विशुनपुरा थाना के सौंप दिहल गईल।
गजब व्यवस्था बा। गांव-गांव आगंनबाड़ी केन्द्र खुलल बा। केन्द्र पर ना लइका लड़केलन ना मेहरारु। लेकिन हर महीना पोषाहार जरुर मिलेला। कागज पर चले वाला अइसन केन्द्र पर लाखौं के न्यारा-बारा होला। लइकन को पुष्ट बनाने वाला पोषाहार 125 से 150 रुपया बोरी बेचि दिहल जाता। एतना सस्ता तs अपने देश में नमक भी ना मिलेला। लइकन-बच्चन-मेहरारु के पोषाहार बाजार में बिकाइला की बाद फिर खगिददारी की माध्यम से गांव में पहुंचेला, जहां जानवार के आहार बनि जाला। भूसी, चोकर, खरी- खुद्दी. दाना-चारा की जगह पर पशुपालक अपनी जानवरन के पोषाहार खियावत। पन्द्रह सौ की साड़ी वाली आगंनबाड़ी की येह कमाई से ब्लाक मुख्यालय से लेके जिला स्तर तक के अधिकारी मलाई काटत हवें। का जरुरत बा? अइसन योजना के। जरुरतमन्दन की अइसन सरकारी योजना के बन्द कs देवे के चाहीं। नाहीं तs गीत के मथेला वाली लाइन गड़बडा के गावल जा- “बेचि के पोषाहार, लिपिस्टिक झारत बाड़ी, हाय रे! आगंनबाड़ी।
                                                                                                    एन .डी. देहाती

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

सरग में रोवत होइहन मालवीय बाबा


 

 

दोहाई बाबा गोरखनाथ के! आंख खोलीं...

         मालवीय बाबा कहिन तो पंडित मदन मोहन मालवीय। मालवीय बाबा सरग में रोवत होइहन। शेवला के कारण अभाव, महंगाई गिरत कानून व्यवस्था ना, उनकी नाम पर बनल गोरखपुर की इंजीनियरिंग कालेज में 31 अक्टूबर 2010 के भइल एगो प्रतियोगिता। प्रतियोगिता के नाम रहल- ‘लव लीप लिपिस्टिक प्रतियोगिता’। कालेज के वार्षिक समारोह टेक सृजन 2010 में जवन कुल भईल, येह षिक्षा मंदिर के शर्मसार करे खातिर भईल। घरघूमन लाल घर से घूमत निकरलें त मालवीय बाबा की येह षिक्षा मंदिर के येह शिक्षा मंदिर में घुस गइले। लइका-लइकी (जवन इन्जीनियर बनि के आज बाहर निकलिहन) कवन लीला करत रहलें इ देखी के दीमाग चक्करघिन्नी नाचि गइल। जब शिक्षामंदिर के इ हाल बा त अवर जगह का होत होई। आईं, कुछ दृश्य बतावत हई जवन जेहन में अबो हथौड़ा अइसन बजत बा। एगो लइका (भावी इंजीनियर) अपनी दांत में लिपिस्टिक दबा के सामनेवाली लइकी (भावी इंजीनियर) के होंठ रंगत रहे। अइसन सीन खुल्लम खुल्ला, सबकी नजर के सामने, एगो समारोह में। एगो लइकी हाथ में बिन्दी लेके आंख बन्द क सामनेवाला लइका की लीलार पर सटला के प्रयास करत रहे। एगो दूसर लइकी आंख पर पट्टी बन्हले सामने वाला लइका की कपार पर रखल घड़ा में पानी डलला के प्रयास करत रहे। अइसन-अइसन प्रतियोगिता देखि के सोचली मालवीय बाबा जरूर सरग में रोवत होइहन। भारतीय समाज से संस्कार आ संस्कृति के जनाजा उठत जाता। बेशर्मी भरल अइसन प्रतियोगिता में हिस्सा लेबे वाला लइका-लइकी से इ समाज का पाई।
जे कालेज के जिम्मेदार लोग रहे, उ इ प्रतियोगिता रोकला की जगह बइठ के लुफ्त उठावत रहे जइसे कवनो सिनेमाहाल में ‘ए’ टाइप के पिक्चर देखत होंखे। दोहाई बाबा गोरखनाथ के। नाथ संप्रदाय के देवता! रउरी धरती पर इ सब का होता? अइसन पढ़ाई कब तक चलीं जवना में लव, लीप आ लिपिस्टिक के बोलबाला रही। बाबा! तकनीक की शिक्षा मंदिर में सृजनात्मक क्षमता के प्रदर्शन होखल चाहत रहे, लेकिन एइजा त ‘भडु़अई’ होता। आंख खोलीं आ अपनी मूल सूत्र ‘जाग मच्छन्दर गोरख आया’ में तनि सा परिवर्तन क के एक बेर उद्घोश करी- ‘भाग रे भड़ुए! गोरख आया’। रउरी येह उद्घोश से सरग में रोवत मालवीय बाबा के आंसू रुक सकेला। गोरखपुर की संस्कृति आ समाज के बचा लीं बाबा गोरखनाथ।

पइसा मिले त कंडक्टर गोला-बारूद पहुंचा दीहें...

                               सत्ताइस अक्टूबर 2010 क दिन रहल। गोरखपुर बस स्टैंड, देवरिया बस स्टैंड पर कुछ माल उतरल। माल मतलब मिलावट क सामान। माल के मालिक केहु ना। माल कानपुर से गोरखपुर आ देवरिया वइसे ही पहुंचल। रोडवेज की कन्डक्टरन के महिमा अपार ह। पइसा पा जायं त गोला-बारूद पहुंचवा दें। तमकुही राज से दिल्ली तक गांजा पहुंचवला के बाति सुनले रहलीं। कंडक्टर नाम के जीव बहुत रिस्क लेलन। बिना टिकट के यात्रा करावल, यात्री के किराया अपनी जेब में घुसावल बहुत सुनले रहलीं। लेकिन सत्ताइस अक्टूबर के गोरखपुर की बस स्टैंड पर जवन नजारा लउकल उ कबो ना भुलाई। फूड इंसपेक्टरन के टीम बस स्टैंड पर छापा मरलसि। कानपुर से आइल चार बस की तलाशी में 20 कुंतल नकली खोवा, 15 कुंतल नकली बुनिया आ आठ कुंतल फफूंदी लागल मशरूम मिलल। एतना सामान मिलल लेकिन सामान के मालिक नदारद रहलन। खाद्य विभाग के लोग सामान नष्ट करा दिहलन। उ लोग अपनी कर्त्तव्य के इतिश्री क दीहलन। देवरिया बस स्टैंड पर भी कानपुर से आइल नकली खोवा आ हलुआ धराइल। माल धरात बा। माल मंगावेवाला मिलावटखोर ना धरात हवें। दरअसल येह तस्करी के पीछे रोडवेज के ड्राइवर आ कंडक्टर के हाथ बा। जब कानपुर से माल लोड होला त गत्ता (बंडल) के हिसाब से कंडक्टर के पइसा पहिलही पेमेंट हो जाला। बड़का मिलावटखोर मोबाइल से बस नंबर आ कंडक्टर के नाम छोटका मिलावटखोरन के बता दे लें। माल के उतारी एकरा खातिर बहुत साधारण तकनीक अपनावल जा ला। कंडक्टर के पहिले ही माल की मालिक के मोबाइल नंबर बतावल जा ला। जब कानपुर से बस गोरखपुर-देवरिया पहुंचेला त छोटका तस्कर बस के इर्द-गिर्द मेरड़ाए लागेलन। दहिने बायें-झांक-ताक के कन्डक्टर के मोबाइल पर घंटी मारेलन। कंडक्टर नंबर के मिलान क के माल सुपुर्द क देलें। येह पूरा खेल में तस्करी के काम कंडक्टर ही करेलन। प्रति खेप पांच सौ रुपया उपरवार कमाई की फेर में अइसन कंडक्टर मीठा जहर ही ना गोला-बारूद, गांजा-भांग भी पहुंचा दीहें। सवाल इ बा कि जब माल धराइल आ माल के मालिक ना मिलल त ड्राइवर-कंडक्टर पर मुकदमा काहें ना लिखाइल... सबका पीछे पइसा बा। इ पइसा ह। परिवहन विभाग का भी मीठ लागेला आ खाद्य विभाग त इही खातिर बनले बा।

एन डी देहाती

शर्महीन शहर क संवेदनहीन घटना

             शर्महीन शहर येह मामला में कि सड़क पर झपट्टा मारन के संख्या बढ़ गइल बा। कानून के ठेंगा देखावत झपट्टामार माई-बहिन की गले से चेन, मंगलसूत्र कान के बाली, झाला, झुमका आये दिन नोचत हवें। सड़क से गुजरत दूसर राहगीर घटना देखत , लेकिन लफड़ा में नइखे पड़त। उचक्का लूट के आराम से चलि जात हवें।संवेदनहीनघटना! येह मामला में कि आज कवनोप्रिंसबोरवेल में गिरल रहित पूरा देश के संवेदना जागि गइल रहत। लेकिन येह छीनाझपटी में एगो गरीब महतारी के कोख उजड़ गइल। उचक्का की धक्का से गोद की बच्ची नाला में बहि गइल। लेकिन मामूली तलाशी की बाद प्रशासन हाथ खड़ा दिहलसि, उजड़ल कोखवाली एगो महतारी के दिलासा देके अपनी कर्तव्य के इतिश्री दिहलसि। लूट के येह घटना में एगो बच्ची के जान चलि गइल। लेकिन वाह रे वर्दी! हमदर्दी में खाली लूट के घटना दर्ज भइल। बच्ची के मौत हजम।
पूरा वाकया सुनीं देवरिया जिला की तरकुलवा के संतोष अपनी परिवार के साथ गोरखपुर के तिवारीपुर थाना क्षेत्र के अधियारी बाग में रहेलन। संतोष गाड़ी चलावेलन। ओनकर मेहरारू सरोज अपने नौ महीना के लइकी पलक के गोद में ले के पीसीओ से फोन जात रहलीं। पति कहां हवें, कब अइहें? अइसन चिंता मेहरारुन के फर्ज ही ह। रेलवे लाइन के लगेवाला नाला की बगल में एगो बदमाशबाइकवाला नासाइकिल से जात रहे। सरोज की कान के बाली नोचे लागल। येह छीना झपटी में गोद में नौ माह के बच्ची पलक, पलक झपकते नाला में गिर गइल बह गइल। मामला पुलिस तक पहुंचल, कोरम पूरा कइल गइल, नाला छानल गइल लेकिन पलक के जिंदा चाहे मुर्दा ना पावल गइल। सरोज अइसन अभागी महतारी हो गइली। जवन जनम देहनी, जीवन देहनी, ममताभरल दुलार देहली लेकिन अपना पलक के ना बचा पवलीं। पलक प्रिंस के यथार्थ आंखी के सामने नाचै लागल। प्रिंस के खातिर पूरा देश के संवेदना जागि गइल रहे। सेना, अफसर, मीडिया सब जागल रहे। पल-पल जानकारी मिलत रहे, लोग आंख फाड़ के देखत रहे, लेकिन पलक के कहानी पलक झपकते समाप्त हो गइल। गरीब के बेटी रहल, नाला में बहि गइल। सरोज नाम की बदनसीब महतारी का अपनी मरल बेटी के लाश भी नसीब ना भइल।सबकी संतति प्यारी होती, सबकी उतनी ही धड़कन। आंसू का मोल बराबर है, धनवान हो चाहे निर्धन।
हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद