हालत विचित्र बा, रावन ही मित्र बा
हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती
मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। पितरपख की बाद नवरातन ले मांसाहारी लोग के उदासी अब हुलासी में बदल गईल बा। आदमी के बस चले त जीया-जंतु का, आदमी के भी पका के खा जाई। श्रीराम के भक्त कम, आ रावणी प्रवृति वाला लोग धरती पर ज्यादा हो गइल बा। हालत विचित्र बा, रावण ही मित्र बा। लोग की मन में ही रावण समा गइल बा। विभीषण के चरित्र भी बदल गइल बा। अब उ रामजी के सही भेद ना बतावत हवें, की रावण की नाभि में अमृत बा। रावण अपनी चतुराई से अमृत के जगह बदल देले बा। अब रामजी एक बाण मारे चाहें इकतीस वाण, रावण के कुछु बिगड़े वाला ना बा। का जमाना आ गइल बा। नाभि खोल के देखावला के चलन बढ़ गइल बा। पूरा दशहरा माई के मूर्ति रख के भोजपुरी के ढोढ़ी वाला गन्दा गीत बाजल। मना कईला पर भक्त बाजि जइहैं। सत्य सकुचात बा। झूठ मोटात बा। नैतिकता के पर्व के रूप में, न्याय की स्थापना में, विजय पर्व की याद में दशहरा मनावला के परंपरा शुरू भइल। येही दिन त रावण के वध भइल रहे। युगन से रावण दहन होत आवता, लेकिन रावण जिंदा बा। चारों ओर रावण अट्टहास करत बा। देखला के दृष्टि चाहीं। दूसरे की दिल में ना, अपने मन में झांक के देखीं। मन में रावण बैठल बा। मन के रावण मरला बगैर कागज-पटाखा की रावण के पुतला फूंकले ना शांति मिली ना संतुष्टि। प्रवृति आसुरी हो गइल बा। एगो सीता मइया की हरण में रावण साधु वेष बनवलसि। मौजूदा समय में साधु वेशधारिन के संख्या असंख्य बा। जे साधु वेश में ना बा ओकरो मन में रावण के माया राज करति बा। रावण त सीता मइया के खाली हरण कइलसि, आज हरण की तुरंत बाद वरण आ ना मनला पर मरण तक पहुंचवला के स्थिति बा। रहल बात रामजी के, त उंहा के नाम बेचल जाता। रामजी की नाम पर कथा, प्रवचन, भजन बहाना बा, लक्ष्मी बिटोरला के धंधा तेज बा। ई धरती वास्तविक राम आ उनकी भक्तन की भक्ति से बचल बा। रावण के एगो रूप नवरात्र के आखिरी दिन देखे के मिलल, जब कन्या भोज खातिर मनबोध मास्टर घर-घर लड़की तलाशत रहलें। कई घर छनला की बाद बहुत मुश्किल से 21 कन्या मिलली। दरअसल रावण प्रवृति में एतना कन्या भ्रूण हत्या भइल की लड़की लोग के संख्या ही कम हो गइल। एकरा पीछे के कारण तलाशीं त साफ हो जाई की रावण के दुसरका रूप दहेज की आतंक से कन्या भ्रूण हत्या के संख्या बढ़त बा। फिर भी हम भक्ति में लीन होके गावत हईं- माई हो, तनी आ जईतू। हर साल विसर्जन की दिने दारू के ठेका बन्द रहत रहे। असो ओहू के खोलला के आदेश रहल ह। बगैर शीशी के जयकार के ध्वनि भला कहां सुनाई। रावन के प्रमुख आहार मांस आ मदिरा ही त रहल। आज मनई भी उहे अपनवले बा। सात्विक जीवन दुर्लभ बा। आडम्बर के बोलबाला बा। बड़वर सवाल ई बा कि शत्रु आ मित्र पहचानल मुश्किल हो गइल बा। अब रावन ही मित्र बा। ज्यादातर लोग के रावन के ही चरित्र बा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपन विचार लिखी..