रविवार, 2 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 4 सितम्बर22

ले ल पोदीना, बुढौती में नगीना

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पूछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा कहलें- हाल उहे बा, खाल उहे बा। जबसे सरकार बुढ़ऊ पत्रकार लोग के पेंशन देबे के घोषणा कइलसि, जमीनी पर पैरे नईखे। सब बेमारी दूर। जवानी छलकत बा। नवहा खबर नबिश भी दईब के गोहरावत हवें, हमहुँ जल्दी बुढा जईतीं त हमरो मुट्ठा-खांड भेटा जाइत। असल, दरअसल, किंतु, परन्तु, बल्कि, लेकिन..सब भुला के सरकार के सौ-सौ धन्यवाद देता। आजादी की बाद पहली बेर कवनो सरकार आईल, जवन निरीह प्राणी, चौबीस घण्टा के सूचना खुरपेचिया, बिना तनख्वाह के नौकर के भी भरण-पोषण, गुजर-बसर के चिंता कइलसि। आखिर एगो पत्रकार के और का चाहीं? जिन्नगीभर समाज के व्याप्त बुराई आ भ्रष्टाचार की खिलाफ जंग लड़त समाज से दुश्मनी ही त कमईलें। सामने की सम्मान से बड़वर त पीठ पीछे के अपमान ही कमईलें। लोकतंत्र के चौथा खम्हा कहइलें लेकिन कवनो सरकार इनकी बारे में ना सोचलस। अब सरकार सोचलसि त मुसरन ढोल बजावत हवें। बजा ल भईया। अभिन पेड़ पर कटहल बा, मुंह में तेल लगा के बईठल रहीं। ना जाने कब कोआ खाएके मिली। घोषणा जेतना सुघ्घर लउकत बा ओतने टेढ़ बा। ना चलनी में पानी आई, ना आटा सनाई। नियमवे एतना टेढ़ बा कि पूरा जवानी अगर सच के, ईमानदारी के, साहस के पत्रकारिता करत बुढाईल हईं त ख्याली पुलाव अगर भेटा गईल त अपना के धन्य समझीं। सन 82 से हमहुँ एही लाइन में हईं। चालीस साल से लिखत-पढ़त, खुरपेच करत 62 वर्ष के हो गइलीं। जवना संस्थान खातिर काम कइलीं ना उ मान्यता दिहलसि ना कवनो सरकार। हमरे समनवे जनमल चिंटू, पिंटू, गोलू जईसन कई जने के जिला से लेके राज्य स्तर तक के मान्यता मिल गईल। काहें कि ऊ केहू न केहू के पोछि पकड़ के सरकार के कृपापात्र हो गइलन। उनकी लगे जवन जोगाड़ रहे, हमरे लगे ना बा, ना होई। का रउरी लगे पांच साल लगातार जिला चाहे राज्य के मान्यता बा? नईखे, त काहें कूदत हईं। एतने योग्य रहितीं त मान्यता ना मिल गईल रहित। मान्यता लिहला के एगो अलगे योग्यता होला, जवन सब पत्रकार की लगे होइए ना सकेला।
दुसरका बात बा, अगर पांच साल वाली लगातार के मान्यता नईखे त 10 वर्ष तक श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 के प्रावधान की तहत श्रमजीवी पत्रकारिता कईले होईं। इहो सरग के जोन्ही जईसन बा। जवना संस्थान में रउरा लिखीं लें,उहे लिख के ना दीहें कि रउरा उनकी इहा लिखीं लें। मतलब साफ साबित हो जाई कि रउरा श्रमजीवी ना परजीवी हईं। अब तिसरका शर्त पर आईं। अगर वृद्ध भईला की बाद कहीं कहीं एको-दु बेर खाता में वृद्धा पेंशन के पांच सौ रुपया भुला भटक के आइल होई त चाहे लाख शपथपत्र लिख के देई रउरा अयोग्य ही कहाइब। जवना वृद्ध लोग के पूर्वांचल बैंक में खाता रहे उ बैंक बड़ौदा हो गइल। आ वृद्धा पेंशन अबो लटकल बा। अब आईं, आय पर। लेखपाल अगर ईमानदारी से राउर इनकम आंक दिहलसि त मिल भईल पेंशन। एतना कुल कागज पत्तर साते दिन में जुटा के जमा कईला की बाद रउरा भाग्यशाली होखब त पेंशन मिली। ना नौ मन तेल होई, ना राधा नचिहें। सबकर निचोड़ ई बा कि जे पत्रकार सरकार से लाभ पवले बा, उहे लाभान्वित होई। जे हरियरी देख के हहरल बा उ अबो हहरी। गोसाईं बाबा पहिलही लिख देले रहलें- सकल पदारथ एहि जग माही...।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपन विचार लिखी..

हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद