गुरुवार, 21 जुलाई 2011

सबका खातिर चढ़ल बा सावन, उनका खातिर बसंत...


शहर में तेंदुआ फंसावे खातिर वन विभाग के लोग दू दिन से पिजरा में बकरी बान्हि के जाल बिछवले हवें लेकिन उ फंसते ना बा। लेकिन मेडिकल के छात्रा गुरुजी की जाल में फंसि गइली। बबुनी मेडिकल पढ़त-पढ़त प्रेम के पाठ पढ़े लगली। पुलिस महकमा परेशान रहे। ‘गोद में लक्ष्का शहर में डवरेरा’ की तर्ज पर पुलिस वाला जौनपुर से लखनऊ ले छान मरलन, लेकिन बबुनिया गोरखपुर के ही एगो होटल में गुरुजी से ‘एकांत शिक्षा’ लेत रहे। सुबह जब अखबार देखली तù पता चलल कि उ गायब हई,गुमशुदगी दर्ज बा। इश्किया रोगी डाक्टर व छात्रा कù इलाज पुलिस वाला ना कù पवलें। कारण ,दूनो बालिग हवें। अब सवाल इ उठत बा कि बालिग गुरु-शिष्या के संबंध जायज बा? अइसन गुरु समाज के कवन संदेश दीहन? डाक्टरी पढ़े बाली बबुनी माई-बाप की आंख में धुरि झोंक के इ कवन पढ़ाई पढ़त हई? भारतीय संस्कृति में अइसन संबंध के मान्यता कहां बा? इ तù एकदम अंगरेजी सभ्यता हù जवना में ‘लीव इन रिलेशनशीप’ कù पाठ बा। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य के संबंध पिता-पुत्र अइसन होला। समाज में जेतने शिक्षा बढ़त बा, ओतने संस्कृति खराब होत बा। लोक-लाज कù जनाजा निकरल जाता। अब तù गंउअन में भी इहे रोग फइलल जाता। पहिले का समय में ‘कुजतिहा’ छंटला के व्यवस्था रहल तù समाज के भय से भी लोग ‘लंगोट के पक्का’ होत रहलें। गांव में केहू एगो-दुगो लोग ‘बहकल’ तù जवार-पथार ले हल्ला हो गइल। फलनवां ‘पंद्रहआना’ हो गइल। मतलब की खांटी रहे खातिर सोरहआना रहल जरूरी रहत रहल। अब पंन्द्रहआना के कहे, आठ आना भी ना बचल बा। कानून से ‘लवलाइटिस’ ना रोकल जा सकेला। कानून तù अइसहीं आपन पल्ला झाड़ के खड़ा हो जाई कि बालिग हवें.। इ सब रुक सकेला संस्कार से, सामाजिक भय से, लोकलाज से। बबुनी मेडिकल के पढ़ाई पढ़ के पास होइती तù देश-समाज के नाम रोशन होइत। लेकिन उ पास हो गइली इश्कबाजी में.। एगो कवित्तई में घटना के अर्थ निकारीं सभें- 
सबका खातिर चढ़ल बा सावन, उनका खातिर बसंत। येह बरुअन के का कहीं, जेकर आदि न अंत।। शिष्या को जब पकड़ लिया, लवलाइटिस का रोग। गुरु की साथे मौज मनावे, कब तक सहे वियोग।। सोचले ना रहलें बाबा कि, इहो जमाना आई। गुरु अपनी गरिमा के त्यागी, मटुकनाथ बन जाई।।


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