बाबा जय गुरुदेव कहते थे सत युग आयेगा बाबा जयगुरुदेव पर राधास्वामी मत का प्रभाव रहा और गो सेवा हो या खेती
या जनसेवा, बाबा ने यह मत कभी नहीं छोड़ा। लंगर की परंपरा में सूखी रोटी,
मूली, हरी मिर्च और कम नमक और बिना लाल मिर्च वाली दाल का भोजन हो। या फिर
जात-पात पूछे बिना सामूहिक विवाह कराने का उनका मंतव्य, हर मामले में वह
राधा स्वामी मत से प्रभावित रहे।जानकारों की मानें तो बाबा जयगुरुदेव इस वर्तमान समय में ऐसे बिरले और
असरकारी फकीर रहे, जिनके भक्त वास्तव में कोई नशा नहीं करते, न मांसाहार
खाते हैं न शराब का सेवन करते हैं। और तो और नामयोग साधना मंदिर के दानपात्र में भी उसी को दान देने का
आदेश है, जो किसी प्रकार का व्यसन न करता हो। बाबा ने जो टाट भक्तों को
पहनाया, उसकी सालों आलोचना हुई, पर यह टाट इतना विशेष था कि इसे हर कोई
नहीं पहन सकता था, जब तक कि बाबा का आदेश न हो जाए।
जयगुरुदेव अपने प्रवचनों में हमेशा गरीब दास जी, शिवदयाल जी, सहजो भाई, चरण दास की वाणी, राधास्वामी मत के सार वचन, मीरा बाई, कबीर और घट रामायण का उल्लेख करते थे। उनके भजन और कीर्तन भी फकीरी वाले ही थे। मीरा के भजनों से वह हमेशा प्रंभावित रहे।उनकी बात जहां दुनियादारों को समझ नहीं आयी, वहीं बाबा ने भी उनकी कभी परवाह नहीं की। उन्होंने बताया कि सुरत (आत्मा) दो आंखों के बीच बसती है। वह मनुष्य की आवाज नहीं सुनती बल्कि आकाशवाणी सुनती है। आकाशवाणी के शब्द के जरिए आत्मा इह लोक में उतार कर लायी गयी है। वह कहते कि स्वर्ग, वैकुंठ से आगे भी मंडल और लोक हैं। एक बार पहुंचने के बाद भी नीचे आ सकते हो। और केवल कोई पहुंचा हुआ संत ही वहां तक पहुंचा सकता है। वह गुरु शब्द को ब्रह्म के समकक्ष रखते और उसी की महिमा का बखान करते। उन्होंने अनुभव किया कि बिना शाकाहार अपनाए इंसान निराकार प्रभु का अनुभव नहीं कर सकता, तो उन्होंने इसे अभियान से जोड़ लिया। आश्रम से जुड़े बाबा के प्रमुख अनुयायी संत राम कहते हैं कि बाबा पर वे लोग ज्यादा लिख रहे हैं, जिन्होंने कभी बाबा को नहीं समझा। वह कहते थे कि देवी-देवता तो सृष्टि के ट्रस्टी हैं। असल प्रभु तो निराकार ब्रह्म है। उसी से जुड़ने की सीख देते। मेरे बाबूजी स्वर्गीय सुरेश पाण्डेय बाबा के अनन्यय भक्त थे . बाबूजी के निर्देश से हमने साईकिल से देश के 11 प्रान्तों का बाबा के काफिले में यात्रा की . बाबा की सादगी , बाबा का सत्संग , बाबा का अध्य्तामिक करिश्मा बहुत करीब से देखा हु . इसी से यह दावा कर रहा हु की बेफिक्र फकीर थे बाबा जय गुरुदेव. इमरजेंसी में इंदिरा गाँधी ने बाबा के पैर में बेदी डलवा कर तिहाड़ की काल कोठरी में डलवा दिया था . बाद में 77 के चुनाव में कांग्रेश का सफाया हो गया था.दरअसल बाबा के गुरु श्री घूरेलाल का जब देहावसान शुरू हुआ, तब भारत आजाद ही हुआ था। देश में कुरीतियों का बोलबाला था और लोग अंधविश्वास में फंसे हुए थे। उत्तर प्रदेश का पूर्वाचल इलाका तो सर्वाधिक पिछड़े इलाके में शुमार था ही, आध्यात्म की राह भी उनके सामने नहीं थी। तब बाबा ने सन 1952 में पहली बार वाराणसी से अपने प्रवचन की शुरुआत की। यह सिलसिला आगे बढ़ा तो बाबा के तेवर और आम संतों से अलग सोच भी सामने आने लगी। अधिकांश धार्मिक लोग जहां देवी-देवताओं की बात करते, वहीं बाबा निराकार ब्रह्म की शिक्षा देते और कुरीतियों, ढोंग व अंधविश्वास के खिलाफ खुलकर बोलते।धीरे-धीरे उनका विरोध बढ़ने लगा। विरोध तेज हुआ तो पूर्वाचल के लोग ही उनके साथ आए। इनमें भी गोरखपुर के अनुयायियों ने बाबा का सबसे ज्यादा साथ दिया। गोरखपुर के अनुयायी तो बाबा की सुरक्षा में वाराणसी, आजमगढ़, जौनपुर, बिहार व अन्य इलाकों में भी साथ जाते थे। संगत का असर ऐसा रहा कि यह कारवां बढ़ता गया और पूर्वाचल में बाबा जयगुरुदेव का डंका पिटने लगा। आश्रम का लगाव भी उनके लिए उतना ही अटूट होता गया। अब जब बाबा जयगुरुदेव नहीं रहे हैं तो पूर्वाचल के भक्तों की भीड़ भी सर्वाधिक देखी जा रही है। इनमें गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, देवरिया, जौनपुर, गौंडा, सोनभद्र आदि इलाकों के भक्त छाये हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम, नेपाल, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा के भक्त भी हैं। बाबा अपने प्रवचनों में अक्सर कहा करते थे-'सुनते जाना, सभी नर-नारी, जमाना बदलेगा.... जमाना बदलने वाले बाबा जमाना छोड़ गए . उनके ब्रह्मलीन होने की दुखदायी खबर पर कुछ अपनी श्रधा के शब्द अर्पित करते हुए उन्हें नमन करता हु - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती
जयगुरुदेव अपने प्रवचनों में हमेशा गरीब दास जी, शिवदयाल जी, सहजो भाई, चरण दास की वाणी, राधास्वामी मत के सार वचन, मीरा बाई, कबीर और घट रामायण का उल्लेख करते थे। उनके भजन और कीर्तन भी फकीरी वाले ही थे। मीरा के भजनों से वह हमेशा प्रंभावित रहे।उनकी बात जहां दुनियादारों को समझ नहीं आयी, वहीं बाबा ने भी उनकी कभी परवाह नहीं की। उन्होंने बताया कि सुरत (आत्मा) दो आंखों के बीच बसती है। वह मनुष्य की आवाज नहीं सुनती बल्कि आकाशवाणी सुनती है। आकाशवाणी के शब्द के जरिए आत्मा इह लोक में उतार कर लायी गयी है। वह कहते कि स्वर्ग, वैकुंठ से आगे भी मंडल और लोक हैं। एक बार पहुंचने के बाद भी नीचे आ सकते हो। और केवल कोई पहुंचा हुआ संत ही वहां तक पहुंचा सकता है। वह गुरु शब्द को ब्रह्म के समकक्ष रखते और उसी की महिमा का बखान करते। उन्होंने अनुभव किया कि बिना शाकाहार अपनाए इंसान निराकार प्रभु का अनुभव नहीं कर सकता, तो उन्होंने इसे अभियान से जोड़ लिया। आश्रम से जुड़े बाबा के प्रमुख अनुयायी संत राम कहते हैं कि बाबा पर वे लोग ज्यादा लिख रहे हैं, जिन्होंने कभी बाबा को नहीं समझा। वह कहते थे कि देवी-देवता तो सृष्टि के ट्रस्टी हैं। असल प्रभु तो निराकार ब्रह्म है। उसी से जुड़ने की सीख देते। मेरे बाबूजी स्वर्गीय सुरेश पाण्डेय बाबा के अनन्यय भक्त थे . बाबूजी के निर्देश से हमने साईकिल से देश के 11 प्रान्तों का बाबा के काफिले में यात्रा की . बाबा की सादगी , बाबा का सत्संग , बाबा का अध्य्तामिक करिश्मा बहुत करीब से देखा हु . इसी से यह दावा कर रहा हु की बेफिक्र फकीर थे बाबा जय गुरुदेव. इमरजेंसी में इंदिरा गाँधी ने बाबा के पैर में बेदी डलवा कर तिहाड़ की काल कोठरी में डलवा दिया था . बाद में 77 के चुनाव में कांग्रेश का सफाया हो गया था.दरअसल बाबा के गुरु श्री घूरेलाल का जब देहावसान शुरू हुआ, तब भारत आजाद ही हुआ था। देश में कुरीतियों का बोलबाला था और लोग अंधविश्वास में फंसे हुए थे। उत्तर प्रदेश का पूर्वाचल इलाका तो सर्वाधिक पिछड़े इलाके में शुमार था ही, आध्यात्म की राह भी उनके सामने नहीं थी। तब बाबा ने सन 1952 में पहली बार वाराणसी से अपने प्रवचन की शुरुआत की। यह सिलसिला आगे बढ़ा तो बाबा के तेवर और आम संतों से अलग सोच भी सामने आने लगी। अधिकांश धार्मिक लोग जहां देवी-देवताओं की बात करते, वहीं बाबा निराकार ब्रह्म की शिक्षा देते और कुरीतियों, ढोंग व अंधविश्वास के खिलाफ खुलकर बोलते।धीरे-धीरे उनका विरोध बढ़ने लगा। विरोध तेज हुआ तो पूर्वाचल के लोग ही उनके साथ आए। इनमें भी गोरखपुर के अनुयायियों ने बाबा का सबसे ज्यादा साथ दिया। गोरखपुर के अनुयायी तो बाबा की सुरक्षा में वाराणसी, आजमगढ़, जौनपुर, बिहार व अन्य इलाकों में भी साथ जाते थे। संगत का असर ऐसा रहा कि यह कारवां बढ़ता गया और पूर्वाचल में बाबा जयगुरुदेव का डंका पिटने लगा। आश्रम का लगाव भी उनके लिए उतना ही अटूट होता गया। अब जब बाबा जयगुरुदेव नहीं रहे हैं तो पूर्वाचल के भक्तों की भीड़ भी सर्वाधिक देखी जा रही है। इनमें गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, देवरिया, जौनपुर, गौंडा, सोनभद्र आदि इलाकों के भक्त छाये हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम, नेपाल, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा के भक्त भी हैं। बाबा अपने प्रवचनों में अक्सर कहा करते थे-'सुनते जाना, सभी नर-नारी, जमाना बदलेगा.... जमाना बदलने वाले बाबा जमाना छोड़ गए . उनके ब्रह्मलीन होने की दुखदायी खबर पर कुछ अपनी श्रधा के शब्द अर्पित करते हुए उन्हें नमन करता हु - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती
जय गुरु देव
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