गुरुवार, 29 मार्च 2012

कइसे रोग भगावल जाई, अस्पतलवे भइल बीमार.

मनबोध मास्टर नवरातन के व्रत का रखलें, दाढ़ी-ओढ़ी बढ़ा के पूरा बौराह बनि के घुमत हवें। कहलें-लोकलाज त कब्बै के धो-धा के पंच पी लेले बा। कुछ कानून-ओनून के भय रहे उहो ओराइले जाता। बड़का साहब एक दिन अस्पताल के दशा देखे गइलें। दुर्दशा देख के लाल-पियर होखे लगलें। कहलें- मरीजन के बहरा से दवा के पर्ची ना लिखाई। अस्पताल में एमआर आई त जेल भेजाई। एतना बेरोजगारी में केहू एमआरी कù के जियत बा त साहब के भृकुटि टेढ़ हो जाता। अस्पताल में डील ना होई त एमआर लोग डाक्टर साहब से कहां मिलिहें। आवास पर त अस्पताल से अधिका मरीज डाक्टर साहब देखेलन। मरीजन के सरकारी दवा ना लिखाई तù सांझि की बेरा सब्जी भी मोहाल हो जाई। दवा की दुकानन की कमीशन से ही डक्टराइन के लिपिस्टक टहकार लउके ला। मरीजवनो का अस्पताल की दवाई से भरोसा ना रहेला। उ कहलें इ त भट्ठा-प्लास्टिक के मेल ह। बहरा के दवाई जब महंगा किनाई, कुछ जेब हलुकाई, तबे मरीज का बुझाई कि बेमारी अब जाई। सरकारी अस्पताल में जांच के सजो व्यवस्था बा लेकिन बहरा के पैथालोजी के प्रमाण के जरूरत बा। जेतने पैथालोजी ओतने प्रकार के रिपोर्ट। एके मरीज दु जगह जांच कराई त दु प्रकार के रिपोर्ट मिली। अब डाक्टर साहब बुझें बुझौवल। पकड़े बेमारी। जहां अस्पताल रही ओइजा ना दवा के दुकान रही। घर-घर लोग बीमार बा। गांव-गांव में एमआर बा। अस्पताल के आरी-पासी दवा के दुकानदार बा। सबका सबसे दरकार बा। राज आई जाई, लेकिन व्यवस्था बदलला में नाकन चना चबाए के परी। राज-काज बदलते सरकारी डाक्टरन के लहान लौट आइल बा। अब नया आदेश में डाक्टरन के मनचाही जगह पर तैनाती मिलला के खुशी बा। लोक सेवा आयोग डेढ़ हजार डाक्टरन के भर्ती कइलसि ओहमा 700 डाक्टर त मनचाही जगह पर तैनात हो गइलें। अब उनकर मर्जी, दवा करें चाहें दूसर धंधा। सरकार बहुते सुविधा दिहलसि। एक रुपया की पर्ची पर पूरा दवाई। अस्पताल में प्रसव कराई अइला गइला के किराया पाई। मनई तंदुरूस्त रही त देश दुरुस्त रही। लेकिन व्यवस्था में लागल घुन के मरला के काम बा। एकरा खातिर अच्छा क्वालिटी के कीटनाशक चाहीं। मिलावट वाला कीटनाशक ना असर करी। पिछली सरकार में स्वास्थ्य विभाग में एतना बड़वर घोटाला भइल। घोटाला की आंच में कई मंत्री-विधायक जेल में दवा खाके दिन बीतावत हवें। एनआरएचएम घोटाला के कैप्टन कुशवाहा जी अपने दल से गइलन जहां गइलन ओहु के डूबवलन। देश में बहुत बेमारी बा। धीरे-धीरे सबकर दवा करे के परी। दवा ना होई त मरीज मरी, अस्पताल भी मर जाई। कुछ अइसने हालात पर इ कवित्तई बा-
कइसे रोग भगावल जाई, अस्पतलवे भइल बीमार। घर-घर रोगी कहंरत हउवें, गांव-गांव घूमे एमआर।।
 सत्ता बदलल , व्यवस्था बदली, तब होई कल्यान। अगर ध्यान ना दिहल जाई, तब मालिक भगवान।।
-narvdeshwar  pandey dehati ka yah bhojpuri vyngy rashtriy sahara ke 29 march 2012 ke ank me prkashit hai .

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