रविवार, 2 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य : 2 अक्टूबर 22

मीठा-मीठा गप्प गप्प !!

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें -बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें-हाल त बेहाल बा। झूठ के बाजत गाल बा। दू बेर टकसला की बाद तीसरी बेर मंत्री जी के कार्यक्रम आखिर लागि गईल। जनता खुश। लागल सब सवंर जाई। अब भला जनता के कईसे समझावल जा कि सरकार कवनो होखे, असल किरदार अधिकारी होलन। सकल नचावत हैं अधिकारी...। मंत्री जी के गोशाला देखावे के होई त और जगह ना, गौरीबाजार जरूर ले जइहें। काहें, कि उ पहिलही से चकाचक बा। आंगनबाड़ी देखे के होखें त लवकनी बड़ले बा। मलिन बस्ती देखावे के होई त भटवलिया बा। अस्पताल देखे के होई त, तब ले जईहैं जब पर्ची बनल बन्द, मरीज के लाइन खत्म। मेडिकल कालेज जइहें, त डॉक्टरी पढ़े वाला लइके जयकारा लगईहे। ई ना बतइहें कि केतना दिन से छत के गन्दा पानी टँकी की जरिये पी के फिर भी हम्मन स्वस्थ्य हईं। सब देखला की बाद मंत्री जी आपन प्रवचन चालू करीहें- बजट के कवनो कमी नईखे। सब दवा उपलब्ध बा। ठीक बा ,सब दवा उपलब्ध बा त गेट पर दवाई के दुकान के कवन जरूरत बा। सब संसाधन आ योग्य डाक्टर लोग बड़ले बा, त काहें कवनो नर्सिंग होम में भीड़ काहें लागत बा। दरअसल सरकार जनता की प्रति जवाबदेह होखें न होखे, सत्ता में पुनरागमन के व्यवस्था पहिलही से मजबूत रखे ले। ना त सरकार बनावल आसान काम ह, आ न मंत्री बनल। सब गुणा गणित ह। सबके खुश करे खातिर कबो-कबो एगो मुख्यमंत्री की संगे दुगो उपमुख्यमंत्री बना दिहल जाला। चलेला केकर? अधिकारिन के। जवन अधिकारी जेतने तेज कनभरवा विधा में माहिर रही उ ओतने बड़वर कुर्सी पाई। पानी निकासी खातिर बनत नाला पानी में बह जाई, लेकिन सरकारी ढोल बजावे वाला सूचना विभाग पगुरी करत रही। कहीं कवनो खबर ना। कमीशनखोरी के करिया काम पर सोनहुला गलईचा बिछा के सबकुछ चकाचक देखा दिहल जाई। नया सोच के एतना गाना बजी की लोग की पाँव की मोच के दर्द भुला जाई। सद्व्यवहार की नदी से कुछ पत्रकारन के नहवा दिहल जाई। उ लिखल-पढ़ल छोड़ के जयकार में लाग जइहें। हर जिला में सरकारी डमरू बजावे वाला एगो करिश्माई अधिकारी रहेलन, जवन एकदम मीठा-मीठा अईसन बोलिहैं की सब झूठ गप्प हो जाई। साँच के टहाटह अँजोरिया अमौसा की दिने भी उगत दिखी। महिमामंडन की सरगम में झूमत अगर कवनो खबर पढ़े, सुने, देखे में स्वाद कसैला लागी त फट से आधारहीन आ तथ्य विहीन कहि के  खंडन बहादुर आपन धुधुका बजा दीहें। पत्रकार वार्ता बोलावल जाई। चाह-बिस्कुट खिआके, ज्ञान दिहल जाई। सकारात्मक बात कहल जा। नकारात्मक से ब्लड प्रेशर, शुगर सहित कई बीमारी बढ़ जाले। फिर प्रशंसाबाज आपन असल गति छोड़ के अधिकारिन की मति में आके सावन की अंधा जस हरिहर-हरियर देखे लगिहे। देश में जवाबदेह तंत्र कमजोर चलत बा। खुशामदी के मंत्र तेज असर करत बा। सरकार दिल खोल के लुटावत बा। जनता मुफ्त के राशन खा के डकारत भी नईखे। सब अच्छा बा। सब अच्छा बा। कहत मंत्री जी चल जइहें। हंसी त तब आईल, जब एगो दूसरे मंत्री जी के आदेश देखल गईल। मुअल मनई सरग से आके प्रस्ताव देत हवें , आ मंत्रीजी सड़क बनावे के आदेश देत हवें। 

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते


 


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