गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

श्मसान के संत तूने कर दिया कमाल..



 दो अक्टूबर। गांधी जी व शास्त्री जी के जयंती के दिन। समूचा देश दूनों महापुरुषन के याद करत हवें। अइसने प्रमुख दिन के ‘ श्मसान के संत’ इंसेफेलाइटिस के महामारी रोके बदे, राम-जानकी मार्ग के दुर्दशा मेटावे खातिर आ बिजली के बेतहाशा कटौती रोके खातिर पैदल मार्च निकरलें। पैदल चलल त स्वास्थ्य खातिर लाभदायक हइहे ह। जनसेवा में पैदल चलला पर मेवा मिलेला। यात्रा त बहुत होत ह। एगो बाबा मेडिकल कालेज से कलेक्ट्रेट तक पैदल मार्च कइलें तवले दुसरका बाबा पटनाघाट से मार्च शुरु क दिहलें। सरकार की सेहत पर केतना प्रभाव पड़त बा? महामारी मिटे न मिटे समर्थन त खूब मिलत बा। काल की कपाल पर, महाकाल की चौपाल पर, जनता की हाल पर, आज की सवाल पर मनबोध मास्टर की दिमाग में कुछ परिदृश्य घूम गइल। एगो ‘ कलम के पुजारी’ जब ‘ राम-जानकी मार्ग’ नाम से लेखनी मथत रहे त राजनीति के मख्खन चखे लगल। समाजसेवा के व्रत ठनलस त मसान के सूनसान ठेकान भी महान हो गइल। जगजगा उठल सरयू के घाट। दोहरीघाट पुल से जब कवनो अजनवी जब भगवान भोलेशंकर के चालीस फुट ऊंच प्रतिमा देखत होइहन त इहे कहत होइहन महाकालेश्वर के स्थल ह। मशान की महाकाल के जगावत समय में कलम के पुजारी के वेश-भूषा , खान-पान, रहन-सहन, नीति-रीति सब बदल गइल। लंगोटिया यार त ना कहब लेकिन कलमिया यार के जिंस उतर गइल। धोती धारण क लिहलन। कपार से कैप उतर गइल, कत्ती ( कपड़ा के टुकड़ा) बंधाये लागल। दुपहिया ना जाने कवना भुसौला में धरा गइल, की केहू के दान दिया गइल, अब त लग्जरी लउकत बा। लिखता मनई वक्ता बन गइल। चिल्लूपार की जनता के चहेता बन गइल। सब कुछ बदल गइल, लेकिन ‘ कलम के पुजारी’ से ‘ श्मसान के संत’ आ बाद में ‘ मंत्री जी’ आ मौजूदा समय में ‘ जागरूक जनप्रतिनिधि’ की तमाम यात्रा में एगो चीज ना बदलल- ‘ यादाश्त’। मिलला के उहे भाव। ना कवनो घमंड ना कवनो ऐंठन। जीवन की यात्रा में ‘ प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं’। लेकिन श्मसान की संत का कइसन मद? जेकरा कर्मस्थली की घाट मुक्तिपथ पर केतना लोग रोज खाक होता। इ सब प्रसंशा ना हकीकत ह। पद यात्रा में अपार जनसमर्थन मिलत बा। सब के मुंह से इहे निकरत बा‘ श्मसान के संत तूने कर दिया कमाल’ । बिजली की बेतहाशा कटौती की सवाल पर, राम-जानकी मार्ग की चाल पर आ इंसेफेलाइटिस की हाल पर बस इहे कविता-
‘ खूनचुसवों’ से जंग लड़ने चल पड़ा जो।
 जनसेवा के कठोर व्रत पर है अड़ा जो।। 
जनसमर्थन की बदौलत रार ठाना। 
 श्मसान के मशान को जगा कर है खड़ा जो।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 3/10/13के अंक में प्रकाशित है 

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