बुधवार, 28 अगस्त 2013

आई ना ओदारल जा प्याज के बोकला...

मनबोध मास्टर प्याज के बोकला ओदरला में लागल बाड़न। सबका पता बा बोकला ओदरले प्याज में कुछ ना बची। प्याज की बारे में एगो कहावत कहल जाला- ‘ नया मुल्ला प्याज बहुत खाता है।’ भइया ! अब मुल्ला नया होखें चाहे पुराठ प्याज से परहेज करत हवें। प्याज बहुत दुर्गध देले। छिलला पर आंख से आंसू गिरा देले। प्याज सरकार भी गिरा देले। भोजपुरी गायक मनोज तिवारी के एगो गाना याद आवत बा- ‘ वाह रे! अटल चाचा, पियजुइया अनार हो गइल.’। इहे प्याज ह जवन अटल जी के सरकार के सरका देले रहे। प्याज के लेके हाल की दिन में बहुत मजेदार खबर भी अइली। मध्य प्रदेश की छतरपुरा गांव में किसान चंपालाल त प्याज की महंगाई से ही मालामाल हो गइलन। प्याज पैदा कइलन त पांच रुपया किलो बिकत रहे, बेचला की जगह पर गोदाम धरा दिहलन। जब आसमान पर दाम चढ़ल त बेंचलन। अब प्याज बेंच के कार खरीद लिहलन। इ प्याज के प्र-ताप ह। अब त डाकू-चोर भी रुपया -पैसा, गहना-गुरिया के डकैती की जगह पर प्याज लूटत हवें। जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर बंदूक की बल पर ट्रक से 40 टन प्याज लूट लिहलन। आज प्याज के नाम निकारते मुंह से बदबू निकरे लागत बा। प्याज पॉलिटिक्स देखे के होखे त दिल्ली जाई। दिल्ली सरकार आ विपक्षी भाजपा दुनो स्टाल पर सस्ता प्याज बेच के वोटरन के भरमावत हवें। प्याज देसज दवाई भी ह। अगर कान केहू के बथता त प्याज के रस ही लहता। कहीं जल गइल त झट से प्याज कूंची आ लगा दीं। कीड़ा-मकोड़ा की कटले पर प्याज के कूटीं आ लगायीं इ देहाती बूटी ह। हिस्टीरिया में बेहोश रोगी की नाक में प्याज कूट के सुंघाई, झट से भूत उतर जाई। आज प्याज के महत्व पर ताजातरीन घटना रक्षाबंधन की पर्व पर फेसबुकियन की बीच र्चचा में रहल। राखी बंधवायी में एगो बहना अपनी भइया से नगदी आ गहना की जगह पर गिफ्ट में बस पांच किलो प्याज मंगलसि। प्याज के बोकला ओदरले कुछ ना भेंटाई लेकिन प्याज पर बस इहे कविता सटीक बइठी- मनमोहन की राज में, सगरो राज सुराज। 
महंगी अस चंपले बा भइया, दुर्लभ भइल पियाज।।
 बोकला बहुत ओदारल गइल, तबो ना लागे लाज। 
 पॉलिटिक्स आ पार्लियामेंट में, भइल ना एकर इलाज।।
 येही प्याज की कारने, गइल रहे अटल के राज। 
मनोज तिवारी गवले रहलें, लोकगीत में साज।।
 रक्षाबंधन पर्व पर, प्याज बनल सरताज।
 बहना, नगदी-गहना छोड़ के, गिफ्ट में मांगे प्याज।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के २२ अगस्त १३ के अंक में  प्रकाशित है।

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