सांच कहे, जग मारल जाला..
मनबोध मास्टर बौराइल हवें। भांग ना खइले हवें, लेकिन भंउआइल हवें। साठ बसंत कù अंत दिहलें। कपार के सजो बार उज्जर हो गइल, लेकिन मन बसंती बा। असों ज्योतिषी आ विद्वान लोग में एतना रगरा बा कि फगुआ के त्योहार के दु दिन में बांटि डरले हवें। सरकारी छुट्टी सात आ आठ के बा तù काहें काठ मरले बा। फगुआ नौ के होई, तù तीनों दिन मजा लिआई। मनबोध मास्टर की भंउअइला के कारन पुछलीं तù भभक के खाड़ हो गइलें। कहलें- इगारहे के बटन दबवलीं। परिणाम अबहिन कोमा में बा। छह मार्च के परिणाम का होश आई। तबले सात-आठ-नौ के होली के लीहो-लीहो रही। जे जीती ओकर फगुआ सतरंगी रही, लेकिन जे हारी ओकर चेहरा पीयर, होली करिया। बीच-बीच में तिनरंगा वाला डरवा देत हवें कि परिणाम त्रिशंकु निकली। राष्ट्रपति शासन लागी। सरकार कवनो बने जनता का चाहीं कि होली जरवला की पहिले देंहि ला कसके बुकवा लगवा के झिल्ली झरवा लें। देंहि बरियार कù लिहला के जरूरत बा, काहें कि बजट के मार भी पड़हि वाला बा। गजबे देश कù व्यवस्था बा। सांच बाति के आंच बर्दास्ते ना होत बा। लोकतंत्र की बड़का मंदिर में बइठ के मोबाइल में ब्लू फिल्म देखला में नेताजी लोग का कवनो शरम-हया नेइखे लागत। पंद्रह जने पर हत्या के आरोप बा। तेइस जने पर हत्या के प्रयास के मामला बा। ग्यारह जने पर चार सौ बीसी आ तेरह जने पर अपहरण अइसन गंभीर आरोप बा आ ऊ ही-ही-ही कù के बत्तीसी देखावत हवें। कारन इ बा कि जनता जनार्दन उनकी पीठ पर एमपी के ठप्पा जवन लगा देले बा। आपन चाल-चरित्र-चेहरा ना देखत हवें, आ टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल सांच कहि दिहलें तù ‘
देशद्रोही’। मनबोध मास्टर के बाति सुनि के हमरो कवित्तई बहरिया गइल-
सांच कहे जग मारल जाला, बुझें न केजरीवाल। नेता लोग का उनकर बतिया, लागे बर्छी- भाल।। लोक तंत्र के बड़का मंदिर में, देंखे ब्लू फिल्म। हत्या, चार सौ बीस,अपहरण, कइसन-कइसन इल्म।। उज्जर कुरता पहिन के , करते काला कारोबार। रोग समाइल देश की भीतर , बहुते भ्रष्टाचार।। केहु जीते केहु हारे, हमरा का दरकार। देंहि ला तेल लगावत हई, पड़ी बजट के मार।। -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती की यह भोजपुरी व्यंग्य रचना राष्ट्रीय सहारा के १ मार्च २०१२ के ank me prkashit hai. |
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