‘अन्ना लीला’ आ ‘अन्नागीरी’
अन्ना की आंदोलन के गूंज देवलोक में पहुंचल। नारद बाबा आपन वीणा बजावत अइलें। आंखों देखल हाल बतावत हवें- दिल्ली की रामलीला मैदान से गांव -गांव तक ‘अन्ना लीला’ आ ‘अन्नागीरी’ चलत बा। शोर एतना जोर रहे कि पेट में लईको ‘अन्ना- अन्ना ’ बोलत बा। गेट पर ‘अल्ट्रासाउंड कानूनी रूप से अवैध’ के बोर्ड लगवले ‘जनमरवा डाक्टर’एवार्सन के केस निपटा के अन्ना आंदोलन में कूदल हवें। प्रख्यात ज्योतिषी ‘धूर्ताधिराज’गर्भवती महतारी लोग के बतवलें की जन्माष्टमी के दिन जवन लईका पैदा होई तवन बहुत प्रतापी होई, जल्दी दक्षिना देई, हमरा आंदोलन में जाये के बा। महतारी लोग असमय की पेट फरवा के लईका पैदा करावत हई। लईका ‘केंहा-केंहा’ की जगह पर ‘अन्ना-अन्ना ’चिल्लात हवें। भारी कमीशन की खरीददारी पर मंगावल कई गो टीका जनमते लईका के खोंसाइल बा। महतारी के दूध अमृत समान बतावेवाली नर्स लईका की मुंह में बोतल थम्हवले बाड़ी। बोतल में ‘हरहरगंगे’ ग्वाला वाला दूध भरल बा। बुझनेक लईका चाना मामा आ चेउंआ से ना टीवी की रिमोट से बाझत हवें। ‘ ज्ञान बेचवा’ स्कूल में बहुत सिफारिश की बाद नाम लिखाता। नाम लिखइला की पहिले गार्जियन का ‘पर-इच्छा’ से शिक्षा की दुकान में कापी-किताब, कपड़ा, जूता-मोजा-टाई महंगा दाम पर खरीदे के पड़त बा। नौकरी खोजला में खेत गिरवी होता। जर-जोगाड़ पर लक्ष्का के नोकरी लागत बा त बाबुजी मंदिर मिलावट वाली मिठाई चढ़ा के ‘उपरवार’ के मन्नत मांगत हवें। दहेज कानूनन जुर्म बा लेकिन लईका की विवाह में खींच के लियात बा। जज साहब के सामने ही ‘पेशकारी’ आ ‘नजराना’लियात बा। ‘मुकदमाबझवा’ वकील मोवक्किल से फीस लेके कोर्ट के वहिष्कार क के अन्ना की आंदोलन में कूदल हवें। ‘चंदामंगवा’ समाजसेवी लोग धंधा से जुटावल पइसा से कुछ मोमबत्ती मंगाके कैंडिल जुलूस निकारत हवें।महापुरुष की मूर्ति की आगे बइठ के ‘सूदखोरवा’सेठ अंडा के आमलेट खाके उपवास पर हवें। सुरक्षा में लगावल पुलिस वसूली में मस्त बा। अन्ना के जूता आ किरण वेदी के पर्स भी ईमानदार लोग उड़ा लेले बा। प्रतिवंधित गुटखा आ दुर्गधित दारू से जब रामलीला मैदान बंसा उठल त अन्ना का कहे के परल, गुटखा आ दारू पी के जनि आई। चैनेल वाले आपन बैट्री फूंकत हवें, अखबारवाला अन्ना की खबर से पन्ना रंगत हवें। कई गो ‘कुरफतिये’ लागले रहि गइलें लेकिन एतना बड़वर आंदोलन के बड़वर बात इ बा कि कहीं कवनो हिंसा ना भइल। अब सब पूछत बा-
अन्ना चाचा तूहीं बतावù, कहिया अनशन टूटी। भ्रष्टाचार के टांगल हड़िया, अब कहिया ले फूटी।।
नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी लेख राष्ट्रीय सहारा गोरखपुर के २५ अगस्त २०११ के अंक में प्रकाशित है .
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kya gajab ka lekh hai, kitna sach likha hai aapne, hakikat yahi hai ki ab chorwe bhi chor-chor ka hala macha rahe hai. anna ke andolan me jane se pahle shisha me apna chehara nahi dekhate sale bhrastachrii.tikha vaygya likhane ke liye aapko badhayee.
जवाब देंहटाएंbahut sahi likha aapne. in salo ko sharm nahi hai imandaro ke pradarsan me beiman ghuste chale aa rahe hai.
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