शहर जाम की झाम से परेशान रहे। यातायात व्यवस्था में बहुत बदलाव भइल। लेकिन परेशानी दूर ना भइल। ग्रामीण इलाका के टेंपो शहर में अंड़सल हवें। अइसने एगो टेंपों में हमहूं ठूंसा के आवत रहलीं। .. में भयंकर जाम । सोचलीं इ कवन नया जाम प्वांइट बनि गइल। पता चलल माताजी के कुछ भक्त लोग हाकी-डंडा की साथे चंदा मांगत(वसूलत) हवें। जवन टेंपों वाला चूं-चां करें, गाली-फजिहत के परसाद पहिलहि पावें। टेंपो से उतर के बाहर सड़क के नजारा लेबे लगलीं। मनबोध मास्टर भी मिल गइलन। कहलें- देखी बाबा, बांस गड़ा गइल, दशहरा आ गइल। आधा सड़क ले पांडाल गड़ाइल बा। अब महीना भर चंदा के धंधा भी जोर से चली। एहू पूजा में लीला होई। लक्ष्के-फइके राम बनिहें। पोंछि बान्हि हनुमान बनिहें। कैकेई, मंथरा, सुरसा, सूपनखा, ताड़का सब आ जइहें। मारिच भेष बदल के हरना बनी। रामजी सीता मइया की खुशी खातिर हरना की पीछे भगिहें। मायाबी लीला करी, लछुमन-लछुमन चिल्लाई। लखनलाल धुनहा लेके धइहें। एने रावन साधु की वेश में आई, सीता मइया के हरि ले जाई। दुनो भाई बने-बने भटकिहें। कोल-भील, भालू-बंदर से दोस्ती होई। रावन फेर विभिषण के लात मार के घर से निकाल दी। समुंदर पर पुल बंधाई। लंका फूंकाई। रावन जरा दिहल जाई। हर साल इहे कहानी दोहरावल जाता, लेकिन केहू की मन के रावन ना मरल। पूजा नेम-धरम के चीज ना रहल अब प्रदर्शन हो गइल। घर में माई पानी बिना टें-टें करिहें। लक्ष्के सड़क पर जय हो -जय हो करिहन। माई की थान पर नंगटन के नाच होई। गंदा-गंदा गीत होई। माई-बोहिन लोग मुड़ी निहुरवले जइहे, खोंइछा भर के माई के विदाई कù दीहें। हर वर्ष इहे लीला होता। बंगाल से आइल इ दुर्गापूजा अब गांव-गांव फइलल बा। अब तù एतना माई के भक्त हो गइल हवें कि असली-नकली के पहिचान दुलुम हो गइल बा। मनबोध मास्टर के बतकही पर हमार कवित्तई शुरू हो गइल- आस्था उमड़ी सड़क पर, सरै न एकौ काम। माई की पूजा बदे, खूब वसूलें दाम।। लुच्चा -लंपट भी बने, देवी मां के भक्त। हाकी-डंडा लिए खड़ी, सेना उनकी सशक्त। चंदा का धंधा शुरू, हुआ जागरन नाम। नाचे-गावे कमर हिलावें, जय हो- जय हो बदनाम।। |
नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी लेख ८ सितम्बर २०११ के राष्ट्रीय सहारा गोरखपुर में छपा है
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