मनबोध मास्टर का नेता नाम से ही घिन हो गइल बा। एतना घिन जइसे नेता ना नेटा(पोंटा) होखें। घोटाला पर घोटाला होत देख बोल पड़लें- ‘ साग घोटाला, पात घोटाला। सुबह-शाम और रात घोटाला।’ एतना घोटाला की बाद भी देश चल रहल बा, इ सब कुछ पुण्यप्रतापी लोग के देन बा। जहें देखù तहें घोटाला। अब त घोटाला के नाम याद रखल भी मुश्किल हो गइल बा। जनसेवा के सूत्र हो गइल बा- ‘ जे कबहुं ना घूस लियो, कियो ना भ्रष्टाचार। ऐसे अधम बेलायक जीव को बार-बार धिक्कार।’ नेता लोग के कुत्र्ता जेतने लकालक उज्जर लउकत बा, ना जाने चेहरा पर काहें भ्रष्टाचार के ओतने कालिख पोताइल बा। भ्रष्टाचार शब्द त सामान्य दुनियादारी के शब्द हो गइल बा। लगत बा जेइसे भ्रष्टाचार बिन सब सून.। ओइसे त हमाम में सब नंगा बाड़न। केकर- केकर धोती उठा के देखल जा, लेकिन ताजा तरीन खुलासा में लोकायुक्त बहन जी आ तमाम आइएएस अधिकारी लोग के मुक्त कर के माया सरकार के दुगो मंत्री सहित 200 लोग पर आरोप पक्का क दिहलसि। बहन जी के एगो सपना रहे कि दलित महापुरुष लोग की नाम पर लखनऊ आ नोएडा में स्मारक बनों। माया सरकार के महापुरुख मंत्री लोग पाथर की हाथी के 15 अरब के डाढ़ा खीया दिहलन। दरअसल हाथी की नाम पर हाथीवाला मंत्री ही ना, हाथीराज के कुछ कर्ताधर्ता, इंजीनियर, ठेकेदार आ कुल 200 लोग मिलके 15 अरब पचा गइलन। आम आदमी अगर एक पूड़ी ज्यादा दबा देलन त अपच हो जाला, धोआइन ढेकार आवेला, लेकिन अपने देश के नेतन के पाचन शक्ति बहुत बेजोड़ ह। हाथी के डाढ़ा हजम कर लिहलन लेकिन डकार तक ना लिहलन। अब फंसल हवें त चिचिंयात हवें- बहन जी! हम त रउरे आदेश से पत्थर की हाथी में जान फूंकला के काम करत रहलीं। नारा लगावत रहलीं, हाथी नहिं गणोश है.। हम्मन अदना खिलौना रहलीं। जेतना चाभी रउरा भरलीं हम्मन ओतने दौड़लीं। प्यारी बहना, सॉरी बहना! बचा लो। इ पार्टी के लोग भी गजबे हवन। हम्मन फंस गइलीं त चोर। नाहीं त चबसावत रहलें- वंस मोर, वंस मोर। बहन जी! अइसे मजधार में छोड़ देइब त हम्मन बगैर मरले मरि जाब। हम्मन के पद, परमोशन, प्रतिष्ठा, पुरस्कार सब रउरी पांव छुअला के आशीर्वाद में मिलल रहे। देश में बहुत कुछ फिक्स होत बा। कहीं हम्मन के सजा भी पहले से ही फिक्स त ना हो गइल। दुनों मंत्री घिघियात रहलें आ पाश्र्व में एगो कविता सुनात रहल-
पाथर के हाथी बा खइलसि, 15 अरब के डाढ़ा।
मंत्री जी लोग गटक रहल बा, घोटाला के काढ़ा।।
लोकायुक्त किये खुलासा, बात कहत हैं पक्की।
दो सौ जने आरोपित भइलें, कब पिसिहें जेल में चक्की।।
- मेरा यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 23/5/13 के अंक मे प्रकाशित है .
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