समुन्दर की मंथन से चौदह को रतन निकलल। चान भी ओही में के एगो रतन हवें। बंटवारा में देवता लोग की बखरा पड़लें। चंद्रमा सुख शांति के कारक हवें।शीतलता के प्रतीक हवें, लेकिन जब उग्र हो जालें त पल्रय भी आ जाला। चंद्रमा मन के कारक हवें, बहुत चंचल हवें। कंट्रोल करे खातिर महादेव की बखर दिया गइलें। महादेव जी जइसे अपना जटा-जूट में गंगा की वेग के रोक दिहलन, ओइसहीं चंद्रमा के अपनी ललाट पर जगह दीहलें। चांद जब अजमंजस में रहेलन त लोग कहेलें दुइजी के चान हो गइल। कवि-साहित्यकार, कौव्वाल- गजलकार चान के चहेट-चहेट के अपनी रचना में बन्हलें। सुन्नर चेहरा चान बना दिहल गइल। चान अंजोरिया-अन्हरिया के पैमाना हो गइलें। पूरनवासी के चान, कातिक के नहान प्रसिद्ध हो गइल। चान लुकाइल त अमवसा हो गइल। मुसलमान भाई लोग जब ऐही चान के देख लेलें, त ईद के घोषणा हो जाला। चांद की दीदार की बिहाने ही ईद मनावल गइल। महीना भर दिन में रमजान, सांझ के इफ्तार क के रहमत बटोरे वाला भाई लोग ईद की मौका पर गले मिलल। मुबारकबाद दिहल। साम्प्रदायिक सौहार्द की सूत्र से लोकप्रियता बटोरेवाला लोग दिल मिले ना मिले गले मिलत मिललें। असों के ईद की साथ ही तीज के तिहुआर भी रहल। येह लिये भी साम्प्रदायिक सौहार्द बनल रहल। कहल गइल इ सब अन्ना के असर रहल। अन्ना के बाति छोड़ी चन्ना की बात पर आई। कृष्ण भगवान येही चान खातिर यशोदा मइया के परेशान कइलें। सूरदास के भजन तैयार हो गइल-मैया मो तो चंद्र खिलौना लैहों.। भादो की चौथ के भगवान देख लिहलें त कलंक लागल। येही से चौथ की चान के कलंकी चान भी कहल गइल। जवना चांद के दुईज के देख के एगो वर्ग खुश भइल ओही चान के चउथ के दिने देखला पर दूसरका वर्ग पास-पड़ोस में चेका चलावे लागल। अइसन चउथ के पाथर चौथ कहल गइल। जवन वर्ग आज चेका चलाई, जब करवा चौथ आई तो चलनी से चान निहराई, अघ्र्य दिआई। अइसने स्थिति पर देहाती बाबा कहलें-
‘कहीं चांद देख के गले मिलें, कहीं चान देख चलावे लें ढेला।
कहु चान ना दिखे लुकाइल लोग , कहीं चान के देखले लागल मेला।
कहीं दुइज के चान हो गये पिया, कहीं चान सा चेहरा निहारे अलबेला।
येही चान के अघ्र्य से करवा चौथ,केतना कहीं हम येही चान के खेला।।’
नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा गोरखपुर के १ सितम्बर २०११ के अंक में प्रकाशित
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