के ऊपज होत रहल। देश तरक्की कइलसि। तकनिक के खेती आइल। खेती-बारी के काम आसान भइल। येही बीच मनरेगा आइल। गांवन से खेतिहर मजदूर गायब हो गइलन। कटिया की सीजन में खेतन में हसुंआ हड़ताल। भला होखे कंबाइन आइल। पहिले त लोग येके यमराज कहत रहल, लेकिन अब बुझात बा इ धर्मराज बा। कंवाइन ना रहित त अन्न के दाना घरे ना आइत। देश बहुत तरक्की कइलसि, लेकिन अबहीन जरूरत बा कि जइसे कम दाम के कार आइल ओइसे कम दाम के ट्रैक्टर आ कंबाइन के भी जरूरत बा। कहे खातिर सब किसान के समर्थित सरकार बा लेकिन किसान हित के बात सोचे वाला के बा? डीजल पर सब्सिडी ना मिली। सीजन में थ्रेसरिंग खातिर बिजली भले ना मिली, खेते में आग लगावे खातिर जरूर आ जाई। उत्पादन की मामला में देश प्रगति कइलसि त उत्पादकता के कीमत भी लगे के चाहीं। उत्पादन त एतना बा की सरकार का गेहूं खरीदला में पूरा तंत्र के शक्ति लगावे के परत बा। गेंहूं के कटाई पर इ कविता- जबसे आइल बा मनरेगा, खेतिहर मजदूर मिलल दुश्वार। कटिया दवंरी और ओसवनी, किसानी के बंटाढ़ार।। भला भइल की गांव-गांव में, कंवाइन बा आइल। घंटा दु घंटा ही लागल, कोठिला में अन्न भराइल।। |
गुरुवार, 18 अप्रैल 2013
जबसे आइल बा मनरेगा , खेतिहर मजदूर मिलल दुश्वार
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