गुरुवार, 2 जनवरी 2014

हर दिन हो खुशहाल, मुबारक हो चौदह के साल..

मनबोध मास्टर पुरनका जमाना के मनई। अंगरेजी कलेंडर के नवका साल पर ना चाहत भी बधायी देबे में लाग गइलें। गोरखपुर अइसन गंवई शहर महानगर त बन ही गइल, महानगरी संस्कृति में भी बहे लागल। इकतीस की रात से ही हुड़दंगई के जवन सिलसिला शुरू भइल उ पहली के सांझ तक रहल। सिटी मॉल गुलजार रहल। इंदिरा बाल बिहार में लोग मस्त रहे। फारेस्ट क्लब में धमाल मचल। गोकुल, जेमिनी में सर्द रात गरम हो गइल रहे।‘ एक लैला-तीन छैला’ की तर्ज पर लोग एक दुसरे के हैपियावत रहलें। रिलेशनशीप वाला जोड़ी बिंदास अंदाज में एक दूसरे की कमर में हाथ डलले अइसे घूमत रहलें जइसे इ गोरखपुर ना मुंबई के जूहू-चौपाटी होखे। रात में रेस्त्रां-क्लब आ दिन में पार्क में बल्ले-बल्ले। नवहा-नवही के जोश की आलम में पहली के दिन-दुपहरी में व्ही पार्क आ रेलवे म्यूजियम में जवन मेला रहल उ बेजोड़ रहल। सामने की सड़क ले अंड़सल रहल। गांवन में भी नवका साल के बुखार पहुंच गइल रहे। रात भर डीजे बाजत रहे। डीजे पर एक से एक धुन। हई- लक्ष्की हई हाई वोल्टेज वाली.., लालीपाम लागेलू.., मलाई खाये बुढ़वा.., सैंया अरब गइलें. मिसिर जी तू त बाड़ù बड़ा ठंडा.., लगा देंही हुक राजाजी..सहित अइसन -अइसन गाना जवना के एको शब्द एइजा ना लिखल जा सकेला। लिखल ना जा सकेला लेकिन बाजता। नया साल की खुशी में कुशीनगर में बुद्ध बाबा के धरती के भी लोग ‘ शुद्ध ’ कइलें। गुरु गोरखनाथ की मंदिर में भी मेला लागल। बाबा के दर्शन की साथे तालाब में बोट के मजा। रात के खुमार अबे ना उतरल रहे तवले बिहाने से ही बधाई दिहला के सिलसिला शुरू भईल। असों के नवका साल कई मामला में विशेष रहल। पहली जनवरी के कांग्रेसी होखें चाहें भाजपाई, सपाई होखे चाहें बसपाई जब केहू के बधाई दें त अगिला इहे कहे- ‘आप को भी’। मतलब की दु लोगन के बधाई में असों ‘आप’ की खाता में भी बिना मंगले बधाई पहुंचत रहे। जेकरा केजरीवाल से विरोध बा उहो-उहो आप को भी. आप को भी. कही के शेयर करत हवें। वास्तव में इ 14 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उपस्थिति के एहसास रहे। नया वर्ष पर बस इहे कविता- 
हर दिन हो खुशहाल,
 मुबारक हो चौदह के साल।
 चमकत रहे गाल आ भाल,
 सब लोग हो जां मालोमाल।।
 नहीं कहीं दिखे कोई कंगाल, 
केहू के हो ना हाल-बेहाल।
 रउरों छा जाई तत्काल, 
जइसे छवलें केजरीवाल।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती  भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय  सहारा के 2 /1 /13 के अंक में  प्रकाशित है।

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