बाबा गोरखनाथ के दोहाई। रउरी धरती पर कवो धुई रमत रहे। योग के अलख जगत रहे। नाथ के महिमा गावत में लोग ना थकत रहे। श्रद्धा आ आस्था से लोग के सिर नवत रहे। देश-दुनिया में गोरखपुर के डंका बाजत रहे। धर्म के जयकारा लागत रहे। बुद्ध, महावीर, गोरखनाथ, कबीर की तप से पूर्वाचल के जर्रा-जर्रा पवित्र रहे। समय अस करवट लिहलसि की सब बदल गइल। गली-गली मांस-मछली-मुर्गा के दुकान खुल गइल। सड़क पर उधियात मुर्गन के पांखि, बिखरत बकरन के हड्डी, नाली में बहत पशु-पक्षी के लहू देखि के घिन लागत बा। सड़क की पटरिन पर खुलेआम कसाईगिरी होत बा। मांसाहार से बर-बेमारी त बढ़ते बा, एअरफोर्स का भी खतरा लगत बा। खतरा एह बाति के बा की कहीं कवनो पशु-पक्षी की हाड़-मासु पर चील मेरड़ाइल आ कवनो विमान से टकराइल त बहुत नुकसान होई। एअरफोर्स, जिलाप्रशासन, जीडीए आ नगर निगम के अफसर लोग बइठक कइलें। तय भइल कि रामगढ़ताल, कूड़ाघाट आ नंदानगर से मीट-मछरी के दुकान हटा दिहल जाई। रामगढ़ताल वाला पुल की दुनो ओर तरकुलहा माई की नाव पर हड़िया में पकवल ‘शुद्ध मीट’ के दुकान खुल गइल रहे। बड़े-बड़े लोग जीभ लपकावत आवत रहले, आ होटल में मांसाहार के मजा उड़ावत रहलें। अति के गति बढ़ल त प्रशासन की मति में मामला घुसल। जीडीए जागल, रामगढ़ताल के पुल की पास के दुकान ढहा दिहल गइल। जनम के बिगरी, जबे सुधरी। अब लोग पूछत बा- ‘ कूड़ाघाट में डेगे-डेगे जवन उड़ंतू (मुर्गा), डूबंतू (मछली), चरंतू (बकरी-बकरा)के मांस बिकात बा ओह पर नगर निगम आ जीडीए काहें मेहरवान बा?’ का करब भइया ! जवना नगर में मनई के जान सुरक्षित ना बा, ओहमा पशु-पक्षी की रक्षा के कवन ठेकान बा। सब ‘ एक हाड़’ (अपनी-अपनी हिसाब से अर्थ निकार लेइब सभे) की कारन होता । कुछ कवित्तई देखीं-
‘एक हाड़’ नौ कुक्कुर बजावे।
‘एक हाड़’ नौ चील बुलावे।।
‘एक हाड़’ का गजब है खेला।
‘एक हाड़’ पर लागे मेला।।
मछली बकरा मुर्गा हाट।
नाहीं कटाई कूड़ाघाट।।
रामगढ़ पुल से हटल दुकान।
गिरधरगंज में मेहरवान।।
जीडीए नगर निगम के नीति।
केहू से बैर केहू से प्रीति।।
गोरखनाथ के धरा पवित्र।
केतना बदलल भइल बिचित्र।।
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- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 3 मई 2012 के अंक में प्रकाशित है .
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