घरे-घरे तिरंगा लहरे, राष्ट्रभक्ति के पताका फहरे
हाल- बेहाल बा / एन डी देहाती
मनबोध मास्टर पुछलें-बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें-हाल त बेहाल बा, लेकिन एक बात के खुशी बा कि आजादी की पचहतर वर्ष बाद राष्ट्र आ राष्ट्रभक्ति के स्वरूप बदलल बा। राष्ट्र, विश्व गुरु बन गईल आ तिरंगा अब रतियो में राष्ट्रभक्ति के प्रतीक। घरे-घरे तिरंगा लहरत बा। राष्ट्रभक्ति के पताका फहरत बा। राष्ट्र उहे रहल लेकिन नेतृत्व बदलल त विश्व के बड़का देश भी हमार अहमियत समझले। मतलब केहू खोखें त हमसे पूछ के। तिरंगा पहिले दिन में ही लहरत रहल। सांझ होते अगर सम्मान सहित ना उतरत रहे त अपमान समझल जात रहे। पन्द्रह अगस्त आ छब्बीस जनवरी के मास्टर साहब लोगन का जेतना मिठाई के चिंता ना रहत रहे, ओतना चिंता एह बात के की सांझ के झंडा कईसे उतार के रखाई। घर से दुबारा स्कूल ना जाये के परे एकरा खातिर लोग गाँव में ही केहू के पटिया के, मिठाई के दोना तनी बढ़ा के दिहल जात रहे। गाँव के उ बन्दा झंडा के आदर-अनादर भले न समझत रहे लेकिन मास्टर साहब के बढ़ा के दिहल मिठाई के ही आपन सम्मान आ दायित्व बुझत रहे। असों, राष्ट्रभक्ति की भावना में झंडा के नियम बदल गईल। अब रातों-दिन फहरायीं। मंत्री- मनिस्टर की भांति रउरो अपनी वाहन पर लहराईं। लाल किला से कम अपनी घरवों में मत समझीं। घर ना होखें त झोपड़िये सही, झोपड़ी भी ना होखे त टाटी-प्लास्टिक कुछू जवन सर ढंके खातिर अपनी हैसियत से खड़ा कईले हईं ओके कवनो महल-अटारी से कम जनि समझीं। खूब जश्न मनाईं। असो अमृत महोत्सव मनत बा। रउरो मनाईं। सालों-साल महंगाई के रोवल-धोअल छोड़ी, समझीं की आसमान से सीधे अमृत रउरीये मुँह में गिरल बा। बाप-दादा, पुरखा-पुरनिया ढाई सौ बरस बेबसी आ गुलामी भोगले रहे। बड़ा कुर्बानी देले रहलें, तब ई सोने के चिरई आजाद भईल रहे। दुनिया के तमाम देश हमरे देश की संगही आजाद भइलें। एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका आ बाकी देश भी जम्हूरियत के चिराग जरवलें। सब कर चिराग बुझ गईल। हिन्दुस्तान ही एगो अईसन अकेला देश बा जहां लोकशाही के चिराग आजुओ जरत बा। लोकशाही के चिराग कबो बुझे ना दिहल जाई। जरूरी एह बात के बा कि अपनी शास्त्रन से, अपनी संस्कृति से, अपनी सभ्यता से, अपनी सनातन पक्ष के कबो बिसरे ना दिहल जा। वास्तविक धरातल के सच भी देखावला के साहस राखल जा। अमृत के असल हकदार देव तुल्य जनता ही होले, लेकिन आज सत्ता के आवरण ओढ़ के कईसे राहु-केतु भी छक के अमृत पिअत बाड़न ओहुन पर नजर राखल जा। चुनल प्रतिनिधि जवन मंगनी की बाइक से चलत रहे, दु साल में फार्च्यूनर से कईसे चले लागल? जनता के घरेलू गैस पैसा की अभाव में ना भराई, आ नेताजी लोग की घरे एतना रुपया मिली कि मशीन भी गिने में गरमा जाई, ई ना होखे के चाहीं। लोकतंत्र की सहारे बादशाहीयत अर्जित करे वालन नेतन के भी लेखा-जोखा राखल जरूरी बा। नाहीं त सबके तिरंगा लहरवला में अझुरा के सजो अमृत इहे पी जइहैं। नेतन की सुख-सुविधा में कटौती कर के आम जनता खातिर योजना बनवला के काम बा। तब जाके आजादी अमृत महोत्सव के मजा आई। केहू खात-खात मरी- आ केहू खइला बिना कुहकी, ई ना चली। बगल में श्रीलंका के हाल देख लीं।
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