जज ने भ्रष्टतंत्र पर किया प्रहार
न्यायाधीश अजय पांडे के जज्बे को
अन्ना के मंच से बुधवार को जनता को संबोधित करते हुए न्यायाधीश अजय पांडे ने एक वाकया सुनाया-
हां मैं एक न्यायाधीश हूं। नई दिल्ली के वीआइपी क्षेत्र में अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी भी रहा। अब तीस हजारी में सिविल जज के पद पर कार्यरत हूं। कई बार यहां आया, बाहर से ही लौट गया। मन में डर था कि क्या होगा? अगर अन्ना के आंदोलन में शामिल हुआ तो क्या होगा? लेकिन अंतरात्मा ने मुझे बार-बार धिक्कारा। रामलीला मैदान में स्वयंसेवकों ने जन-लोकपाल के पर्चे दिए तो उन्हें पढ़कर रहा नहीं गया। मन की आवाज सुनी और अपनी बात कहने के लिए आपके सामने हूं। दो वर्ष मैं नई दिल्ली में अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी रहा। उस दौरान एक सांसद की गाड़ी पर संसद का पार्किंग स्टिकर गलत लगा था। जिसमें दोषी सांसद को ठहराया जाना था, लेकिन आरोपी बनाया गया ड्राइवर। ड्राइवर का कसूर सिर्फ इतना था कि वह गरीब था। कल उसकी जगह मेरा बच्चा होगा, तुम्हारे परिवार का कोई सदस्य भी हो सकता है। जब तक कि भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए कोई सख्त और पारदर्शी कानून नहीं बनेगा तब तक ऊपरी दबाव के चलते किसी न किसी व्यक्ति पर दोष थोपा जाता रहेगा। न्यायपालिका पुलिस से कहती है जांच करो, पुलिस वाले नहीं करते। क्योंकि व्यवस्था ही भ्रष्ट हो चुकी है। असल दोषी के खिलाफ निष्पक्ष जांच हो ही नहीं पाती। य् उस कानून और संविधान का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता, जो लोकतंत्र में जनसेवकों को पंगु बनाए और जनता पिसती रहे।
हो सकता है की जज के इस उद्गार से तंत्र को परेशानी हो , फिर भी बड़ी ईमानदारी से उन्होंने आज के समाज का चित्रण किया है.-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती
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