गुरुवार, 11 जुलाई 2013

रोवत हवें ऊंट, घूंट-घूंट मरला से, साहब काहें बदे हमका बचवलें

मनबोध मास्टर व्यवस्था की येह अवस्था पर उंगली उठावला से परहेज ना कइलें। सवाल छोटवर रहे लेकिन समस्या बड़वर रहे। भगवान बुद्ध के धरती कहायेवाला कुशीनगर में एगो थाना बा पटहेरवा। बगल से गुजरे की पहिले नाक पर रुमाल जरूरी बा। बदबू के कारण बा, थाना में सड़त ऊंट। थाना में दुपहिया,चरपहिया सड़त त बहुते देखले होइब लेकिन एइजा ‘रेगिस्तान के जहाज ’
सड़त हवें। सुरक्षा में लागल सिपाही चौबिसों घंटा कुक्कुर, कौआ, सियार हंकला में लागल हवें। थाना परिसर में रहे वाला पुलिसकर्मिन के बीवी-बच्चा भी अगुता गइल हवें। सबका मुंह से बस इहे निकरत बा- ‘कवन जरूरी रहे इ बला पलला के’। दरअसल बात इ रहे कि कुछ तस्कर नाम के समाजसेवी लोग राजस्थान से चार ट्रकन पर लाद के 62 रेगिस्तानी जहाज(ऊंट) पश्चिम बंगाल की कत्लखाना में शहीद करावे ले जात रहलें। यूपी की पश्चिम से प्रवेश कराके पूर्वी मुहाना तक पहुंचावते धरा गइलें। सवाल इ बा कि भरतपुर (राजस्थान) से घुसला की बाद कुशीनगर(यूपी)में अइला की राह में दर्जनों जिला(आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, औरया, अंबेडकरनगर, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, बस्ती, संतकबीरनगर और गोरखपुर), सैकड़न पुलिस चौकी, बैरियर लांघत इ ऊंट अइसे ना आ गइल होइहन। गांव-देहात में एगो किस्सा कहल जाला- ‘ऊंट के चोरी, निहुरे-निहुरे?’ इ काम सीना ठोंक के, पैसा फेंक के भइल होई। पटहेरवा पुलिस कुछ ज्यादा कर्त्तव्यनिष्ठ निकल गइल। ईमानदारी में इ बेमारी बखरे पड़ि गइल। सेवा की बाद भी सात ऊंट सरग सिधार गइलें। पचपन ऊंट जवन बचल हवें, नरक भोगत हवें। देहिं सड़त बा, अंतड़ी जरत बा। कौआ नोचत हवें। ऊंट इहे सोचत हवें‘ कत्लखाना में त एके झटका में मुक्ति मिल गइल रहत, इहां तिल-तिल मरे के बा’। प्रशासन जागल बा। कोर्ट के आदेश आ गइल बा। जवन ऊंट बचल हवें उनके उनकी जन्मधरती (राजस्थान) में भेजला के उपक्रम जारी बा। देखल जा, कब ऊंटन के पटहेरवा थाना की नरक से मुक्ति मिली। ऊंट दुर्दशा पर एगो कविता-
 भूसावाली गाड़िन पर , बाज अस झपट्टा देखलीं,
 भरतपुर से कुशीनगर, ऊंट कइसे आ गइलें।
 यूपी की पश्चिम से गोरखपुर ले परमिट रहल?
 कुशीनगर पार करत , कइसे धरा गइलें। 
खेला बा अइसन खेलाड़िन की बखरा पड़ल,
 कोर्ट आ कचहरी की झंझट में अझुरइलें।
 रोवत हवें ऊंट, घूंट-घूंट करके मरला से,
साहब काहे बड़े , हमका बचवलें।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 11 जुलाई 13 के अंक में प्रकाशित है .

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