भोजपुरी संगीत के समारोह में देवरिया जिला की नदौली गांव के सोनू शांडिल्य नाम के एगो लइका गवले रहे- “बारह सौ के नौकरी, पहिने पन्द्रह सौ के साड़ी, हाय रे आगनबाड़ी....”। गाने के लाइन व्यग्य भरल रहल। एगो सवाल भी उठावल गइल रहे कि बारह सौ रुपया पगार पाये वाली मेहरारु अगर डेढ़ हजार के साड़ी पहिरी तs घर-परिवार के और खर्चा कइसे चली। कुशीनगर की विशुनपुरा थाना की दुदही ब्लाक में घराइल 128 बोरी पोषाहार येह बात के साबित कs दिहलसि कि आगंनबाड़ी की साड़ी की पीछे इहे राज बा। दरअसल, सरकार गांव-गांव आगंनबाड़ी केन्द्र खोल के नौनिहालन के पोषाहार खियाके पट्ठा बनावला में पावनी अइसन पइसा बहावति बा। लेकिन येह विभाग में भष्टाचार के आलम इ बा कि गरीब लइका-लइकी, आ गर्भवती मेहरारु का हिस्सा वाला पोषाहार खुला बाजार में बेचल जाता। सोमवार य़ानि पहली नवंबर 2010 के एगो पिकप गाड़ी पर लदल 128 बोरा पोषाहार पडरौना- तमकुही मार्ग से बिहार की ओर जात रहे। कुछ जागरुक लोगन के नजर पड़ल। सोचले यूपी की माल से बिहार के लोग मोटाई। अइसन ना होखे दिहल जाई। जागरुक लोगन के पारा गरमाइल, पिकप रोकाइल। विशुनपुरा थाना के सौंप दिहल गईल।
गजब व्यवस्था बा। गांव-गांव आगंनबाड़ी केन्द्र खुलल बा। केन्द्र पर ना लइका लड़केलन ना मेहरारु। लेकिन हर महीना पोषाहार जरुर मिलेला। कागज पर चले वाला अइसन केन्द्र पर लाखौं के न्यारा-बारा होला। लइकन को पुष्ट बनाने वाला पोषाहार 125 से 150 रुपया बोरी बेचि दिहल जाता। एतना सस्ता तs अपने देश में नमक भी ना मिलेला। लइकन-बच्चन-मेहरारु के पोषाहार बाजार में बिकाइला की बाद फिर खगिददारी की माध्यम से गांव में पहुंचेला, जहां जानवार के आहार बनि जाला। भूसी, चोकर, खरी- खुद्दी. दाना-चारा की जगह पर पशुपालक अपनी जानवरन के पोषाहार खियावत। पन्द्रह सौ की साड़ी वाली आगंनबाड़ी की येह कमाई से ब्लाक मुख्यालय से लेके जिला स्तर तक के अधिकारी मलाई काटत हवें। का जरुरत बा? अइसन योजना के। जरुरतमन्दन की अइसन सरकारी योजना के बन्द कs देवे के चाहीं। नाहीं तs गीत के मथेला वाली लाइन गड़बडा के गावल जा- “बेचि के पोषाहार, लिपिस्टिक झारत बाड़ी, हाय रे! आगंनबाड़ी। एन .डी. देहाती
गजब व्यवस्था बा। गांव-गांव आगंनबाड़ी केन्द्र खुलल बा। केन्द्र पर ना लइका लड़केलन ना मेहरारु। लेकिन हर महीना पोषाहार जरुर मिलेला। कागज पर चले वाला अइसन केन्द्र पर लाखौं के न्यारा-बारा होला। लइकन को पुष्ट बनाने वाला पोषाहार 125 से 150 रुपया बोरी बेचि दिहल जाता। एतना सस्ता तs अपने देश में नमक भी ना मिलेला। लइकन-बच्चन-मेहरारु के पोषाहार बाजार में बिकाइला की बाद फिर खगिददारी की माध्यम से गांव में पहुंचेला, जहां जानवार के आहार बनि जाला। भूसी, चोकर, खरी- खुद्दी. दाना-चारा की जगह पर पशुपालक अपनी जानवरन के पोषाहार खियावत। पन्द्रह सौ की साड़ी वाली आगंनबाड़ी की येह कमाई से ब्लाक मुख्यालय से लेके जिला स्तर तक के अधिकारी मलाई काटत हवें। का जरुरत बा? अइसन योजना के। जरुरतमन्दन की अइसन सरकारी योजना के बन्द कs देवे के चाहीं। नाहीं तs गीत के मथेला वाली लाइन गड़बडा के गावल जा- “बेचि के पोषाहार, लिपिस्टिक झारत बाड़ी, हाय रे! आगंनबाड़ी। एन .डी. देहाती