देवरिया जनपद मुख्यालय से लगभग बीस किमी दूर स्थित रुद्रपुर नगरी को काशी का दर्जा प्राप्त है। यहां भगवान शिव, दुग्धेश्वरनाथ के नाम से जाने जाते है। शिवलिंग जमीन के अंदर कितने गहरे तक है, इसकी थाह कोई नहीं लगा पाया। शिव पुराण व स्कंद पुराण के साथ ही चीनी यात्री ह्वेंनसांग ने भी बाबा की महिमा का बखान किया है।
उप ज्योतिर्लिंगों की स्थापना के संबंध में पद्म पुराण की निमन् पंक्तियां उल्लिखित हैं-
खड़ग धारद दक्षिण तस्तीर्ण दुग्धेश्वरमिति ख्याति सर्वपाप:, प्राणाशकम यत्र स्नान च दानं च जप: पूजा तपस्या सर्वे मक्षयंता यान्ति दुग्धतीर्थ प्रभावत:।
उप ज्योतिर्लिंगों की स्थापना के संबंध में पद्म पुराण की निमन् पंक्तियां उल्लिखित हैं-
खड़ग धारद दक्षिण तस्तीर्ण दुग्धेश्वरमिति ख्याति सर्वपाप:, प्राणाशकम यत्र स्नान च दानं च जप: पूजा तपस्या सर्वे मक्षयंता यान्ति दुग्धतीर्थ प्रभावत:।
ईसा पूर्व 332 में रघु वंश से जुड़े महाराजा दीर्घवाह के वंशज राजा ब्रजभान रुद्रपुर आए थे। तब क्षेत्र :जंगल से आच्छादित था। सैनिक मचान बनाकर रहते थे। एक रात उन्होंने देखा कि एक गाय आकर खड़ी हो गई और उसके थन से स्वत: दूध निकल रहा है। राजा ने जिज्ञासा शांत करने के लिए उस स्थान की खुदाई कराई। उन्हे वहां एक शिव लिंग दिखा। उस स्थान की साफ सफाई कराकर वेदपाठी, विद्वान ब्राह्मणों द्वारा शिव लिंग का रुद्राभिषेक कराया गया। चूंकि गाय ने प्रथम बार लिंग का दूध से अभिषेक किया था, इसलिए पीठ का नाम दुग्धेश्वर नाथ रखा गया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल दधीचि व गर्ग आदि ऋषि-मुनियों की तपस्थली भी है।
देवारन्य की इस धरती को बार -बार नमन करने का जी करता है . हर हर महादेव ... om namah shivay
हर हर महादेव
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