बीतल माह खूब तिहुआर चारु ओर जय-जयकार
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मनबोध मास्टर बहुत दिन बाद मिललें। रमरमी की बाद पूछलें- काहो बाबा! का हाल बा? बाबा बोललें- चारु ओर जय जयकार बा। महीना भर तरउपरिए तिहुआर पर तिहुआर पड़ल। सब अपना- अपना ढंग से मनावल। सालों साल मरद-मेहरारू के घरकच, करकच, कचाइन करंवा चौथ की दिने ना जाने कवना अंतरा में लुका गइल। चलनी में चनरमा के निहार-निहार मेहरारू चवनिया मुसकी मारि-मारि अपने मरदे के आरती उतारत रहली। करवाचौथ की बाद आइल दुर्गापूजा। नवहन के पूजा-पाठ में बड़ उत्साह लउकल। अपना माई के पयलग्गी कइला में परहेज करेवाला कुपुत्तर लोग भी दुर्गा माई के बड़का भक्त बनि गइलें। चंदा के धंधा त चलबे कइल, नचला-गवला-कमर हिलावला के भी खूब मौका मिलल। रहल-सहल कसर त विसर्जन की दिने पूरा हो गइल। आखिरकार बिना नशा-पानी के सड़क पर लोटा-लोटा नागिन छाप डांस बगैर कच्ची-देशी के कइसे होइत। दुर्गा जी विदाई भइल तवले धनतेरस के धूम मचल। अपनी-अपनी हैसियत की अनुसार चम्मच से लेके चांदी के सिक्का, गहना-गुरिया, मोटर-गाड़ी के खरीददारी भइल। ओकरा बाद आइल दियादियारी। सब के एक्के ललसा की लक्ष्मी माई आपन चंचला रूप छोड़ के हमरे घर स्थिर हो जाईं। माटी के दीया, मोमवत्ती आ हिंदुस्तानी झालर से लगत रहे लक्ष्मी मइया कम प्रसन्न होइहन सो चाइनिज झालर के झुला-झुला कुबेर के खजाना चीन भेजला के अप्रत्यक्ष इंतजाम भइल। दीवाली बीतल तवले गोधना आइल। गोबरो के दिन लौटल। गांव-गांव गोबर से गोबरधन बाबा बनावल गइल। बहिन लोग गोधन बाबा की दरबार में बइठ के अपनी-अपनी भाई लोग के खूब खाइल- चवाइल, श्रापल। ओकरा बाद गोधन बाबा के मूसरे से कूट दिहल गइल। गोधन बाबा के गजबै के लीला ह। उनकी दरबार में बहिन लोग जेतने अपने भाई लोग के श्रापल ओतने आशीर्वाद मिलल। गोधन कूटाते पिड़िया माई बनि गइलें। अब गांव-गांव पिड़िया माई की दरबार में रात की बेरा महीना भर लक्ष्की लोग के मंगलाचरन होई। भैया दूज की दिने ही चित्रगुप्त महराज के पूजा भइल। उहां का धरम-करम, पाप-पुन्य के लेखा जोखा राखिलन। परंपरा बा कलम-दावात के पूजा के। अब कलम त डॉट हो गइल आ दावात दुलर्भ। फिर भी चित्रांश भाई लोग पूजा पाठ खातिर दावात के सहेज के रखले हवन। चित्रगुप्त पूजा की बाद आइल छठ। नदी, ताल, पोखरा, गड़ही की किनारे जहां सालो- साल गंदगी पटल रहे,ओहु घाटन के दिन बहुरल। दीया-बाती जरल, धूपबत्ती सुनुगल। प्रसाद चढ़ल। मतलब की पूरा महीना पर्व की जय जयकार में बीतल।
बीतल माह खूब तिहुआर,
चारु ओर जय- जयकार।
करवां चौथ आ दुर्गा पूजा,
धनतेरस आ लक्ष्मी पूजा।
गोधन बाबा कूटल गइलें,
चित्रगुप्त जी पूजल गइलें।
छठ मइया भी खूब अघइली,
ताल पोखरा गड़ही अइली।
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- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 22 नवम्बर 2012 में प्रकाशित है
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