शास्त्र परी जो पंसारी के पाला।
पढ़ी नाहीं उ बेची मसाला।।
संत की
भेख में कालनेमि बन,
जपल करी उ झूठ के माला।।
- भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 28/11/13 के अंक मे प्रकाशित है .
|
शुक्रवार, 29 नवंबर 2013
शास्त्र परी जो पंसारी के पाला..., पढ़ी नाहीं, ऊ बेची मसाला...
गुरुवार, 21 नवंबर 2013
भारत रत्न के महाभारत
यदि काम का हो, तो चेहरा खिला-खिला दिखता है। किसी काम का नहीं, तो रोगी जस पीला दिखता है।। दोष चेहरे पर क्यूं , आंख के चश्मे पर लगाइए जनाब। कलमुंही राजनीति , कभी टाइट कभी नारा ढीला लगता है।। -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 21/11/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
गुरुवार, 14 नवंबर 2013
उठहुं ये देव उठहुं सोवत भइले बड़ी देर..
श्रीहरि विष्णुजी जग गइलें, अब रउरों जग जाई। शंखासुर की समर्थकन के, धरा से मार भगाई।। देवत्व के ज्योति जगा के, असुरत्व मेटाई। देव दीपावली की दीया से, अंधकार मिटाई।। - नर्व्देश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 14/11/13 के अंक मे प्रकाशित है |
गुरुवार, 7 नवंबर 2013
सूपा बाजल, दलिद्दर भागल
दीया बराइल, लक्ष्मी अइली। सूपा बाजल, दलिद्दर भागल। भैयादूज के गोधन कूटइलें, रड़ूहन के तिलकहरू अइलें। मोहर्रम के तासा बाजी , इमाम चौक पर मेला लागी। छठ मइया के अघ्र्य दियाई, सब्जी आ फल खूब किनाई। - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 7/11/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
सदस्यता लें
संदेश (Atom)