रविवार, 2 नवंबर 2025

2 नवंबर 2025 के स्वाभिमान जागरण के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य



पकड़उवा बिआह कनपटिया ले सेनुर


मनबोध मास्टर पूछलें-बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल का बताईं, बड़ा सुनत रहलीं - आईये हमरी बिहार मा। बात बहुत पुरान ह,चल गईलीं बिहार में । बिहार की पटना, नवादा,  बेगूसराय, मोकामा, पंडारख, बाढ़ जेइसन इलाका में। इ सब क्षेत्र पकड़उवा बिआह खातिर चर्चित रहे। पकड़उवा बिआह मने, अपहरण क के बगैर दान दहेज के जबरिया विवाह। जे सुघर- साघर, कमात-खात, नौकरी-पेशा वाला नवहा मिलत रहे उनके जबरिया रोक के विवाह  करावल जात रहे। विरोध पर पिटाई। ऊपर से दलील-पीठ पूजत हईं, पाँव बाद में पूजा जाई।  सचमुच जंगल राज रहे। 
राज बदलल, ताज़ बदलल, कुछ -कुछ काज बदल गईल। सुशासन आईल। शराब बंद भईल। सरकार के इनकम भले कम भईल। लोग के रोजगार मिलल, तस्करी के कार मिलल। सौ रुपया के पउवा तीन सौ मिले लागल। सुशासन में कहीं सरकारी देसी विदेशी शराब के दुकान ना रहे लेकिन होम डिलेवरी जारी रहे। बस एक फोन पर मॉल हाजिर। जंगलराज की बाद सुशासन में कुछ विकास भइल। लेकिन अपराध कम ना भइल। बिहार विधान सभा चुनाव चलत बा। तरह तरह के बोल के ढ़ोल पिटल जाता। चुनाव आयोग की समनवे सब होता, ओकरा हिम्मत ना बा कुछ शेषन जैइसन क दे। शेषन माने टी एन शेषन। चुनावे की दौरान मेहरारू लोग की खाता में दस-दस हजार आ गईल। प्रत्याशी लोग बगैर परमिशन के चालीस -पचास गो गाड़ी लेके प्रचार करत बा। केहू के नचनिया बोलल जाता,आ ओकरा के दबावे खातिर चार चार गो नचनिया दूसरा प्रांत से बोलवावल जाता। बिहार विधान सभा चुनाव में बहुत अपराधी लोग भी उतरल हवें, जिनकी समाजसेवा आ सेवा भाव से प्रसन्न होके मीडिया बाहुबली नाम से महिमा मंडित करता। तरह तरह के ज्ञानी प्रत्याशी। एक जने पत्रकार एगो प्रत्याशी से पूछलें कि राउर पार्टी केतना सीट पर जितत बा। उ बोलले 250 सीट पर। पत्रकार आपन माईक वाईक लेके भागल, दादा हो बिहार में 243 गो सीट बा इ ढ़ाई सौ पर जितता। 
जेईसे मौसम देख के धुकधुकी बढ़ल बा। गर्मी जाते नईखे आ जाड़ा आवते नईखे, बीचे में बरखा ढुकल बा। ओइसे बिहार की चुनाव में जंगल राज आ सुशासन की बीच में जन सुराज  कूदल बा। 
जवन आदमी बारी-बारी से कबो मोदी, कबो केजरीवाल , कबो नीतीश कबो ममता कबो चंद्रबाबू खातिर पैसा पर काम करत रहे आज पूरा बिहार अपना खातिर धांगत बा। सबसे ज्यादा यूट्यूबरन के चोंगा उनही की मुंह की आगे रहत बा। आगे देखल जाई, कुछ बदलाव होई की फेरु बैतलवा ओही डाल जा के बैठ जाई। 
फेरु मिलब अगिला हफ्ते, पढल करीं रफ्ते रफ्ते...
 
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