गुरुवार, 29 सितंबर 2011

लकड़सुंघवां, धोकरकसवा धरिहे-घेरिहे, जागते रहो..

  पूर्वाचल में एह समय अफवाह के ‘वाह-वाह’ बा। कहीं लकड़सुंघवां, कहीं धोकरकसवा, कहीं चोर, कहीं डाकू। कानून-व्यवस्था के अवस्था बहुत खराब चलत बा। भय आ आतंक के आलम इ बा कि गांव के लोग पहरेदारी करत हवें। रात नौ बजे से भोर चार बजे ले ‘जागते रहो’ की गूंज से गांव के सिवाना गूंजत बा। येही अफवाह में केतना पागल पिटा गइले। एगो पागल के कच्छा बनियान गिरोह के सदस्य बतावल गइल, जबकि उ कच्छा-बनियान की जगह मैक्सी पहिनले रहे। एगो दूसर पागल के पकड़ के पीछे-पीछे हजारन मनई नारा लगावत रहलें-पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद। ओकरा पगलयीला में पुलिस के कवन भूमिका रहे? लेकिन झेले के पड़ल। झेलला की पीछे कारन इ रहे कि इलाका में चोरी-डकैती के बहुत घटना होत बा। आलम इ बा कि धरिहे-घेरिहे की शोर में कई जने शरीफ मनई भी पिटा जात हवें। रात में ट्रेन पकड़ल, चाहे ट्रेन से उतर के गांव गइल गुनाह हो गइल बा। लुहेड़न के लहान आइल बा, जहे चाहें हाथ साफ करत हवें। बोलेरो से कुछ लोग रिश्तेदारी में दावत खाये जात रहलें, रास्ता में एगो गांववाला नौ बजे ‘जागते रहो’ के पहिला एलार्म दिहलें कि सामने गाड़ी के लाइट पड़ल। जुट के टूट पड़लें, कूट दिहलें। उ कहें हम फलां के मउसा हई, गांव वाला कहें ससुरा डाकू हवें, अमवस्या जगावे जात हवें। बेलोरोवाला लोग नवरातन की एक दिन पहिले ही व्रत काटि लिहलें। कई जगह धोकरकसवा, पेटचिरवा, लकड़सुंघवां, कपरफरवा..और न जाने कौन-कौन नाम के आतंकी पैदा हो गइल हवें। गांव के लुहेड़ा सर्टिफिकेट बांटत हवें कि फलनवां गांव में लकड़सुंघवां आ गइल रहल। अफवाह की येही दौर में दुबई से फोन आइल पानी जहरीला हो गइल बा, जे पी ऊपर चलि जाई। येह लीला से कई जने बिन पानिये के रहि गइलें। एगो दूसर अफवाह फैलल, जेकरा जेतने संतति ओतने दीया जरावें। दीवाली त दूर बा गांव-गांव ‘दियादियारी’ मने लागल। कुछ लोग कहल कि रात में गांव से अब अपरचित लोग के गुजरल मुश्किल हो गइल बा। अब लूला, लंगड़ा, अंधा, भिखमंगा भी गांव में रात गुजरला से परहेज करत हवें। सब शहर की ओर भागत बा। अबहिन पागलन के र्चचा चलते रहे, येही बीचे बाबा गोरखनाथ की पावन धाम में धमाका हो गइल। धमाका की बाद एगो संदिग्ध पागल धराइल। जांच पड़ताल में पता चलल कि उ एगो संगठन के कार्यकर्ता ह। गनीमत रहल दूसरा मजहब के ना निकरल, नाहीं त माहौल गरम हो गइल रहित। पड़ताल में ओकरा पास से संगठन के परिचय पत्र मिलल। अब सवाल इ उठत बा कि पगलन के संगठन क परिचय पत्र काहें दियात बा? आकी परिचय पत्र पाके उ पगला जात हवें? येही र्चचा में बात साफ भइल कि ओकरा लगे पत्रकार संगठन के भी परिचय पत्र मिलल। इहो पता चलल कि एक हजार में खरिदले रहे। पूरा पागल बा, जवना शहर में तीन सौ में ही रिक्शावाला, खोंमचावाला, ठेलावाला और न जाने कवन- कवन वाला के पत्रकार संगठन के परिचय पत्र बेंचि दीहल जाता, उ एक हजार में खरीदलसि। बस सजो समस्या के इहे समाधान बा- जागते रहो..।
नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के २९ सितम्बर के अंक में प्रकाशित है .

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