सोमवार, 30 दिसंबर 2013

हिंदी, उर्दू व भोजपुरी की बही त्रिवेणी

 
प्रगतिशील लेखक संघ व गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को प्रेस क्लब के सभागार में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में हिंदी, उर्दू और भोजपुरी के कवियों की एक से बढ़कर एक की गई प्रस्तुतियों से ऐसा लगा जैसे यहां काव्य की त्रिवेणी बह रही हो। शहर में रचनात्मक संवाद को आम बनाने तथा रचनाकारों को परस्पर गंभीरता से लेने पर जोर देने के के उद्देश्य से आयोजित कविता-पाठ, अध्यक्ष मंडल के सदस्यों डॉ. चितरंजन मिश्र, डॉ. अजीज अहमद, डॉ. जनार्दन एवं प्रेस क्लब अध्यक्ष रीतेश मिश्र की उपस्थित में संपन्न हुयी। कविता-पाठ का शुभारंभ नर्वदेश्वर पाण्डेय ‘देहाती’ की भोजपुरी कविता ‘आरक्षण में गांव गईल, लोग बोले बहुबोली। खायीं खायीं ना प्रधान जी, बर्दास्तवाली गोली से हुआ। इस अवसर पर सत्यम सिंह और अभिनव मिश्र की कविताओं को विशेष तौर पर रेखांकित किया गया। उन्हें भविष्य के सार्थक रचनाकार के रूप में देखा गया। लखनऊ से आये शायर बश्ना आलमी की गजलों और कतआत को गंभीरता से लेते हुए कहा गया कि इनकी शायरी में आम जिंदगी की आहट है। डॉ. वेद प्रकाश पाण्डेय के दोहे सम-सामयिकता को रेखांकित कर रहे थे तो वहीं डॉ. अखिलेश मिश्र की कविता ‘तुमको पाया भी नहीं पर भुलाया भी नहीं, काबिले तारीफ रही। वीरेंद्र हमदम की कविता ‘मटमैली दुनिया को ज्यादा कोसो मत, अक्सर नये नोट भी जाली होते हैं। वफा गोरखपुरी ने ‘दीवार नफरतों की गिरा देना चाहिए। जो रो रहे हैं उनको जगा देना चाहिए। ने इस गोष्ठी को मानो जगा दिया हो। कविता पाठ में सुरेंद्र शास्त्री, डॉ. रंजना जायसवाल, डॉ. अनीता अग्रवाल, अर्शी बस्तवी, श्रीधर मिश्र, आडीएन श्रीवास्तव, जगदीश नारायण श्रीवास्तव, वेद प्रकाश आदि ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को समृद्ध किया। कविता पाठ का संचालन महेश अश्क तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद कुमार द्वारा किया गया। इस दौरान प्रेस क्लब का सभागार बुद्धिजीवियों, पत्रकारों एवं कवियों से खचाखच भरा रहा। लोगों ने घंटों खड़े रहकर काव्य- पाठ का रसपान किया। प्रगतिशील लेखक संघ व गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब की सं युक्त प्रस्तुति

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