मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
सोमवार, 30 दिसंबर 2013
हिंदी, उर्दू व भोजपुरी की बही त्रिवेणी
प्रगतिशील लेखक संघ व गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को प्रेस क्लब के सभागार में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में हिंदी, उर्दू और भोजपुरी के कवियों की एक से बढ़कर एक की गई प्रस्तुतियों से ऐसा लगा जैसे यहां काव्य की त्रिवेणी बह रही हो। शहर में रचनात्मक संवाद को आम बनाने तथा रचनाकारों को परस्पर गंभीरता से लेने पर जोर देने के के उद्देश्य से आयोजित कविता-पाठ, अध्यक्ष मंडल के सदस्यों डॉ. चितरंजन मिश्र, डॉ. अजीज अहमद, डॉ. जनार्दन एवं प्रेस क्लब अध्यक्ष रीतेश मिश्र की उपस्थित में संपन्न हुयी। कविता-पाठ का शुभारंभ नर्वदेश्वर पाण्डेय ‘देहाती’ की भोजपुरी कविता ‘आरक्षण में गांव गईल, लोग बोले बहुबोली। खायीं खायीं ना प्रधान जी, बर्दास्तवाली गोली से हुआ। इस अवसर पर सत्यम सिंह और अभिनव मिश्र की कविताओं को विशेष तौर पर रेखांकित किया गया। उन्हें भविष्य के सार्थक रचनाकार के रूप में देखा गया। लखनऊ से आये शायर बश्ना आलमी की गजलों और कतआत को गंभीरता से लेते हुए कहा गया कि इनकी शायरी में आम जिंदगी की आहट है। डॉ. वेद प्रकाश पाण्डेय के दोहे सम-सामयिकता को रेखांकित कर रहे थे तो वहीं डॉ. अखिलेश मिश्र की कविता ‘तुमको पाया भी नहीं पर भुलाया भी नहीं, काबिले तारीफ रही। वीरेंद्र हमदम की कविता ‘मटमैली दुनिया को ज्यादा कोसो मत, अक्सर नये नोट भी जाली होते हैं। वफा गोरखपुरी ने ‘दीवार नफरतों की गिरा देना चाहिए। जो रो रहे हैं उनको जगा देना चाहिए। ने इस गोष्ठी को मानो जगा दिया हो। कविता पाठ में सुरेंद्र शास्त्री, डॉ. रंजना जायसवाल, डॉ. अनीता अग्रवाल, अर्शी बस्तवी, श्रीधर मिश्र, आडीएन श्रीवास्तव, जगदीश नारायण श्रीवास्तव, वेद प्रकाश आदि ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को समृद्ध किया। कविता पाठ का संचालन महेश अश्क तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद कुमार द्वारा किया गया। इस दौरान प्रेस क्लब का सभागार बुद्धिजीवियों, पत्रकारों एवं कवियों से खचाखच भरा रहा। लोगों ने घंटों खड़े रहकर काव्य- पाठ का रसपान किया। प्रगतिशील लेखक संघ व गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब की सं युक्त प्रस्तुति
गुरुवार, 26 दिसंबर 2013
जैसी बहै बयार, पीठ तब तैसी कीन्हो..
मनबोध मास्टर राजनीतिक निष्क्रियता, प्रशासनिक अकर्मण्यता, आर्थिक अस्थिरता
से उपजल महंगाई आ सामाजिक जीवन में डेग-डेग पर भभोरत भ्रष्टाचार से बहुत
दुखी हवें। थोड़का सा सकुन मिलल कि दिल्ली में आम आदमी अपनी ताकत के एहसास
करवलें। नेता लोग की खिलाफ उपजल गुस्सा वोट बन के गिरल त राजनितिक पंडितन
के बोलती बंद हो गइल। राजनितिहन के जाति, धर्म आ क्षेत्रियता के फार्मूला
फुस्स हो गइल। नया जोश, नयी उम्मीद, नयी ताकत से उभरल आम आदमी पार्टी।
राजनीति के मुलम्मा चढ़ते आप नेता के बोल भी राजनीतिक हो गइल। सच कहीं त
लगता पढ़ाई की समय में बहुतन की तरह खूब विद्या माई के किरिया खाये वालन की
लिस्ट में अव्वल रहल होइहन केजरीवाल। दिल्ली में विधान सभा के चुनाव
परिणाम आइल त पहिले आप, पहिले आप के सुर चलल। केजरीवाल साहब अपनी बच्चन तक
के किरिया खइलें। ना समर्थन लेइब, ना देइब। जवना कांग्रेस की भ्रष्टाचार के
करिखा से करिया बुझत रहले उहे आंख के अंजन हो गइल। भाजपाई लोग पूछत बा- ‘
कहां गइल किरिया-कहट?’ लोग कहत बा- ‘सूप हंसे त हंसे चलनियों हंसति बा जवना
में बहत्तर गो छेद’। केजरीवाल अपनी बच्चन के कसम खइलें त का भइल, भाजपाई
लोग त ‘ सौगंध राम की खाते हैं.’ भइया लोग रामजी के भी बदनाम क दिहलें।
राजनीति अगर सब जायज बा त केजरीवाल के कसम भी नाजायज ना बा। लगत बा
केजरीवाल साहब ‘ जैसी बहै बयार, पीठ तब तैसी कीन्हों’ की तर्ज पर चलत हवें।
भ्रष्टाचार मेटावे खातिर ना सरकारी मोटर चाहीं, ना सरकारी बंगला, ना
सुरक्षा, ना हूटर , ना शूटर। बस चाहीं त एगो सरकार। जवना के बना के
व्यवस्था सुधारल जा सके। अगर ‘आप’ के सरकार दिल्ली में फेल त देश में साफ।
अगर दिल्ली में सही त खाता न बही पूरा देश में ‘आप’ ही रही। एगो सावधानी
बहुत जरूरी बा। कुछ घुसपैठिया भी लागल हवें। दामन के दाग छिपवले ‘आप’ में
समाये की फिराक में लगल घुसपैठियन से सतर्क रहला के जरूरत बा। ‘आप’ सरकार
बनावत हई। आम आदमी आपन समर्थन रउरा के दे देले बा। अब हर काम खातिर जनमत
संग्रह कराइब त फैसला में देरी होई। खरमास में कवनो नया काम ना होला लेकिन
दिल्ली में नवकी सरकार बने जात बा। लोग के अपेक्षा बा ‘नायक’ पिक्चर की
हीरो जइसन मुख्यमंत्री के। अब जवन वादा कइलें ओके निभावें। ज्यादा समय
लिहें त समय करवट ले ली। झाड़ू-पंजा प्रेम की नवकी सरकार के शुभकामना की
साथे इ कविता-
दि ल्ली में बने जात बा, ‘आप’ के सरकार।
चारों ओर से लोग करत
बा, ‘आप’ के जय जयकार।।
कांग्रेस की कूटनीति से देखीं , केतना बचत बा ‘आप’ ।
आज त सबकर बाप बनल बा, कल हो ना जाये फ्ल्ॉाप।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 26/12/13 के अंक में प्रकाशित है .
रविवार, 22 दिसंबर 2013
पत्रकार अपनी ताकत पहचानें : प्रो. शुक्ल
जिला पंचायत सभागार में नया मीडिया मंच द्वारा आयोजित ‘नया मीडिया एवं
ग्रामीण पत्रकारिता’ विषयक संगोष्ठी तथा सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते
हुए दीदउ गोविवि गोरखपुर के हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.
रामदेव शुक्ल ने कहा कि ग्रामीण पत्रकारिता की व्यथा को सुनकर मुझे पीड़ा
हुई है। समाचारों को अपनी सुविधानुसार छापने से पत्रकारों का मनोबल टूटता
है। श्री शुक्ल ने गांवों के विकास में ग्रामीण पत्रकारों की अहम भूमिका
बताते हुए कहा कि समाज के निर्माण में पत्रकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
उन्होंने पत्रकारों से अपनी ताकत पहचानने का आह्वान करते हुए कहा कि आप
अपनी ताकत को पहचानो। कलम का मुकाबला तोप भी नहीं कर सकती है। उन्होंने
मीडिया के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज मीडिया नहीं होता तो देश कब
का बिक गया होता। श्री शुक्ल ने सोशल मीडिया पर अश्लीलता के बढ़ते प्रभाव
पर भी चिंता जाहिर की और कहा कि अश्लीलता भारतीय संस्कृति के विपरीत है।
संगोष्ठी को मा.वि.वि. भोपाल के ई-मीडिया के विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीकान्त
सिंह, पंकज झा, यशवन्त सिंह, डॉ. दिनेश मणि त्रिपाठी, आल इण्डिया रेडियो , दिल्ली की समाचार वाचिका श्रीमती अलका सिंह, संजय मिश्र, नर्वदेश्वर पाण्डेय ‘देहाती’, डॉ.
जयप्रकाश पाठक, डॉ.सौरभ मालवीय, राजीव कुमार यादव, अरुण कुमार पाण्डेय,
सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी, सतीश कुमार सिंह, पं. राघवशरण तिवारी समेत दर्जनों
लोगों ने संबोधित किया। संगोष्ठी का संचालन शिवानन्द द्विवेदी ने संबोधित
किया। इस अवसर पर उदय प्रताप सिंह, विवेक धर द्विवेदी, विद्या पाण्डेय,
दिलीप मल्ल, जयशंकर पाण्डेय सहित सैकड़ों पत्रकार, अधिवक्ता, समाजसेवी आदि
उपस्थित रहे। इस समारोह में कार्यक्रम के अध्यक्ष दीदउ गोविवि गोरखपुर के
हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रामदेव शुक्ल ने पत्रकार
नर्वदेश्वर पाण्डेय ‘देहाती’, संजय मिश्र, राजीव कुमार यादव, इलेक्ट्रानिक
मीडिया के पत्रकार सौरव मालवीय एवं शिक्षाविद् प्रो. जयप्रकाश पाठक समेत
पांच लोगों को प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिह्न देकर मोती बीए सम्मान से
सम्मानित किया गया।
गुरुवार, 19 दिसंबर 2013
आई तनिका हाथ सेंक लीं..
आई तनिका हाथ सेंक लीं, मौसम आइल अलावे के।
बेंच के लकड़ी जेब भराई, भले ना
मिली जलावे के।।
का दइब इ जाड़ा भेंजलन, गरीबन के ही मुआवे के।
हो जाई
तैयार पंचों, फिर अब लाश गिनावे के।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 19 /12 /13 के अंक में प्रकाशित है।
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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013
रेलवे परामर्शदात्री समिति ने मंगलवार को आयोजित बैठक में स्टेशन की बदहाल व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा की।
रेलवे परामर्शदात्री समिति ने मंगलवार को आयोजित बैठक में स्टेशन की बदहाल
व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा की। बैठक से पहले समिति के सदस्यों ने प्रथम
श्रेणी गेट पर पसरी गंदगी और वीआइपी गेट के सामने स्थित प्री पेड बूथ की
समस्याओं को न सिर्फ दिखाया बल्कि आने वाली मुश्किलों का भी एहसास कराया।1
रेल प्रशासन ने समस्याओं को जाना और यात्री सुविधाओं को और बेहतर बनाने का
आश्वासन दिया। दिन के 3 बजे से एसी लाउंज में एरिया मैनेजर जेपी सिंह की
अध्यक्षता में बैठक शुरू हुई। सदस्यों ने बताया कि प्रथम श्रेणी गेट के
दोनों तरफ मल-मूत्र बहता रहता है। स्टेशन परिसर में घुसते ही सड़ांध यात्री
के मन को खराब कर देती है। जबकि, यहां 1366.44 मीटर विश्व का सबसे लंबा
प्लेटफार्म तैयार हो चुका है। इसके चलते गोरखपुर भी विश्व पटल पर छा गया
है। इसके बाद भी यह हाल है। स्टेशन प्रशासन की उदासीनता का आलम यह है कि
प्रीपेड टैक्सी बूथ को प्रीपेड थाना में बदल दिया गया है। इसके अलावा
ओवरब्रिज से होकर प्लेटफार्म नंबर 1 से 9 तक पार्सल ले जाने पर लगने वाले
जाम की समस्या के बारे में भी रेल प्रशासन को अवगत कराया। समिति ने पुरानी
मांगों को भी दोहराया। जिसे आश्वासन के बाद भी रेल प्रशासन ने पूरा नहीं
किया। एरिया मैनेजर ने यात्री सुविधाओं को और बेहतर करने तथा मांगों पर
विचार करने का आश्वासन दिया। बैठक में नर्वदेश्वर पांडेय देहाती, प्रो.
श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी, श्रीमती बंदना गुप्ता, बलबीर सिंह, अशोक कुमार
अग्रवाल, संजय सिंह आदि समिति के सदस्यों के अलावा डीसीआइ एके सुमन, सीटीआइ
मकसूद आलम, मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक योगेंद्र सिंह, आरपीएफ के प्रभारी
निरीक्षक राजेश कुमार व मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक शशिकांत आदि मौजूद थे।
1जागरण संवाददाता, गोरखपुर : रेलवे परामर्शदात्री समिति ने मंगलवार को
आयोजित बैठक में स्टेशन की बदहाल व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा की। बैठक से
पहले समिति के सदस्यों ने प्रथम श्रेणी गेट पर पसरी गंदगी और वीआइपी गेट
के सामने स्थित प्री पेड बूथ की समस्याओं को न सिर्फ दिखाया बल्कि आने वाली
मुश्किलों का भी एहसास कराया।1 रेल प्रशासन ने समस्याओं को जाना और यात्री
सुविधाओं को और बेहतर बनाने का आश्वासन दिया। दिन के 3 बजे से एसी लाउंज
में एरिया मैनेजर जेपी सिंह की अध्यक्षता में बैठक शुरू हुई। सदस्यों ने
बताया कि प्रथम श्रेणी गेट के दोनों तरफ मल-मूत्र बहता रहता है। स्टेशन
परिसर में घुसते ही सड़ांध यात्री के मन को खराब कर देती है। जबकि, यहां
1366.44 मीटर विश्व का सबसे लंबा प्लेटफार्म तैयार हो चुका है। इसके चलते
गोरखपुर भी विश्व पटल पर छा गया है। इसके बाद भी यह हाल है। स्टेशन प्रशासन
की उदासीनता का आलम यह है कि प्रीपेड टैक्सी बूथ को प्रीपेड थाना में बदल
दिया गया है। इसके अलावा ओवरब्रिज से होकर प्लेटफार्म नंबर 1 से 9 तक
पार्सल ले जाने पर लगने वाले जाम की समस्या के बारे में भी रेल प्रशासन को
अवगत कराया। समिति ने पुरानी मांगों को भी दोहराया। जिसे आश्वासन के बाद भी
रेल प्रशासन ने पूरा नहीं किया। एरिया मैनेजर ने यात्री सुविधाओं को और
बेहतर करने तथा मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया। बैठक में नर्वदेश्वर
पांडेय देहाती, प्रो. श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी, श्रीमती बंदना गुप्ता,
बलबीर सिंह, अशोक कुमार अग्रवाल, संजय सिंह आदि समिति के सदस्यों के अलावा
डीसीआइ एके सुमन, सीटीआइ मकसूद आलम, मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक योगेंद्र
सिंह, आरपीएफ के प्रभारी निरीक्षक राजेश कुमार व मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक
शशिकांत आदि मौजूद थे।
गुरुवार, 12 दिसंबर 2013
हलल भइंसिया पानी में..
हलल भइंसिया पानी में..
मैडम -पप्पू रोक ना पवलें, उड़ल हंसी राजधानी में।
का सचहूं फेंकू की चलते, हलल भइंसिया पानी में।।
दिल्ली में अस जगलें नवहा, बहुत जने हो गइलें घहवा।
चंपले जे इंगलिश बिरयानी, उनके दुलुम चाय आ कहवा।।
गुमनाम नामचीन हो गइलें, दादी रोवें दालानी में।। का सचहूं ..
गॉटर रेत के भीत हो गइल, चारों खाने चित हो गइल।
झाड़ूवाला अइसन झरलें, एके बेर में फिट हो गइल।।
एके साल के जनमल लक्ष्का, हुंकलसि अबे नादानी में। का सचहूं..
जनता के दुख ना बुझी, हारी लड़ाई केतनो जूझी।
चिमचा बेलचा मुंह लुकवलें,कइलें बहुत हांजी आ हूंजी।
थोड़ा तस्सली मिलल जिगर के, रोअवलसि प्याज चुहानी में।। का सचहूं..
इ महंगी के मार रहल ह, केहू के जीत ना हार रहल ह।
बनि के वोट बाहर निकरल ह, आक्रोश के अंगार रहल ह।।
बड़-बड़ महारथी उड़ जइहन, चौदह वाली आंधी में।। का सचहूं..
जाति -धर्म पर केतना बंटबù, टुकड़ा-टुकड़ा केतना कटबù।
जन ज्वार जब एक हो जाई, केसे लड़बù केसे अंटबù।।
ठगलù बहुत ठगाइल जनता, अब पड़बù परेशानी में।। का सचहूं..
हर सड़क के खस्ताहाल बा, रुकल ना क्राइम बड़ बवाल बा।
अपराधिन के टिकट देत हैं, जनता का एकर मलाल बा।।
जनता जानी लाभ ना पइबù, पड़ जइबù तब हानी में।। का सचहूं..
आठ माह में तेरह दंगा, राजकाज के कइलसि नंगा।
रोज डकैती रोज छिनैती, कहां-कहां लोग लेई पंगा।।
छह सौ दुष्कर्म दर्ज भइल बा, हजारों केस छेड़खानी में।। का सचहूं..
सुधरी ना कानून व्यवस्था, अइसहिं जो रही अवस्था।
इस्पात के दंभ भरी का, टीना-मोमा रांगा-जस्ता।।
मोटा-मोटी बात बतवलीं, घुसल का समझदानी में।। का सचहूं..
गुरुवार, 5 दिसंबर 2013
दहि गइल पीड़िया, रहि गइल नेह
कन्याओं की टोली से निकरत बिंदास शोर..। कहीं भजन, कहीं लोकगीत.। याद आइल आज पीड़िया ह। लोक संस्कृति के एगो अइसन पर्व जवन पूर्वाचल की गांवे- गांवें गोधन कूटला की बाद शुरू हो जाला। गोबर से बनल गोधन के पूजन आ कूटला की बाद पीड़िया के निर्माण आ दहववला की साथे समापन के सवा माह के दौरान नारी पक्ष द्वारा गृहस्थ आश्रम के सजो संस्कार के खेल(स्वांग) की माध्यम से एक पीढ़ी से होत दूसरे पीढ़ी तक चलत चलि आवत बा। समरसता, भाईचारा, अश्पृश्यता के अंत. अमीरी-गरीबी के ढहत खाई के पीड़िया अइसन पर्व पर भी देखल जा सकेला। पीड़िया में पुरुष सत्ता के कहीं कवनो प्रभाव ना। नारी सत्ता के ही रहन-सहन। तुतुलाह बोले वाली बच्ची से लेके विअहल-दानल युवती तक मायका में पीड़िया की माध्यम से जीवन के सच से रूबरू करावल एगो लोक स्वांग, एगो लोक पर्व, एगो लोक खेल। नाटक के पात्र डॉक्टर हो या धगरिन, पति हो या पिता, सास हो या ननद.। सब पात्र नारी। जब स्वांग करत रात में दरोगा बन के कवनो लक्ष्की रोबदार आवाज में गरजे त बड़े-बड़े के पेट पानी हो जा। जब बात साफ होखे कि दरोगा ना इ त फलनवां के बेटी पीड़िया के खेल करत रहल, सुन के लोग हंसत-हंसल लोट जा। पीड़िया में सामुहिकता के जवन रूप लउकेला बहुत अद्भुत। दीवाल पर गोबर से बनल सैकड़ों पीड़िया के लड़की लोग बड़ा आसानी से पहचान लेली। अंतर एतने रहेला कि बिअहल-दानल लड़की लोग के पीड़िया सेनुर से टिकाइल रहेली आ कुंआरि लड़किन के बिना टिकल। गांवन के ताल- पोखरा भरात गइल। लोग के कब्जा होत गइल। लेकिन उ जगह अबो जिवित बा जहां पीड़िया दहवावल जाला। पीड़िया के समापन ‘ भूजा मिलौनी ’ की साथे पूरा होला। भूजा मिलौनी में जाति-पांति के दीवार ढह जाला। एक दूसरे के लाई-गट्टा देत-लेत में जवन प्रेम झलकेला उहो अनोखा ह। चाउर, चिउरा, फरुही, मकई, सांवा, कोदो, टांगुन, बाजरा, बजरी, मड़ुआ. के भूजा। गोरखपुर में बसल कई परिवार के लड़की लोग चाउर-चिउरा की बाद और चीज के नाम सुनते चिहुक जइहन, लेकिन गांवन में पीड़िया की दिने ‘सतअनजा’ लउक जाला। देसी मिठाइन के भी गजब के मेल। गट्टा, बतासा, लकठा, खुरमा, पेड़ा, पेठा. । जब सतअनजा के भूजा आ देसी मिठाई के मेल मिल जाला त पीड़िया के परसादी के स्वाद गजबे हो जाला। पंडितपुरा के बिटिया दखिनटोली के बिटिया से भूजा मिलौनी कर के सामाजिक समरता के मिसाल कायम करेली। पीड़िया की समापन पर इ कविता दहि गइली पीड़िया, रहि गइल नेह। भूजा मिलौनी में , लउके सनेह।। - नर्व्देश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 5/12/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
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