मनबोध मास्टर के आपन अलग मोर्चा ह। न वामपंथी न दक्षिणपंथी। न पूरबपंथी न पश्चिम पंथी। आज के अखबार पढ़ला की बाद संत कवि सूरदास से माफी मांगत एगो कविता गुनगुनात रहलें- ‘जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग। बजाओ अपने-अपने चंग.।’ अखबार के कुछ समाचार उदवेग के रख दिहलसि। बानगी के तौर पर कुछ मामला रउरो सामने बा। महिला आइएएसअधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन के मामला.। गौतम बुद्ध नगर में एगो धर्म विशेष के निर्माण रोकल त बहाना बा, पर्दा के पीछे खनन माफियन के सत्ता से गंठजोड़ की कारन ही अकारन रेता माफिया ‘दुर्गाजी’ के ‘रेतवा’ दिहलन। हाईकोर्ट के ही निर्देश बा कि सार्वजनिक भूमि पर धार्मिक स्थल के निर्माण की पहिले अनुमति लिहल जरूरी बा। दुर्गा आपन शक्ति देखवली त ‘नाग-पाल’आपन पॉवर। गांव-देहात में एगो किस्सा कहल जाला कि यदि राजा कहें कि ‘ ऊंट, बिलरिया टांग ले गइल, त बस हां-जी, हां-जी कहियो’। हां-जी की जगह ना-जी त झेलीं दुर्गा जी राजा के नराजी। दूसरा मामला इ बा कि मनरेगा मजूरन के अब मोबाइल मिली। बहुत जरूरी बा। रोटी बिना त दु वक्त कटि जाई लेकिन ‘ मोबाइल बिना जिनगी कइसे कटी?’ मोबाइल चार्ज करे बदे भर के बिजली भी गांव में मिल जात त अति सुन्दर हो जात। तीसरा मामला, बहुत स्थानीय, बहुत ज्वलंत बा। पिपराइच कस्बा में एगो जमीन पर दु वर्ग के दावेदारी। इहे दुनियादारी ह। दावेदारी जिंदा रही त दूनों ध्रुव के राजनीति भी जिंदा रही। भइया लोग! काहें बोर्ड लगावत हवù, काहें उखाड़त हवù? गोरखपुर के काहें ‘अयोध्या-फैजाबाद’ बनावे पर तुलल हवù। चौथा मामला, महानगर की एगो मैरेज हाऊस में सवर्ण एकता संकल्प दिवस मनावल जात रहे। कुछ अति उत्साही ‘स-बरन’
लोग असलहा से फायरिंग करे लगलें। दइब के कृपा रहल नाल नीचे ना भइल नाहीं तù कुछ कार्यकर्ता वइसे कम हो जइतन। भइया लोग तोप के लाइसेंस लेलù लेकिन दाग समय से। असमय के चुटपुटिया भी भारी पड़ जाले। अइसने कुछ घटना आ अंजाम देबे वालन के आपन रहनुमा माने वाला कवि के इ उद्गार-
जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग।
बजाओ अपने-अपने चंग, दिखा दो अपने-अपने रंग।।
जग-गिलास से पेट भरो नहिं, चेतो कुछ नयो ढंग।
कुआं त अब रह ही गयो ना, घोल दो पाइप लाइन भंग।।
रार बसेहत रहो हर जगही, काटौ उड़त पंतग।
बढ़ै विवाद कुछ गला साफ हो, यही धरम का अंग।।
खुरफाती तत्वों से मिलकर, आये दिन कुछ हुड़दंग।
कहें देहाती अति उमंग से, लड़ो विरोधिन संग जंग।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 01 अगस्त 2013 के अंक में प्रकाशित है .
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