रविवार, 2 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 18 सितम्बर 22 को जनादेश में प्रकाशित

चारों ओर बा घेरले पानी
उनकी आंख के मरल न पानी

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। जीव के जंजाल बा। दईं के लीला गजबे बा। सावन सुखार में बीत गईल। धान पानी बिन सूख गईल। कातिक नियराईल त इंद्र देवता का याद आईल की धरती पर पानियो बरसावे के बा। अईसन बरसा दिहलन की अब रबी के बुआई भी पिछुआई। ना खाल खेत निखरी न गेहूं बुआई। मतलब साफ बा, धान सूखा से गईल, त गेहूं पानी से। जमाना उल्टा हो गइल बा। प्रकृति कुपित बा। जवन जल जीवन रहे उहे जानलेवा हो गइल, अपनी राज में शुक के अईसन पानी गिरल की चौबीस जने के जान चलि गईल। चारों ओर पानी-पानी हो गइल, लेकिन उनकी नजर के पानी ना मरल। अईसन पानी भईल की शहर में पानी निकासी खातिर बनत नाला भी बह गईल। पानीदार प्रशासन के चेहरा कमीशनखोरी आ घटिया निर्माण से बेपानी हो गइल। ईमानदारी के ढोल पिटे वालन के पोल खुल गईल। विरोधी लोग चुल्लू भर पानी लेके खोजत हवें, आईं एहि में डूब मरीं। लोग पानी पी-पी गरिआवत बा। शरीफ मनई सुन-सुन के पानी-पानी हो जाता, लेकिन उनकी आंख के पानी नईखे मरत। जानत हईं काहें? ठेका-पट्टी के कमीशन देखते उनकी मुंह में पानी आ जाला। शहर से लेके नगर ले गन्दा पानी। गन्दा पानी निकासी पर लूट खसोट। रुकल-सड़ल पानी में भी अवसर तलासल गईल। कमाए वालन के नाला के सड़ल पानी, बजबजात गन्दा पानी, पाप से सराबोर पानी कवनो अमृत सरोवर चाहे गंगा जल से कम पवित्र ना लागेला। बीमारी से बचावे की नाम पर कागजे में छिड़काव कर के धन के प्यास बुझावल जाला। यत्र-तत्र पसरल पानी के बहुत कहानी बा। राजधानी से लेके घर की चुहानी ले पानी के कई रूप बा। मुफ्त के पानी अब पईसा वाला पानी बनके बोतलबंद पानी हो गइल। सरग में सालोसाल पियासल पुरखन खातिर पितृपक्ष में पानी नसीब होला। पूर्वजन के पानी पीया के तर्पण करीं। आपन पानी राखे के होखे त दुसरो के पानी के कदर कईल सीखीं। रहीम दास जी अनेरो नईखन कहलन- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून...।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।

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