गुरुवार, 17 मई 2012

कंकरी के चोर, कटारी से मराई, लूटेरन के ऊंचकी कुरसी दियाई

कंकरी के चोर, कटारी से मराई, लूटेरन के ऊंचकी कुरसी दियाई
सड़क की किनारे भूजावाला के ठेला। पेट की खातिर दहकत दिन की आंच में देहि झउंसत, भूजा भूजत भूखाइल सधारन मनई के भूख मेटा के आपन पेट पालला के पर्यत्न। नीली बत्ती लगावल बेलोरो से उतरत सिपाही। चार मुट्ठा चना-चिउरा सुखले चबा गइलें,उपर से गारी-फजिहत, ठेला हटावला के आदेश। चालान के रसीद, सड़क पर ठेला लगवला के सजा 200 रुपया। मनबोध मास्टर देखि के दंग रहि गइलें। बोललें- कंकरी के चोर कटारी से मरात बा। जवना देश में भ्रष्टाचार के तूती बोलत बा। विकास की नाम पर सड़क खोद के छोड़ दिहल गइल बा। नाली-नाबदान त भरले बा, आसपास कूड़ा के ढेर लागल बा। गांवन से बिजली नदारद बा। शहर के पुलिस सहायता केंद्र वसूली केंद्र के रूप में स्थापित। प्रदेश से लेके देश तक बारी-बारी लूटे के तैयारी। उनकर उ दिन बीत गइल, जब तूती बोलत रहे। सोने के चिरई कहाये वाला अपनी देश के जेतना गोरका अंगरेज ना लूटलें ओसे ज्यादा आजादी की बाद खद्दरधारी लूट मरलें। देश में बहुत जांच चलत बा। बहुत घोटाला भी होता। ठेला वाला के डंडा मार के भ्रष्टाचार ना भगावल जा सकेला। भ्रष्टाचार त लोग की आचार, व्यवहार, नेति, नियम, कानून में रचि-बसि गइल बा। इ परिपाटी चलते रही, केहू भीतर जाई, केहु बाहर आई। ‘राजा’ बाहर अइले, ‘रानी’ के भीतर भेजे के तैयारी होखे लागल। ‘भइया जी’
नया खुलासा कइलें। चालीस हजार करोड़ के घोटाला। बइसे भी ‘बहन जी’ की राज में सत्तावन सौ करोड़ के एनआरएचएम घोटाला, बारह हजार करोड़ के मनरेगा घोटाला, ग्यारह सौ अस्सी करोड़ के चीनी मिल बिक्री घोटाला, एक सौ बीस करोड़ के टीइटी घोटाला प्रकाश में आ चुकल बा। जइसे छप्पन,ओइसे घप्पन। चालीस हजार करोड़ इहो सही। घाव चाहे कट्टा के होखे चाहे छुरी के। लापरवाही के होखे चाहे मजबूरी के। जब जहरीला हो जाई त आपरेशने इलाज बा। भ्रष्टाचार की प्रायश्चित खातिर बढ़िया जगह तिहाड़ ही बा। देश की हालत पर इ कवित्तई बहुत सधत बा-
 कंकरी के चोर , कटारी से मराई। 
लूटेरन के ऊंचकी, कुरसी दियाई।।
 कहिया ले देश में अनेति अइसे चली।
 किकुरी ईमानदार, फइली बाहुबली।। 
बहुत भइल पहरा, भ्रष्टाचार भइल गहिर।
 देश भइल खोंखड़, घाव भइल गहिर।। 
केके हम कुरुप कहीं, केकर सुन्नर मोहड़ा।
 घिन्न आवे देख के नेतवन के चेहरा।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 17 मई 12 के अंक में प्रकाशित है .

1 टिप्पणी:

  1. aap ki vishesta ki aap aur aap ki RACHNAYEN dono hi samaj ko yatharth se rubru karane ke liye katibadh rahte hei......... lekin.............humara samaj aur hum ????????

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