गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

हलल भइंसिया पानी में..

हलल भइंसिया पानी में..


मैडम -पप्पू रोक ना पवलें, उड़ल हंसी राजधानी में।

का सचहूं फेंकू की चलते, हलल भइंसिया पानी में।।

दिल्ली में अस जगलें नवहा, बहुत जने हो गइलें घहवा।

चंपले जे इंगलिश बिरयानी, उनके दुलुम चाय आ कहवा।।

गुमनाम नामचीन हो गइलें, दादी रोवें दालानी में।। का सचहूं ..

गॉटर रेत के भीत हो गइल, चारों खाने चित हो गइल।

झाड़ूवाला अइसन झरलें, एके बेर में फिट हो गइल।।

एके साल के जनमल लक्ष्का, हुंकलसि अबे नादानी में। का सचहूं..

जनता के दुख ना बुझी, हारी लड़ाई केतनो जूझी।

चिमचा बेलचा मुंह लुकवलें,कइलें बहुत हांजी आ हूंजी।

थोड़ा तस्सली मिलल जिगर के, रोअवलसि प्याज चुहानी में।। का सचहूं..

इ महंगी के मार रहल ह, केहू के जीत ना हार रहल ह।

बनि के वोट बाहर निकरल ह, आक्रोश के अंगार रहल ह।।

बड़-बड़ महारथी उड़ जइहन, चौदह वाली आंधी में।। का सचहूं..

जाति -धर्म पर केतना बंटबù, टुकड़ा-टुकड़ा केतना कटबù।

जन ज्वार जब एक हो जाई, केसे लड़बù केसे अंटबù।।

ठगलù बहुत ठगाइल जनता, अब पड़बù परेशानी में।। का सचहूं..

हर सड़क के खस्ताहाल बा, रुकल ना क्राइम बड़ बवाल बा।

अपराधिन के टिकट देत हैं, जनता का एकर मलाल बा।।

जनता जानी लाभ ना पइबù, पड़ जइबù तब हानी में।। का सचहूं..

आठ माह में तेरह दंगा, राजकाज के कइलसि नंगा।

रोज डकैती रोज छिनैती, कहां-कहां लोग लेई पंगा।।

छह सौ दुष्कर्म दर्ज भइल बा, हजारों केस छेड़खानी में।। का सचहूं..

सुधरी ना कानून व्यवस्था, अइसहिं जो रही अवस्था।

इस्पात के दंभ भरी का, टीना-मोमा रांगा-जस्ता।।

मोटा-मोटी बात बतवलीं, घुसल का समझदानी में।। का सचहूं..




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