गुरुवार, 26 जुलाई 2012

तुलसी बाबा की कृपा से गदहो व्यास हो जाता..

तुलसी बाबा के शत-शत नमन। माई हुलसी के हजार बार गोहरावत हई, जवन अपनी कोख से अइसन रतन पैदा कइली जे भगवान राम के भी ‘ पुरुषोत्तम’ बना दिहलन। आत्माराम दूबे के करोड़न प्रनाम, जेकरा बून से परम संत के पैदाइस भइल। दुयरेग के अइसन घड़ी में तुलसी के अवतरण भइल जब मूल नक्षत्र चढ़ल रहे। जनमते कपारे अभागि चढ़ गइल। माई हुलसी के शरीर छूट गइल। पालन करेवाली मुनिया मरि गइल। बाबुजी आत्माराम चलि बसलें। बिपत्ति बखरा पड़ गइल। येने-वोने डोलत रामबोला पर संयोग सहाय भइल, नरहरिदास के कृपा बरसि गइल। हुलसी के बेटवा तुलसीदास हो गइल। रामचरित मानस अइसन ग्रंथ समाज के समर्पित करे वाला तुलसी बाबा रउरा धन्य बानी। सावन शुक्ल सप्तमी के दिन रउरा के याद करि के लोग धन्य हो जात बा। बाबा! राउर चार लाइन के चौपाई याद के दुपाया गदहा भी व्यास बनि जात हवें। तुलसी बाबा! रउरा फिर एक बेर अवतार लेई। आर्दश सिखावे खातिर। धरम-करम लखावे खातिर। गुरु-शिष्य, स्वामी-सेवक, मातु-पितु बचन के अनुरागी बनावे खातिर। भाई हित बदे राज काज त्याग तपसी जीवन के सीख देवे खातिर। कोल भील की भक्ति भाव में जूठ बेर खाये के नीति प्रदर्शित करे खातिर। ऊंच-नीच के भेद मिटा के गुह निषाद के गले लगावे खातिर। भ्रातृ सेवा में 14 वर्ष ले नीद नारि भोजन के परित्याग करे वाला की गुणगान खातिर। अहंकार के डंका बजावे वालन के लंका भालू-बनरन से जरवावे वाला श्रीराम की जयकार खातिर। राम के पुरुषोत्तम राम बनावे वाला तुलसी के बार-बार प्रनाम। तुलसी बाबा रउरे बतवलीं कि विप्र धेनु सुर संत हित लिन्ह मनुज अवतार। राम के चरित रचि के बाबा रउरा अमर हो गइलीं। आज फेर जरुरत बा रउरे अवतार के। परिवार बिखरत बा। सामाजिक मूल्य विदीर्ण होत बा। लोग आपन संस्कृति भुलात बा। धारण करे वाला धरम के आडंबर की आवरण में लपेट लिहल गइल बा। पंडित विद्वान गुनी जन के समुचित स्थान ना मिलत बा। मद्यप जुआर लंपट जन के वर्चस्व बढ़त बा। चुगला चिमचा चापलूस के मंतण्रा ही साहब शुब्बा का सुहात बा। सत्य ना जाने कवना गुफा में लुकाइल बा। लोग झूठ के गाल बजावत बा। जेकरा हाथ में लाठी बा, भैंस ओही के बतावल जाता। नर्तकी राज भोगत हई। सावित्री वन में बइठ के रोवत हई। सत्यवान के प्रान उनकी समनवे हरि लिहल जाता। अइसन समय में तुलसी बाबा के दुसरका अवतार जरूरी हो गइल बा। बाबा! राउर कृपा महान बा। हमरो जइसन गदहा मनई भी रउरी चौपाई की सहारे व्यास बनला के गर्व पलले बा। तुलसी जयंती पर हमरी ओर से इहे श्रद्धांजलि बा-
तु लसी बाबा की कृपा से, गदहो व्यास हो जाता। 
कामी क्रोधी क्रूर आ लंपट, मंच पर पूजल जाता।।
 चरित राम के सुना-सुना के, पइसा बहुत बटोराता। 
जीवन में चरितार्थ भले ना, पर वचन सुनावल जाता।। 
सावन शुक्ल सप्तमी आइल, फोटो पर मूड़ नेवाता।
 एक चरण चौपाई भी, जीवन में ना उतराता।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 26 /7/ 12 के अंक में प्रकाशित है .

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

‘खाकी-खादी-क्रिमिनल् का भइलन एकै संग?

बाबा गोरखनाथ के दोहाई। गोरखपुर के अपराध से बचाई। रउरा नगर में केहू सुरक्षित ना बा। दिन दहाड़े लोग लुटात बा, पिटात बा, मरात बा। रात में घरन में डकैती होता त दिन में सड़क पर लूट आ छिनैती होता। पुलिस सुति गइलि बा। बदमाश जागि गइल हवें। कानून व्यवस्था भले ध्वस्त बा, ‘खाकी-खादी-क्रिमिनल’ मस्त बा। चारो ओर त्राहि-त्राहि मचल बा। पुलिस लगातार पर्दाफास करति बा। अपराधिन के धरति बा। जेल में ठेलति बा। लेकिन अपराध रुके के नावे ना लेत बा। पुलिस की ‘ पर्दाफास कथा’ में छेद ही छेद बा। एतना अ-‘अपराधी’ पकड़ के जेल भेजा गइले, तबो अपराध ना रुकल। लोग कहत बा- पुलिस की बेंत में घुन लागि गइल बा। असलहा मुरचा गइल बा। पुलिस लउकति बा, लेकिन ओइसे जइसे खेत में खड़ा कवनो ‘ धोखा’ (बीजुका) होखे। धोखा से त जंगली जानवर आरी-पासी गइले से डेरा जात हवें लेकिन महानगर के बदमाश त सड़क के छुट्टा सांड अइसन पुलिस के लगवे से खुरचारी मारत, सिंगिवटत, रगरत, धकियावत चलि जात हवें। छोट-मोट चोरी छिनैती के बाति छोड़ीं,बड़वर कांड पर नजर डालीं। गुलरिहा थाना की संतहुसैन नगर कालोनी में श्यामाकपूर के हत्या करिके घर लूट लियाइल। पता चलल कि हत्या आ डकैती राजमिस्त्री कइलन। बैंक रोड पर दिनदहाड़े इंजीनियर लुटा गइलें। भरोह में कृषि अधिकारी से लूट हो गइल। कैम्पियरगंज में मनीष सामंत के घर लुटा गइल। तुर्कमानपुर में जर्दा कारोबारी मुमताज लुटा गइलन। कोआपरेटिव बैंक के गार्ड मरा गइलन। खजाना लुटला के प्रयास भइल। रेलवे की जीएम आफिस की सामने एटीएम उखाड़े के प्रयास भइल..। और बहुत कांड भइल, केतना गिनाई? अब शहर में करिया टीशर्ट वाला मोटका चोर के फोटो जगह-जगह सटाइल बा। शहर के मनई मोटकन के देखि के शंका करत हवें। महानगर की हालात पर देखीं इ कविता केतना सधत बा- 
रात डकैती आये दिन, दिन में होत बा लूट। 
महानगर में जइसे मिलल, होय लूट के छूट।।
 उंघत पुलिस बा इहां के, जागल हवें बदमाश। 
लचर भइल कानून व्यवस्था, झूठ मूठ बकवास।। 
पुलिस बेंत में घुन लगल, कि हथियारन में जंग। 
खाकी-खादी-क्रिमिनल, कि भइलन एकै संग।। 
होत जवन बा धरपकड़, का सचहूं ‘पर्दाफास’। 
बहुत छेद बा ‘पुलिस कथा’ में, बुझबि मत परिहास।।

नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी  व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 19 जुलाई 2012 के  अंक मे प्रकाशित है । 

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

हम्मन के मजबूरी बा झोला छाप जरूरी बा

सरकार झोला छाप डाक्टर लोग पर नकेल कसति बा। मुकदमा लिखत बा। जेल भेजे के तैयारी करति बा। येह सब कार्रवाई से दुखित मनबोध मास्टर के कहनाम बा कि हम्मन खातिर झोला छाप ही भगवान हवें। हम्मन के मजबूरी बा। झोला छाप जरूरी बा। सरकार जगहे-जगह जवन सरकारी अस्पताल खोलले बा उ खुदे बेमार हो गइल बाड़न। सरकारी डाक्टर लोग अस्पताल में कम डेरा पर मरीज देखला में ज्यादा रुचि लेत हवें। जवन डाक्टर जेतने नामवर ओकरा आंगन में ओतने मरीजन के भीड़। कई जने डाक्टर लोग अस्पताल से तनख्वाह आ अपनी नर्सिग होम में मरीजन के सेवा करत हवें। जवले परिजनन की जेब में पइसा तबले सेवा। ओकरा बाद भगवान मालिक, मरीज मरों चाहे जीओ अपनी भाग्य से। शहर से सदर ले डाक्टरन के ऊंच हवेली देख के अंदाजा लगालीं । बेमारी जेतने भारी,डाक्टर के फीस ओतने भारी। डाक्टर लोग के तरह-तरह के नामकरण सुनि के मास्टर का बहुते दुख होला। कहलें- हम त डाक्टर लोग के भगवान के भाई समझत रहलीं लेकिन वाह रे! लोग, खूनचूसवा, कीडनीबेचवा, बच्चाबेचवा,अंखिफोड़वा, जनमरवा, जेबनोचवा..केतना नाम ध दीहलें। गांव-देहात में रात के जब केहू के कपरबथी, पेटगड़ी, दूनो पवन चली त झोला छाप डाक्टर लोग ही कामे आवेलन। गांव से कोस -दू कोस दूर सरकारी अस्पताल पर गइला पर अक्सर पता चलेला कि डाक्टर साहब शहर में अपनी नर्सिग होम पर चलि गइल हवें। कई जगह त चौकीदार चाहे सफाईकर्मी ही रात की बेरा एमरजेंसी के डय़ूटी निभा देलन। झोला छाप डाक्टर लोग के डिग्री डिप्लोमा जांच कइला की पहिले जव सिस्टम बेमार बा ओकर दवा होखे के चाहीं। रात में सीएचसी होखे चाहे पीएचसी डाक्टर लोग के रहल जरूरी कइल जा। दिन में डाक्टर लोग की केबिन में अंड़सल एमआर आ बहरा फर्श पर छटपटात बेमार के देखि के इहे लागेला कि इ व्यवस्था ही बेमार बा। सरकारी डाक्टर, सरकारी दवा यदि सवके सुलभ हो जाई त केहु का कुक्कुर ना कटले बा कि झोला छाप डाक्टर लोग से जेब कटवाई। करोड़न रूपया की लागत से निर्मित सरकारी अस्पताल डाक्टर बिना ‘ चौके के राड़ ’ अइसन लागेला। झोला छाप डाक्टर लोग पर होत कार्रवाई पर देखीं इ कविता केतना सधत बा-
 हम्मन के मजबूरी बा। झोला छाप जरूरी बा।। 
दुरुस्त करù पहिले व्यवस्था, तब कार्रवाई पूरी बा।। 
डाक्टर के कुरसी से बान्हù, अस्पताल में उनके छान्हù। 
तोहार व्यवस्था बेरमतिहा बा, ओकरा जड़इया-जूरी बा।।
 झोला छाप के छुट्टा छोड़ù, सरकारी के पगहा जोड़ù।
 बहुत अगर उत्पीड़न होई, त बाकी थुरा-थुरी बा।।

नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी  व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 12 जुलाई 2012 के  अंक मे प्रकाशित है । 

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

मयभा सासु भइल मानसून, कंडा से पोछù आंसू-खून

अदरा आइल, गइल। आषाढ़ बीतल, सावन आइल। बदरा ना बरसल।मानसून की देरी से सभे परेशान हो गइल। पंडी जी के पतरा, पंडिताइन के अंचरा, मौसम विज्ञानी के भविष्यवाणी सजो फेल हो गइल। खेतन में धान के बेहन सूख गइल। पानी बिना हाहाकार मचि गइल। जीया-जंतु पानी बिना मरे लगलें। मानसून मयभा सासु अस सतावे लागल। खून के आंसू रोवे वाला किसान के सूखल कंडा से आंखि पोछले केतना राहत मिली। इंद्र देवता के प्रसन्न करे खातिर जगह-जगह टोटका शुरू हो गइल। बनारस में एगो नवही गंगा जी में नंगे नहइली लेकिन भगवान ना पसिजलें। गांवन में बाल- गोपाल लोग‘ काठ कठौती, पियर धोती, मेघा सारे पानी दे.’ की रट की साथे कीचड़-माटी में लोटाये लगलें। कीचड़ बनावे में भी लोगन के पसीना उतर गइल, ताल-तलैया, पोखरा-नाला सब झुराइले रहे। नलका से बाल्टी में पानी भरि के लोग-बाग अपनी दुआर पर गिरावे आ लक्ष्के ओहिमे लोटाके पानी मांगे। ब्रह्मबाबा की थाने अखंड कीर्तन होखे लागल। कालीमाई की थाने माई-बहिनी लोग छाक देबे लागल। रात में गांव-गांव ‘ हरपरौरी’ होखे लागल। मेहरारू लोग उघार-नांगट होके हर जोतला के स्वांग करे लगली। प्रधान जी के नाव लेके गरिआवे लगली, आ पानी मांगे लगली। मुड़ी निहुरवले प्रधान जी हरपरौरीवाली मेहरारून के पानी पियावे लगलें। मेहरारू गावल शुरू कù दिहली-‘ अंगना के खटिया दुआरे दहल जाले, उठù उठù हो प्रधान तोहार जोइया दहल जाली’। बुद्ध की बिहाने नहाधोके सुखारी बाबा लोटा के पानी लेके शंकर जी की थाने गइलें त शंकर जी गायब रहलें। पता चलल कि सुखरजिया काकी रतिये के शिवजी के उठा के, एकरंगा में बांधि के रसरी में लटकवले पानीवाला कुंआ खोजत रहे। गांव में कुंआ ना मिलल त मनबोध मास्टर की टय़ूबवेल की हौदा में शंकर जी के तर कù दिहली। सुखारी बाबा लोटा के पानी शंकरजी की बेदिये पर चढ़ा के सुखरजिया काकी के गरिआवत लौट अइलें। एतना टोटका की बादो पानी ना बरसल। अब तनीं रउरा सभे सोचीं। विज्ञान बहुत आगे बढ़ि गइल। चंद्रमा आ मंगल पर बस्ती बसावला के योजना चलत बा। मिसाइल की मामिला में आधा एशिया ले हमला करे के क्षमता हो गइल। लेकिन प्रकृति की रूठला पर मनावला के ब्यवस्था ना भइल। बुधवार की दिने जिनीवा में बड़े-बड़े वैज्ञानिक लोग ब्रह्मांड के रहस्य से पर्दा उठावला के दावा कइले। भइया कवनो ‘लग्गी-लग्गा’ के भी खोज कù दितन की असमाने की बदरी में खोदि दियाइत आ पानी बरस जाइत। बहरहाल, सब दई के लीला बा- ‘ हानि लाभ जीवन मरन, जस अपजस विधि हाथ..’। रूठल मानसून के मनावत में एगो कविता-
 मयभा सासु भइल मानसून। कंडा से पोंछù आंसू खून।। 
आइल जुलाई बितल जून। पानी ना गिरल एको बून।।
 दया करीं अब हे भगवान। होई जल्दी मेहर-वान।। 
 त्राहि-त्राहि मचल चहुंओर। रउरी आगे चले ना जोर।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी  व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 5 जुलाई 2012 के  अंक मे प्रकाशित है ।
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