तुलसी बाबा के शत-शत नमन। माई हुलसी के हजार बार गोहरावत हई, जवन अपनी कोख
से अइसन रतन पैदा कइली जे भगवान राम के भी ‘ पुरुषोत्तम’ बना दिहलन।
आत्माराम दूबे के करोड़न प्रनाम, जेकरा बून से परम संत के पैदाइस भइल।
दुयरेग के अइसन घड़ी में तुलसी के अवतरण भइल जब मूल नक्षत्र चढ़ल रहे।
जनमते कपारे अभागि चढ़ गइल। माई हुलसी के शरीर छूट गइल। पालन करेवाली
मुनिया मरि गइल। बाबुजी आत्माराम चलि बसलें। बिपत्ति बखरा पड़ गइल।
येने-वोने डोलत रामबोला पर संयोग सहाय भइल, नरहरिदास के कृपा बरसि गइल।
हुलसी के बेटवा तुलसीदास हो गइल। रामचरित मानस अइसन ग्रंथ समाज के समर्पित
करे वाला तुलसी बाबा रउरा धन्य बानी। सावन शुक्ल सप्तमी के दिन रउरा के याद
करि के लोग धन्य हो जात बा। बाबा! राउर चार लाइन के चौपाई याद के दुपाया
गदहा भी व्यास बनि जात हवें। तुलसी बाबा! रउरा फिर एक बेर अवतार लेई। आर्दश
सिखावे खातिर। धरम-करम लखावे खातिर। गुरु-शिष्य, स्वामी-सेवक, मातु-पितु
बचन के अनुरागी बनावे खातिर। भाई हित बदे राज काज त्याग तपसी जीवन के सीख
देवे खातिर। कोल भील की भक्ति भाव में जूठ बेर खाये के नीति प्रदर्शित करे
खातिर। ऊंच-नीच के भेद मिटा के गुह निषाद के गले लगावे खातिर। भ्रातृ सेवा
में 14 वर्ष ले नीद नारि भोजन के परित्याग करे वाला की गुणगान खातिर।
अहंकार के डंका बजावे वालन के लंका भालू-बनरन से जरवावे वाला श्रीराम की
जयकार खातिर। राम के पुरुषोत्तम राम बनावे वाला तुलसी के बार-बार प्रनाम।
तुलसी बाबा रउरे बतवलीं कि विप्र धेनु सुर संत हित लिन्ह मनुज अवतार। राम
के चरित रचि के बाबा रउरा अमर हो गइलीं। आज फेर जरुरत बा रउरे अवतार के।
परिवार बिखरत बा। सामाजिक मूल्य विदीर्ण होत बा। लोग आपन संस्कृति भुलात
बा। धारण करे वाला धरम के आडंबर की आवरण में लपेट लिहल गइल बा। पंडित
विद्वान गुनी जन के समुचित स्थान ना मिलत बा। मद्यप जुआर लंपट जन के
वर्चस्व बढ़त बा। चुगला चिमचा चापलूस के मंतण्रा ही साहब शुब्बा का सुहात
बा। सत्य ना जाने कवना गुफा में लुकाइल बा। लोग झूठ के गाल बजावत बा। जेकरा
हाथ में लाठी बा, भैंस ओही के बतावल जाता। नर्तकी राज भोगत हई। सावित्री
वन में बइठ के रोवत हई। सत्यवान के प्रान उनकी समनवे हरि लिहल जाता। अइसन
समय में तुलसी बाबा के दुसरका अवतार जरूरी हो गइल बा। बाबा! राउर कृपा महान
बा। हमरो जइसन गदहा मनई भी रउरी चौपाई की सहारे व्यास बनला के गर्व पलले
बा। तुलसी जयंती पर हमरी ओर से इहे श्रद्धांजलि बा-
तु लसी बाबा की कृपा से,
गदहो व्यास हो जाता।
कामी क्रोधी क्रूर आ लंपट, मंच पर पूजल जाता।।
चरित
राम के सुना-सुना के, पइसा बहुत बटोराता।
जीवन में चरितार्थ भले ना, पर वचन
सुनावल जाता।।
सावन शुक्ल सप्तमी आइल, फोटो पर मूड़ नेवाता।
एक चरण चौपाई
भी, जीवन में ना उतराता।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 26 /7/ 12 के अंक में प्रकाशित है .