हे 2013 ! राउर, स्वागत बा श्रीमान
बहुत हो -हल्ला, चिल्ल-पों की बाद भी 2012 में
दुनिया समाप्त ना भइल। तेरह आ गइल। बारह की घटना से कहां केहू सबक लिहल?
दामिनी कांड की नाम पर शोक आ आक्रोश की घालमेल में मोमबत्ती टघरावल गइल,
आंसू चुआवल गइल। आखिर नवका साल आ गइल। कई चेहरन के नकाब उतर गइल। सामने
टेबल पर कुछ मोमबत्ती जरा के मंच पर ‘ मस्ती 2013’ के दौर चलल। कमर में
हाथ लगा के डिस्को भइल। बूढ़-जवान, लक्ष्का-सयान केहू ना सुधरल। बारह की
अंतिम रात बारह बजे क्लब में चारो खंभा ‘ डोलत’ रहे। जे ज्यादा ‘
मजा’ ले लिहले उ लुढ़क गइलन। इ बिचित्र चरित्र देख के मनबोध मास्टर अपना
के रोक ना पवलें। बकबकाये लगलें- वाह रे! गोरखपुर, खत्म होता ‘ नूर’।
जिलाधिकारी की दुआरी पर अश्लील पोस्टर लागल रहे। कुछ समाजसेवी टाइप के लोग
पोस्टर जला दिहलें, जेल में नवका साल मनावे के लुत्फ मिलल। लोग सवाल करत
बा- जे पोस्टर लगवले रहे ओहपर कौन कार्रवाई भइल? डीआइजी साहब बोललें- महिला
लोग खातिर सुरक्षित माहौल मिली। लोग सवाल करत बा- गुलरिहा में लड़की से
गैंगरेप की मामिला में थाना घेरला की बाद काहें मुकदमा लिखाइल? नगर आयुक्त
साहब बोललें- जाम मुक्त शहर मिली। लोग के सवाल बा -दूसरे दिन सड़क काहें
अंड़सल लउकल? रेलवे के जीएम साहब बोललें- कोहरा में भी ट्रेन के टाइमिंग
ठीक होई। लोग कहलें- लखनऊ-बरौनी, छपरा तक काहें निरस्त हो गइल? बात बहुत
भइल। कुराफात भी बहुत भइल। संत के प्रवचन भी थानेदार का हजम ना भइल। अब
हांगकांग से थानेदार की मोबाइल पर जानमाल के धमकी के बात आवता। लोग
अपने-अपने ढंग से अर्थ निकारि के हंसी उड़ावता । बात त बहुते बा, छोड़ी
सभे। नया वर्ष में नया संभावना की साथ नया शुरुआत करत बस इहे निहोरा बा-
गोरखपुर में एम्स खोलवावल जा, जेई भगावल जा। बंद पड़ल खाद के कारखाना चालू
करावल जा। रामगढ़ ताल के सुंदरीकरण के काम जल्दी पूरा करावल जा।
इंजीनियरिंग कालेज के यूनिवर्सिटी बनवावल जा । शहर के जाम मुक्त करावल जा।
अपराध पर अंकुश लगावल जा। सांड-भैंसा भइल मनई के बधियाकरण करावल जा। बारह
के गलती तेरह में ना दोहरावल जा। एही उम्मीद की साथे इ कविता गावल जा-
हे
2013 ! राउर, स्वागत बा श्रीमान।
बारह में पल्रय ना भइल, हम बच गइलीं
भगवान।।
नया जोश से, नया साल के, कइल जा शुरुआत।
बीतल ताहि बिसारि के, फिर
अच्छा-अच्छा बात।।
बालू पेरले तेल ना निकली, समय बीती बकवास।
कुछ अइसन
संकल्प करीं, चहुंओर दिखे विकास।।
कहें देहाती बहुते सुनलीं, झूठ बजावत
गाल।
अब भी राह पकड़ ली सुंदर, आइल नवका साल।।
- मेरा यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 3/1/13 के अंक में प्रकाशित है
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