गुरुवार, 17 जनवरी 2013

असकतिहा गिरलें कुंआ में बोललें- ˜बड़े मजे में हई....

मनबोध मास्टर कुंभ नहा के लौटि अइलें। साधु-सन्यासी, उदासी-कल्पवासी त हवें ना कि प्रयाग की संगम पर पचपन दिन के तपस्या पूरा करें। कई साल से मास्टराइन हुरपेटत रहली- दान-स्नान, तीरथ- बरत के प्रताप बतावत रहली लेकिन मास्टर ठहरलें एक नंबर के असकतिहा। कुंओं में गिर जां त निकले खातिर हाथ-पांव ना हिलावें। जुबान खोलला में त लगे जइसे नाड़ा उकसि जाई। भला भइल कि जमाना एडवांस हो गइल, कुंआ भठा गइल। मास्टरे अइसन मनई खातिर गांव-देहात में एगो कहावत कहल गइल- ‘असकतिहन के तीन नहान, खिचड़ी फगुआ औ सतुआन’। असो के जाड़ त और असकति लेआ दिहलसि। मास्टर की एक दिनी कुंभ यात्रा की र्चचा की दौरान पांड़े बाबा पूछलें- काहें मकर संक्रांतिये नहा के लौटि अइलीं हं? मास्टर भड़क के बोललें- भकभेलरे हवù का ये पांड़े? जमाना जुग एतना बाउर हो गइल बा। देखते बाड़ù कवन सीजन चलत बा। चारू ओर दुष्कर्म, दुराचार..। कुकुरहो लागल बा। घर पर मस्टराइन के छोड़ि के गइल रहलीं। सांस टंगाइल रहे कि कवनो छिनरझपवा मस्टराइन के छेड़ दिहलसि चाहें उड़ा ले गइल त तोहन लोगन के त मसाला मिल जाई, लगब धकाधक छापे। आ हमरा नाक बचावल मुश्किल हो जाई। मानुष जनम पा के भी लोग कुक्कुर भइल बा। गोरखपुर में त और नाक बचावल दुष्कर हो गइल बा। मुंहनोचवा, खूनचूसवा, कनकटवा.. की बाद येह घरी नककटवा घूमत हवें। एगो नककटवा के पकड़े में छह-छह थानेदार लगावल जात हवें। पुलिस का आपन नाक बचावला में नाकन चना चबाये के परत बा। शहर में लचर कानून व्यवस्था की चलते नाक कटत बा त सीमा पर दुश्मन की दरिदंगी से मुड़ी कटत बा। असकतिहा लोगन के कवनो कमी ना बा। कई लोग का मुंह खोलला में असकत लागत बा। अपना प्रधानमंत्री जी के उदाहरण देखि लिहल जा। पाकिस्तानी हमरी दु जंवाजन के नृशंस हत्या क दिहलें। एगो बहादुर के मुड़ी काट ले गइलें लेकिन सरदार जी का मुंह खोलला में एक हफ्ता लागि गइल। वाह रे! मौनी बाबा। जाके कुंभ में कल्पवास करीं, देश के अपनी गति पर चले खातिर बकसि दीं। प्रधानमंत्री जी का मुंह खोलला में सात दिन लागल त भला मुख्यमंत्री जी भी असकतिहाई में काहें पीछे रहें। शहीद जवान के महतारी जब अन्न-जल त्याग के अपनी पूत की मान-सम्मान खातिर अनशन कइली त पांच दिन बाद नौजवान मुख्यमंत्री जी के असकति छूटल। गांव में पहुंच के श्रद्दांजलि दिहलें, ढाढस दिहलें। आज की जरजरात अवस्था पर, असकतिहन की व्यवस्था पर बस इहे कविता कहल जाई-
असकतिहन के तीन नहान। 
खिचड़ी फगुआ औ सतुआन।
 असों के ठंड जे रोज नहाइल, 
उहो मनई बहुत महान।।
 ए असकतिहा फरहर होखù,
 आंखि तरेरत पाकिस्तान।
 कबले त्यगबù शिखंडीपन? 
सीमा पर से पूछें जवान।।
 एक हफ्ता में चुप्पी तोड़लें, 
अपना भारत के प्रधान। 
कहें देहाती जगो जवानों,
 लहू मांगता घामासान।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 17/1/13 के अंक में प्रकाशित है .

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