शुक्रवार, 7 मार्च 2014

अंग-अंग फड़कन लगे..



मनबोध मास्टर मगन हवें। दिन बहुर गइल। वोटर के दिन, सपोर्टर के दिन। सोलहवीं लोक सभा के महासमर के घोषणा हो गइल। जइसे नौ माह में बच्चा पैदा होलन वइसे नौ चक्र की मतदान की बाद नवकी सरकार पैदा होई। वोटर के बुझौवल बुझावल जाता। तुरुप के पत्ता केकरा लगे बा? भइया वोट की चोट से भ्रष्टाचार मिटावे के बा त प्रत्याशी के पूरा वायोडाटा पढ़ी। केकरा पर केतना मुकदमा? दलन की दलदल में जन फंसीं। महामुकावला में आरोप के गुब्बार उठी। चुनावी खुमार चढ़ी। सिद्धांत, ईमान, सेवा सजो सत्ता की कुरसी की पाया तरे दबावला के प्रयास होई। दिल मिली ना मिली हाथ मिलावत लोग मिली। चारो ओर जय जयकार की शोर से सराबोर लोकतंत्र के उत्सव मनावल जाई। वइसे जइसे होली के कबीर। विनम्रता के मुखौटा लगा के एक से बढ़कर एक बदतमीज अइहें, हम्मन के लुभइहें। पांच साल खातिर उनकर दिवाली हमार दिवाला। फेर महंगी के मार। हर बोल के मोल समझे के परी। बोल भी अनमोल मिली। एक से बढ़के एक झोल मिली। सबकर आपन-आपन ढोल रही। ओ ढोल में अंदर पोल रही ऊपर खोल रही। जवना जनता की बू से सफेदपोश परेशान रहलें उहे खुश-बू। हथजोड़ी के दौर, दंतनिपोरी के दौर। भइया अबकी बारी हमरी पर कृपा। वोटर निर्मल बाबा की राह पर निकर जइहें। सब पर कृपा बरसइहें। अबकी बेर वोट मशीन में एगो नवका बटन भी आ गइल- नाटो। राजनीति के खिलाड़ी आपन खेल बना सबकर खेल बिगाड़े के तैयारी में लाग गइलें। चोटी-लंगोटी वाला, दाढ़ी-टोपी वाला सबकी पर स्नेह के बरखा बरसावल जाई। मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत जी कार्यक्रम घोषित क दिहलें। 543 लोकसभा सीट खातिर बिगुल बजल बा। दल सजल बा। रउरो जागीं। अंग-अंग फड़काई। घर में जनि अलसाई। बूथ तक जाई आ अपनी पसंद के बटन दबाई। राउर इ बटन 16 मई के बता दी केकरा में बा केतना दम। राउर इ बटन दे दी संसद में चिल्लाये के अधिकार, आ नवकी सरकार। 
अब इ कविता- 
अंग-अंग फड़कन लगे, जब बजा चुनावी चंग। 
चढ़ल चुनाव बजल दुंदुभी, आपन-आपन ढ़ंग।। 
महासमर में उतर रहे, योद्धा लेय उमंग।
 मतदाता की मनमंदिर में,उठ रहल बा बहुत तरंग।।

- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 06/3 /14  के अंक में प्रकाशित है।

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