सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

13.9.21 के वॉयश ऑफ शताब्दी के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

हईचों-हईचों जोर लगावें, कुछ ना पायें बिगाड़ी

मनबोध मास्टर रिटायर मनई। विभाग विदा क दिहलसि की हमरे काम के अब ना बाड़न। घर के लोग भी उनके फालतू ही समझत बा। और त और अब मस्टराईन भी बमक जाली- दिन भर कुरसी तोड़त हवा, मोबाइल में आंख फोड़त हवा। मास्टर जब टीवी पर कवनो खबर देखें त नाती-पोता आके रिमोट छीन लें और गप्प से कार्टून लगा लें। रिटायर मनई के कहीं ठेकान नईखे। मास्टर के ना घर-परिवार में, ना गाँव-जवार में, ना साथ -समाज में कहीं इज्जत वाली जगह ना मिलल। पार्टी में ई झुनझुना जवन बंटाता, ओहू में मास्टर के लिस्ट से नाम गायब। मास्टर रीश खीश में बमकल हवें- का जमाना आ गइल, हाल ई बा कि अन्हरा बांटे रेवड़ी, तब्बो घरे-घराना खाई। जे तेल लगाई, उहे न आगे जाई। जे साँच कही,उ जुत्ता खाई। सगरो जगह एके हाल बा। जेके गरीबन के मसीहा बनाके टिकट दियात रहे ओके अब माफिया बतावल जाता। आ हेने देखीं- बाप रे बाप!अईसन तानाशाही।  नौ महीना में त लईका हो जाला, लेकिन किसान लोग नौ महीना से सड़क पर पिसान सानत बा । दिल्ली के तीन ओर से घेरले हवें, तिने गो कानून वापस करे के बा लेकिन कानून वापस करावला में तेरहो करम हो गइल। किसान भाई अब चाहे दिल्ली घेर$ चाहे लखनऊ। करनाल में ताल ठोक$ चाहें मुजफ्फरनगर में पंचाइत कर$। तोहरो रूप चिन्हाईले बा। ई नया भारत के नवका रूप ह। जब तीन सौ के सिलिंडर मिलत रहे त महंगाई डाईन भईल रहे। आज एक हजार के मिलत बा त महंगाई भौजाई भईल बा। तीस रुपया लीटर पेट्रोल दियावे वाला झामदेव सौ से ऊपर भईला पर मौनासन में बाड़न। देश के व्यवस्था सुधरला की नाम पर सरकारी संस्थान अपनी खास दोस्तन के ठेका पर दिहल जाता। चार आना के जोंहरि रखावे खातिर चौदह आना के मचान बनत बा। अब त ओखरी में मुड़ी पडलें बा, चोट गिनला के जरूरत नईखे। मास्टर बकबकाते रहलें तवले मस्टराईन के बेलना कपार पर ठक्क से गिरल। मास्टर माथा पकड़ के बुद्बुदईलें-अब घर घर में राजदरबारी घुस गईलें। लईका, मेहरी, नाती, पोता सबके मति मार लेले बाड़न सन। मस्टराईन कहली-
 
तीन सौ सत्तर हटल खट्ट से, देखल दुनिया सारी।
अयोध्या की भव्य मंदिर में, रहिहैं अवधबिहारी।
हईचों-हईचों जोर लगावें, कुछ ना पायें बिगाड़ी।
कहें देहाती राजकाज ह, देखीं पारा-पारी।।

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