रविवार, 14 अगस्त 2022

भोजपुरी व्यंग्य 14 अगस्त 22

गिरगिट रोवत देखि के, राजनीति के रंग

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बोललें-हाल बेहाल बा। गिरगिट रोवत बा। राजनीति के रंग देख के गिरगिट के चेहरा बदरंग हो गइल बा। रंग बदलला के आरोप सदा गिरगिट पर लागत ह। ई केईसन इंसाफ ह। राजनीतिहा लोग रंग बदलला में गिरगिट के कबे पीछे छोड़ देले रहे। मुखिया जी की घर के सामने एगो पेड़ पर गिरगिट के बसेरा ह। ओकरा अपनी हुनर पर गर्व रहल। उ अपनी गर्व पर इतरात रहलीं। आज शर्मिदा बा, गिरगिटापन के कवनो और जिया-जंतु नकल कईले रहत त एतना दुख ना होत, जेतना इंसान के रंग बदलल देख के होत बा।
बात में दम बा। वास्तव में इंसान रंग बदलला में आगे,आ गिरगिट कम बा। अईसन मानल जाला कि सुरक्षा के हिसाब से गिरगिट आपन रंग बदलेलन। शिकारियन से बचे खातिर गिरगिट आपन रंग अईसन रंग में ढाल लेलन जवना रंग की डाल पर रहेलन।दूसर नजरिए से देखल जा त गिरगिट अपनी भावना के अनुसार रंग बदलेलन। आपन मिजाज बतावे खातिर भी गिरगिट आपन रंग बदलेलन। ई गिरगिट के सिद्धांत हवे। गिरगिट के भी कुछ ऊसूल होला। लेकिन वाह रे इंसान,आ इंसान में भी राजनीति के पहलवान। जहें सुतार, तहें लहान। देश में राजसत्ता आ सिंहासन की लिप्सा में सामाजिक ताना-बाना के तोड़ के जाति-धर्म में बांट के राज कईला के परम्परा कवनो नया ना ह। सत्ता के सरदार बनला खातिर कबो पन्द्रह से पचासी के लड़ा के राजा भी फकीर कहाये लागेलन। कबो तिलक, तराजू -तलवार के चार जूता मारके, दलित के वोट झार के अकूत सम्पत्ति आ राज के सिंहासन पवला में कामयाबी मिल जाला। कबो हल्लाबोल आ पोल खोल की नाम पर गुंडागर्दी की सहारे लोग सत्ता पर काबिज हो जालन। राजनीतिक रंग बदलत, सियासत के संग बदलत सबके साथ आ सबके विश्वास में लेके सुशासन चलत रहल। अईसन महत्वाकांक्षी कीड़ा पिछवाड़ा में कटलस कि चाचा भी रंग बदल दिहलन। चाचा के पैंतरा ई कवनो नया ना ह। कबो भाईजी , जवन भूरा बाल साफ करे वाला हवें उनकर लालटेन बुझावेलन त कबो भतीजवा की संगे - भतीजवा तोरो जिंदाबाद, भतीजवा मोरो जिंदाबाद गावेलन। बड़का साहेब विश्व गुरु बनत रहलें। चचवा अईसन चकमा दिहलसि की साहब चित्त। अईसन गुलाटी मरलसि की सोचे समझे के मौका न मिलल। भ्रष्ट-छली अब एक होके, जनादेश के जनाजा निकार के बाजा बजावत हवें-आज मेरे यार की शादी..। लवंडे नाचत हवें। मुरचायल तमंचा में तेल डाल के चमका दिहलें। अब फेरू शुरू हो गइल- चाचा हमार विधायक हवें, नाही डेराईब हो ...। जबसे सिपाही से भईले हवलदार हो, नथुनिये पर गोली मारे...। हमरा  भईया जी के झंडा, तोहरी छाती पर फहरी...। प्रधनवा की रहरी में...। बेरोगारी के मार झेलत नवहन के रोजगार शुरू। दस हजार में टपका दिहला के टेंडर। पांचे हजार में टांग के उठा ले गइला के ठेका। दुई हजार में गाड़ी छोर के पैदल क दिहला के कारनामा। और भी बहुत प्रकार के रोजगार। भईया जी के जय- जयकार। चाचा जी के जिंदाबाद।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।

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