श्मसान के संत तूने कर दिया कमाल..
दो अक्टूबर। गांधी जी व शास्त्री
जी के जयंती के दिन। समूचा देश दूनों महापुरुषन के याद करत हवें। अइसने
प्रमुख दिन के ‘ श्मसान के संत’ इंसेफेलाइटिस के महामारी रोके बदे,
राम-जानकी मार्ग के दुर्दशा मेटावे खातिर आ बिजली के बेतहाशा कटौती रोके
खातिर पैदल मार्च निकरलें। पैदल चलल त स्वास्थ्य खातिर लाभदायक हइहे ह।
जनसेवा में पैदल चलला पर मेवा मिलेला। यात्रा त बहुत होत ह। एगो बाबा
मेडिकल कालेज से कलेक्ट्रेट तक पैदल मार्च कइलें तवले दुसरका बाबा पटनाघाट
से मार्च शुरु क दिहलें। सरकार की सेहत पर केतना प्रभाव पड़त बा? महामारी
मिटे न मिटे समर्थन त खूब मिलत बा। काल की कपाल पर, महाकाल की चौपाल पर,
जनता की हाल पर, आज की सवाल पर मनबोध मास्टर की दिमाग में कुछ परिदृश्य घूम
गइल। एगो ‘ कलम के पुजारी’ जब ‘ राम-जानकी मार्ग’ नाम से लेखनी
मथत रहे त राजनीति के मख्खन चखे लगल। समाजसेवा के व्रत ठनलस त मसान के
सूनसान ठेकान भी महान हो गइल। जगजगा उठल सरयू के घाट। दोहरीघाट पुल से जब
कवनो अजनवी जब भगवान भोलेशंकर के चालीस फुट ऊंच प्रतिमा देखत होइहन त इहे
कहत होइहन महाकालेश्वर के स्थल ह। मशान की महाकाल के जगावत समय में कलम के
पुजारी के वेश-भूषा , खान-पान, रहन-सहन, नीति-रीति सब बदल गइल। लंगोटिया
यार त ना कहब लेकिन कलमिया यार के जिंस उतर गइल। धोती धारण क लिहलन। कपार
से कैप उतर गइल, कत्ती ( कपड़ा के टुकड़ा) बंधाये लागल। दुपहिया ना जाने
कवना भुसौला में धरा गइल, की केहू के दान दिया गइल, अब त लग्जरी लउकत बा।
लिखता मनई वक्ता बन गइल। चिल्लूपार की जनता के चहेता बन गइल। सब कुछ बदल
गइल, लेकिन ‘ कलम के पुजारी’ से ‘ श्मसान के संत’ आ बाद में ‘
मंत्री जी’ आ मौजूदा समय में ‘ जागरूक जनप्रतिनिधि’ की तमाम यात्रा
में एगो चीज ना बदलल- ‘ यादाश्त’। मिलला के उहे भाव। ना कवनो घमंड ना
कवनो ऐंठन। जीवन की यात्रा में ‘ प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं’। लेकिन
श्मसान की संत का कइसन मद? जेकरा कर्मस्थली की घाट मुक्तिपथ पर केतना लोग
रोज खाक होता। इ सब प्रसंशा ना हकीकत ह। पद यात्रा में अपार जनसमर्थन मिलत
बा। सब के मुंह से इहे निकरत बा‘ श्मसान के संत तूने कर दिया कमाल’ ।
बिजली की बेतहाशा कटौती की सवाल पर, राम-जानकी मार्ग की चाल पर आ
इंसेफेलाइटिस की हाल पर बस इहे कविता-
‘ खूनचुसवों’ से जंग लड़ने चल
पड़ा जो।
जनसेवा के कठोर व्रत पर है अड़ा जो।।
जनसमर्थन की बदौलत रार ठाना।
श्मसान के मशान को जगा कर है खड़ा जो।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 3/10/13के अंक में प्रकाशित है
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